हमने आपके लिए कई कविताएं लिखी हैं, जो हमें प्रेरणा देंगी, यह कविता भी अवसरवादी है, आप लोगों के लिए उत्साहवर्धक है, इन सभी कविताओं में आपको अच्छी शिक्षा मिलेगी और, Poem on Pollution in Hindi ये सभी कविताएं हमने मनोरंजन के लिए लिखी हैं।
Poem on Pollution
प्रदुषण पर कविता।
पर्यावरण प्रदुषण से मच जाती है पूरी दुनिया में हाहाकार,
सच तो यह है की इसके लिए इंसान ही है जिम्मेदार।
प्रदूषण से चिंतित है पूरा संसार,
फिर भी हम क्यों करते हैं पर्यावरण के साथ ऐसा ब्यबहार।
युहीं अगर करते रहे हम प्रकृति के साथ खिलवाड़,
प्रकृति का कहर कर सकता है हम पर प्रहार।
पर्यावरण प्रदुषण से मच जाती है पूरी दुनिया में हाहाकार,
सच तो यह है की इसके लिए इंसान ही है जिम्मेदार।
बिना सोचे समझे पर्यावरण को नुक्सान पहुंचते हैं,
इसका परिणाम भी हम सब हीं झेलते हैं।
शहरीकरण के नाम पे जंगलों को कटा जाता है,
इसका खामियाजा भी हम सभी को भुगतना पड़ता है।
पर्यावरण प्रदुषण से मच जाती है पूरी दुनिया में हाहाकार,
सच तो यह है की इसके लिए इंसान ही है जिम्मेदार।
पर्यावरण प्रदुषण पर कविता सुनते हैं,
पर्यावरण प्रदुषण पर भासन भी देते हैं।
खुद ही स्वच्छता नियम का उलंघन करते हैं,
फिर भी प्रदुषण पे दूसरों को समझते हैं।
पर्यावरण प्रदुषण से मच जाती है पूरी दुनिया में हाहाकार,
सच तो यह है की इसके लिए इंसान ही है जिम्मेदार।
“हवाओं में घुलता ज़हर”
हवाओ में घुलता जहर
धीरे-धीरे सांसो में फैलता जहर
इस प्रदूषण भरी पृथ्वी पर।
अब घुटने लगा है दम,
न जाने फिर भी क्यों प्रदूषण फैलाते है हम।
अपनी दो पल की जरूरत के लिए
बेजुबान पेड़ों को नुकसान पहुंचाते हम।
जो थोड़ी मिलती है शुद्ध हवा,
उसको भी बर्बाद करते हम।
हवाओं में घुलता ज़हर,
धीरे-धीरे सांसों में फैलता जहर।
कभी अत्यधिक पटाखे जलाकर,
तो कभी पेड़ों को काट कर,
कभी पराली जला कर
तो कभी फैक्ट्रियों से हानिकारक गैसों को निकाल कर
तो कभी मोबाइल टावर के रेडिएशन को बढ़ा कर।
नए-नए तरीके से हवाओ को प्रदूषित करते हम,
जीने के लिए जो बची है थोड़ी सांसे
उसको भी बेजान करते हम।
हवाओं में घुलता ज़हर,
धीरे-धीरे सांसों में फैलता जहर।
विश्व पर्यावरण दिवस
चिलचिलाती धूप उफ्फ ये चुभती गर्मी,
ये तो है ऋतु परिवर्तन के कारण ही है।
लेकिन इसके कारक हम स्वयं हैं,
प्रकृति से चल रही छेड़छाड़।
विलासिता सुख भोग की,
मानव की है अब चाह।
मानव कृत प्रदूषण की भरमार,
कटते वन बढ़ती पालीथिन।
कल-कारखानों से जनित विषाक्त कचरा,
वाहनों के द्वारा निकलता धुआँ।
ए.सी, कूलर एवम फ्रिजों द्वारा,
उत्सर्जित जहरीली गैसों का प्रभाव।
क्षरित होती ओजोन परत, पिघलते ग्लेशियर,
इन सबके पीछे सुखभोगी मानव ही है,
जो हरदम तोड़ रहा है प्रकृति के नियम।
परिणाम झेल रहा है।
भीषण ताप यदि यूं ही होता रहा।
प्रकृति के संसाधनों का अतिशय,
शीघ्र ही समझिये धरा का होगा समापन।
एक दिन धरा पर बढ़ जाएगा इतना ताप,
सब कुछ हो जाएगा समाप्त।
….डॉ मीना कुमारी
प्रदूषण की समस्या
प्रदूषण की समस्या से,
जूझ रहा है समस्त संसार,
हो प्रकृति या मानव जाति,
सब पर है इसका घोर प्रहार।
बढ़ रहा है बीमारियों का प्रकोप,
जीवन हो गया है दुश्वार,
ख़त्म हो रही हरियाली धरती से,
वातावरण हो गया है बेकार।
कहीं जल की समस्या के कारण,
सूखे और भुखमरी की है मार,
कही वायु प्रदूषण का संकट,
जो कर रहा सबको बीमार।
जनसँख्या वृद्धि के कारण प्रदूषण ने तो,
छीन लिए है सबके अधिकार,
जिसके कारण ही,
बेरोजगारी ने लिए अपने पैर पसार।
स्वयं ही मानव ने अपने,
दुष्कर्मों से लिया जीवन बिगाड़,
कर लिया स्वयं को पीड़ित,
और कर धरती पर मनावता को बेज़ार।
कुछ चेतो मानव तुम
कुछ चेतो मानव तुम जग के
नही तो बहुत पछताओगे,
करते रहे यूं दूषित धरती को दूषित तो,
तुम हरियाली कहाँ से पाओगे?
करते रहे जो वायु प्रदूषित,
एक पल भी न जी पाओगे,
खुली हवा में जो श्वास हो लेते,
एक श्वास को भी तरस जाओगे।
कुछ चेतो मानव तुम जग के,
नही तो बहुत पछताओगे।
जल को जो किया तुमने प्रदूषित,
धरती पर सब बंजर पाओगे,
बिन जल की बूंदों के तुम,
तनिक भी जी न पाओगे।
कुछ चेतो मानव तुम जग के,
नही तो बहुत पछताओगे।
रोको ध्वनि प्रदूषण को तुम,
वरना मानसिक रोगी बन जाओगे,
इतराते हो जो अपनी बुद्धिमता पर,
जीवन में तनिक रस न पाओगे।
कुछ चेतो मानव तुम जग के,
नही तो बहुत पछताओगे ।
रोको जनप्रदूषण जल्दी ही,
वरना बेघर तुम हो जाओगे,
रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या से,
तुम फिर कभी पार न पाओगे।
कुछ चेतो मानव तुम जग के,
नही तो बहुत पछताओगे।
जागरूकता एक मुहिम
ऐ मानव! मानव हो तुम,
तो उच्च मानसिकता को अपनाओ,
धुआँ धुआँ आलम प्रदुषण घनघोर
धुआं धुआं है आलम, हवा हवा में शोर
बोली प्रकृति चीख के प्रदुषण घनघोर
घनघोर है जीना, रो रही है साँसे
है आँखों में जलन, कोई जोर से खांसे
खांसे शहर मोहल्ला, चेहरे मास्क चढ़ा
पोल्युशन में जीवन दुखी हुआ बड़ा
बड़ा अब बड़ा लगे नहीं, बूढ़ा लगे है बच्चा
प्रदुषण का प्यार भी हुआ मानव से सच्चा
सच्चा गाडी का धुआँ, कारखानों की किलकारी
करके पर्यावरण का मेकअप, फिटनेस हुई भारी
भारी हुआ लेना बॉडी में शुद्ध ऑक्सीजन
दूषित वातावरण से बना दूषित तन मन
मन में संकल्प लीजिए, देनी सभी को यह परीक्षा
जो भी जैसे हो सके प्रकृति की करनी है रक्षा
पर्यावरण है, तो हम हैं
एक बात को गाँठ बाँध लें,
पर्यावरण है, तो हम हैं।
धरती माता रही कराह,
क्यों मुझको कर रहे तबाह,
मिटी जा रही हरियाली,
हुआ प्रदूषण बलशाली।
हवा में घुली विषैली गैसें,
प्राणवायु की आँखें नम हैं।
किए आचरण प्रकृति विरुद्ध,
वायु-नीर भी रहे न शुद्ध,
बढ़ता जाता वैश्चिक ताप,
उल्टे – पुल्टे क्रियाकलाप।
हरे – भरे सब पेड़ कट रहे,
नदियाँ जंगल कम हो रहे।
जीव-जन्तु भी रहे हैं घट,
कूप – सरोवर गए हैं पट।
पॉलीथिन महा दुखदायी,
कहीं न नियमित साफ-सफाई।
ऊर्जा-ईधन के बचाव के,
हितकर सफल कार्यक्रम हैं।
बंद करें भूजल का दोहन,
त्यागें विलासिता सम्मोहन,
मिलजुल पौधे नए लगाएँ,
धरा पर हरियाली वापस लाएँ।
सच्चे पर्यावरण-मित्र हित,
पाठ प्रकृति के अनुपम हैं
पर्यावरण है, तो हम हैं।
….गौरीशंकर वैश्य विनम्र
देख देख मानव
देख देख मानव तेरे अनगिनत कुकर्म
स्वर्ग सी धरती बनी तपता लोहा गर्म
हुई हरियाली गायब, बढ़ता निरन्तर तापमान
छेड़ दिया प्रकृति के विरुद्ध युद्ध घमासान
वास्तव में युद्ध यह मानव के विरुद्ध, मानव ने ही बोया
देख देख अब सारा जहाँ टीवी अखबार में खूब रोया
अभी भी वक्त संभल जाओ वरना रहेगा सिर्फ विनाश
स्वच्छ भोजन मिलना तो दुर्लभ, बुझेगी नहीं प्यास
सूख गए जंगल, मिमियाने लगे है पशु पक्षी
इस प्रकृति के खात्में के लिए मानव बना जो भक्षी
शोषण पर शोषण करके पर्यावरण को किया नंगा
भूल गए धरती माँ को भूल गए जी तिरंगा
अब सिर्फ प्रकृति बचाओ के नारे लगते देते दिखाई
सुना सभी ने ध्यान से फिर किया हर नारा हवा हवाई
अब कौन रोकेगा प्रदुषण यह सोच रहा है नेचर
जिस मानव को पाला पोसा वह अक्ल से निकला फटीचर
पर्यावरण में आग लगी
पर्यावरण में आग लगी, धुआँ निकला शहर शहर
अभी थोड़ा और फूंकना, अखबार में छपी खबर
खबर मानव होके बेरहम, खुद पे चला रहा कुल्हाड़ी
जंगल खेत साफ करके इठला रहा जी अनाड़ी
अनाड़ी की गाडी भी फूंके दिन रात नेचर
कारखाने कंस्ट्रक्शन जैसे जुड़े साथ में फीचर
फीचर सारे हिला रहे प्रकृति का अंग अंग
सारे आलम में चढ़ बैठा प्रदूषण का रंग
रंग है यह काला, अंधेर इसके दरवाजे
लेके बीमारियां सैकड़ों मौत दहलीज पे विराजे
विराजे प्रदूषित जीवन, सांस सांस में राख
हो जाये शरीर सारा, लगे इसी में खाक
खाक हो रहा पल पल स्वस्थ तन और मन
प्रदुषण में जीना मरना देख रहा जन जन
जन जन की आँखों में लगा है पर्दा बेजोड़
मानो प्रदूषित करने की लगी हुई है होड़
होड़ में बेतहाशा आतिशबाजी, डी जे साउंड लाजवाब
शांत स्वच्छ वातावरण के मिलकर देखिये कोरे ख्वाब
ख्वाब सजा रहे विनाशक जो ज्यादा शिक्षित और अमीर
मजे मजे में बहा रहे प्रकृति के नयनों से नीर
नीर साफ था, हवा शुद्ध थी, धरती थी उपजाऊ कभी
प्रदुषण रोकने की बात लगेगी आपको शोर अभी
पौधा लगाओ
चुनिया कहती मुनिया से,
वनों को हम नहीं काटेंगे।
पेड हमारे है जीवन रक्षक,
मानव क्यों बना है भक्षक।
पर्यावरण रखता है विशुद्ध,
हवा मिलती हमको है शुद्ध।
तन मन रहता जब स्वस्थ है,
तब जीवन होता मस्त है।
नाना जी देते हैं संदेश,
करना न इससे परहेज।
एक पौधे सब है लगाओ,
सौ साल की आयु पाओं।
…..आशा उमेश
आज प्रदूषण बेहिसाब है
आज प्रदूषण बेहिसाब है
सड़कों की हालत ख़राब है
चारों ओर धुंए का राज है
आज प्रदूषण बेहिसाब है
बसें चलें, चलती हैं लारी
गुज़रा करते हैं ट्रक भारी
दिशा-दिशा में हल्ला-गुल्ला
पोंपों पीं पीं खुल्लम खुल्ला
कान हो गए मानो बहरे
मुरझाया मन का गुलाब है
आज प्रदूषण बेहिसाब है
नहीं लोग हैं धैर्य सम्भालें
कचरे को सड़कों पर डालें
इस पर बहता रहता पानी
होती दुखी देखकर नानी
पूछ रही हैं सड़कें तुमसे
बोलो इसका क्या जवाब है
आज प्रदूषण बेहिसाब है
ज़ल्दी-जल्दी सड़कें टूटें
पीछे काम विकास के छूटें
हम दोषी हैं, गुनहगार हैं
हममें ग़ायब संस्कार हैं
हम परवाह नहीं करते नित
जाने किसकी पड़ी दाब है
आज प्रदूषण बेहिसाब है
सड़कों से सब देश जुड़े हैं
देश नहीं परदेश जुड़े हैं
सड़कें ही व्यापार बढ़ाएं
सड़कें ही हैं प्यार बढ़ाएं
इनके ही कारण खुशियों की
मुखड़े से उठती नक़ाब है
आज प्रदूषण बेहिसाब है
प्लास्टिक प्रदूषण
प्लास्टिक नाम के राक्षस को
आज बना रहा इंसान
सुन्दर समझ प्लास्टिक को
आज अपना रहा इंसान|
प्लास्टिक की माया मे
आज इतना खो गया इंसान
प्लास्टिक के घर बना रहा इंसान|
प्लास्टिक की सुंदरता मे
फसता जा रहा इंसान
प्लास्टिक नाम के राक्षस का
गुलाम बनता जा रहा इंसान|
प्लास्टिक के भयानक रूप को
नही देख पा रहा इंसान
इसके द्वारा आने वाले सकट
को नही समझ पा रहा इंसान|
प्लास्टिक का प्रचार आज
कर रहा हे इंसान
पृथ्वी ही नही अंतरिक्ष तक
प्लास्टिक को पहुंचा रहा इंसान |
प्लास्टिक फैल कर जल, वायु मे
पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा
जहर घोल कर वायु ओर जल मे
इंसान को अंदर से कमजोर कर रहा |
जानता है इंसान प्लास्टिक ही है
पर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण
लेकिन फिर भी इंसान प्लास्टिक यूज करके
अपने आप को ही मुर्ख बना रहा
आने वाली पीढ़ीयों के लिए वो
प्लास्टिक के ढेर बना रहा|
छाया हे संकट आज
दुनिया मे प्लास्टिक का
अनेक बीमारियों की जड़
हे ये आज बनता जा रहा |
समय रहते इंसान को
प्लास्टिक से मुँह मोड़ना होगा
प्लास्टिक नाम के राक्षस को
पृथ्वी से दूर करना होगा|
आओ संकल्प ले हम
प्लास्टिक को नही अपनायेगे
पर्यावरण को प्रदूषण से
हम मुक्त करके दिखायेगे|
पर्यावरण को बचाना है,
बच्चों! तुम्हें पर्यावरण को बचाना है,
अपने आसपास को रखे साफ।
सब ठीक होगा अपने-आप,
कुड़े-करकट को अब हटाना है।
बच्चो! तुम्हे पर्यावरण को बचाना है,
प्रदूषण के मुल कारण तीन,
फाइबर प्लास्टिक पालीथिन,
इन्हें उपयोग में नहीं लाना है।
बच्चों! तुम्हें पर्यावरण को बचाना है।
कभी गंदे न हों नल की नाली,
और ताल-तलैया का पानी।
नदियों को निर्मल बनाना है,
बच्चों! तुम्हें पर्यावरण को बचाना हैं।
वनों की हरियाली सजी रहे,
पेड़ों की खुशहाली बनी रहे।
सबको एक-एक पौधे लगाना है,
बच्चों! तुम्हें पर्यावरण को बचाना हैं।
….टीकेश्वर सिन्हा
पर्यावरण
इंसान की देखो कैसी माया,
पर्यावरण को खूब सताया।
देश को आगे ले जाने,
पेड़ काट उन्हें खूब रुलाया।
देश में अनेक कारखाने खुलवाये,
पर नदियों में गंदे जल बहाये।
देखो प्रकृति कैसे असंतुलित हो गई,
ठंडी में गर्मी और गर्मी में बारिश हुई।
हुआ बादलों में धुओं का बसेरा,
पता नहीं अब कब होगा शुद्ध सवेरा।
जंगल नष्ट कर जानवरों को बेघर कर दिए,
अपने स्वार्थ में पर्यावरण नष्ट कर दिए।
पेड़ काटने एक आदमी आया,
धूप है कहकर उसी के छाँव में बैठ गया।
पेड़ बचाओ कहते हम थकते नहीं,
और एक इंसान को पेड़ काटने से रोकते नहीं।
बातों पर अमल कर,
प्रदूषण को दूर भगाएँ।
चलो शुद्ध और,
स्वस्थ पर्यावरण बनाएँ।
धरती हरा भरा बनाएं
आओ हम सब मिल कर
धरती को हरा भरा बनाएं।
कम से कम एक पेड़
अपने हाथों से लगाएं।
गर्मी सूखा आक्सीजन से,
हम सब छुटकारा पाएं।
बाग बगिचा जंगल,
मिल जुल कर लगाएं।
विश्व पर्यावरण दिवस का,
आओ हम मान बढ़ाएं।
अपने स्कूल कालेज में,
एक एक पेड़ लगाएं।
सड़को के किनारे फिर से,
हम नया पेड़ लगाएं।
हर मुसीबत से हम,
मिल कर छुटकारा पाएं।
छांव और ठंडी हवा,
खूब देते हमको पेड़।
हम सब की सारी मुसीबत,
हर लेते हैं पेड़।
पांच जून को हर साल,
विश्व पर्यावरण दिवस है आता।
पेड़ लगाने की घूम,
हर जगह मच जाता।
पर्यावरण-संरक्षण
हम जिस ‘भौगोलिक’ स्थिति में,
जीवन-यापन करते हैं।
‘बुधियों’ ने दी संज्ञा उसे,
जिसे पर्यावरण हम कहते हैं।।
विधि के अनमोल-खजाने में,
हर प्राणी का हिस्सा है।
रवि, शशि, तारे, अम्बर औ वन,
सब कहते अपना किस्सा है।।
कलयुग-कल, वाहन-वाष्पो से,
सारे जग में है छाया धुआँ ।
जो जीवन-दायनी थी वायु,
उसमें है कैसा यह जहर घुलाँ?
मत दूषित कर अब उसको तू,
मत उसमें और ना दाग लगा।
‘गंगा’ पहले से है ‘मैली’,
अब उसमें और ना ‘मैल’ बढ़ा।।
स्वार्थी मानव का कुत्सित मन,
संहार प्रकृति का नित करता।
जब प्रकृति दिखाती रौद्र रूप,
अपनी ‘करनी’ पर वह मरता।।
‘मानव’ औ ‘प्रकृति’ की दूरी जो,
दिन प्रति दिन बढ़ती जाएगी।
आएगा, ऐसा एक दिन फिर वह,
जब ‘भूख’ स्वयं को खाएगी।।
….उमा गुप्ता
पर्यावरण पर एक नम्र निवेदन
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
बस जीवन के खातिर न वृक्ष काटो।
ताल तलैया जल भर लेते,
प्यासों की प्यास, स्वयं हर लेते।
सुधा सम नीर अमित बांटो,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
स्नान करते राम रहीम रमेश,
रजनी भी गोते लगाये।
क्षय करे जो भी इन्हें, तुम उन सब को डाटो,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
नहर का पानी बड़ी दूर तक जाये,
गेहूं चना और धान उगाये।
फिर गेंहू से सरसों अलग छाटों,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
फल और फूल वृक्ष हमें देते,
औषधियों से रोग हर लेते।
लाख कुल मुदित हँसे,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो,
स्वच्छ हवा हम इनसे पाते,
जीवन जीने योग्य बनाते
दूर होवे प्रदूषण जो करे आटो,
न नहर पाटो, न तालाब पाटो |
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
रक्तस्राव से भीग गया हूं मैं कुल्हाड़ी अब मत मारो।
आसमां के बादल से पूछो मुझको कैसे पाला है।
हर मौसम में सींचा हमको मिट्टी-करकट झाड़ा है।
उन मंद हवाओं से पूछो जो झूला हमें झुलाया है।
पल-पल मेरा ख्याल रखा है अंकुर तभी उगाया है।
तुम सूखे इस उपवन में पेड़ों का एक बाग लगा लो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
इस धरा की सुंदर छाया हम पेड़ों से बनी हुई है।
मधुर-मधुर ये मंद हवाएं, अमृत बन के चली हुई हैं।
हमीं से नाता है जीवों का जो धरा पर आएंगे।
हमीं से रिश्ता है जन-जन का जो इस धरा से जाएंगे।
शाखाएं आंधी-तूफानों में टूटीं ठूंठ आंख में अब मत डालो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
हमीं कराते सब प्राणी को अमृत का रसपान।
हमीं से बनती कितनी औषधि नई पनपती जान।
कितने फल-फूल हम देते फिर भी अनजान बने हो।
लिए कुल्हाड़ी ताक रहे हो उत्तर दो क्यों बेजान खड़े हो।
हमीं से सुंदर जीवन मिलता बुरी नजर मुझपे मत डालो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
अगर जमीं पर नहीं रहे हम जीना दूभर हो जाएगा।
त्राहि-त्राहि जन-जन में होगी हाहाकार भी मच जाएगा।
तब पछताओगे तुम बंदे हमने इन्हें बिगाड़ा है।
हमीं से घर-घर सब मिलता है जो खड़ा हुआ किवाड़ा है।
गली-गली में पेड़ लगाओ हर प्राणी में आस जगा दो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
पर्यावरण बचाना है,
आओ आज कतारों में,
रोप वृक्ष हजारों में,
श्रम का बिगुल बजाना है,
पर्यावरण बचाना है।
वन परिवेश न घटने दे,
एक भी पेड़ न कटने दे।
पेड़ सभी अनमोल रतन,
आओ इसका करें जतन।
आओ आज कतारों में रोपे वृक्ष हजारों में,
श्रम का बिगुल बजाना है।
पर्यावरण बचाना है,
पेड़ की हर डाली से
प्यार करे हम हरियाली से,
कहता यही जमाना है,
पर्यावरण बचाना है।
….सरोजनी साहू
पानी की बूंदों पर कविता
पानी की बूंद होती है अनमोल,
चुका ना पाओ तुम इसका मोल।
गिरे जब बूंदे धरती पर,
लहरा उठे फसलें चारों और।
निकल पड़े जब असमान से,
चीरते हुए इस बादलों को।
हवाओं से लड़ते झगड़ते,
आती है चूमने इस धरती को।
किसान जानें एक बूंद का महत्त्व,
जब गिरती है फसलों पर।
पानी की बूंदे है प्यारी,
ज़िंदा रखती है उम्मीदो को।
सुखा पड़े जब धरती पर,
नजरे टिकी है असमान पर।
एक बूंद बरसा दे धरती पर,
भगवान कुछ तो हम पे रहम कर।
हम सबको ठानकर चलना है,
हर पानी के बूंद को बचाना है।
पानी की बूंद होती है अनमोल,
चुका ना पाओ तुम इसका मोल।
बहुत लुभाता है गर्मी में
बहुत लुभाता है गर्मी में,
अगर कहीं हो बड़ का पेड़।
निकट बुलाता पास बिठाता
ठंडी छाया वाला पेड़।
तापमान धरती का बढ़ता
ऊंचा-ऊंचा, दिन-दिन ऊंचा
झुलस रहा गर्मी से आंगन
गांव-मोहल्ला कूंचा-कूंचा।
गरमी मधुमक्खी का छत्ता
जैसे दिया किसी ने छेड़।
आओ पेड़ लगाएं जिससे
धरती पर फैले हरियाली।
तापमान कम करने को है
एक यही ताले की ताली
ठंडा होगा जब घर-आंगन
तभी बचेंगे मोर-बटेर
तापमान जो बहुत बढ़ा तो
जीना हो जाएगा भारी
धरती होगी जगह न अच्छीो
पग-पग पर होगी बीमारी
रखें संभाले इस धरती को
अभी समय है अभी न देर।
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं
पर्यावरण से है जीवन,
पर्यावरण से है जीवन,
इसे अपना दोस्त बनाते हैं.
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं.
देती हैं साँसे जीवन को,
आओ जाने पेड़ की माया.
करती है ये शुद्ध हवा को,
देती है फल, फूल और छाया.
आओ अपने दिल में हम,
आओ अपने दिल में हम,
प्रकृति प्रेम जगाते हैं.
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं.
सागर, बादल, गगन प्रदूषित,
नदी, धरा और पवन प्रदुषित,
बढ़ गया है प्रदूषण इतना,
कि साँस लेना है मुश्किल.
रूठ गयी है प्रकृति हमसे,
मिलकर सब चलो मनाते हैं.
आओ चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं.
….भावेश देवागंन
रत्न प्रसविनी हैं वसुधा
रत्न प्रसविनी हैं वसुधा,
यह हमको सब कुछ देती है।
माँ जैसी ममता को देकर,
अपने बच्चों को सेती है।
भौतिकवादी जीवन में,
हमनें जगती को भुला दिया।
कर रहें प्रकृति से छेड़छाड़,
हम ने सबको है रुला दिया।
हो गयी प्रदूषित वायु आज,
हम स्वच्छ हवा को तरस रहे
वृक्षों के कटने के कारण,
अब बादल भी न बरस रहे
वृक्ष काट – काटकर हम ने,
माँ धरती को विरान कर डाला।
बनते अपने में होशियार,
अपने ही घर में डाका डाला।
बहुत हो गया बन्द करो अब,
धरती पर अत्याचारों को।
संस्कृति का सम्मान न करते,
भूले शिष्टाचार को।
आओ हम सब संकल्प ले,
धरती को हरा – भरा बनायेगे।
वृक्षारोपण का पुनीत कार्य कर,
पर्यावरण को शुद्ध बनायेगे।
आगे आने वाली पीढ़ी को,
रोगों से मुक्ति करेगे हम।
दे शुद्ध भोजन, जल, वायु आदि,
धरती को स्वर्ग बनायेगे।
जन – जन को करके जागरूक,
जन – जन से वृक्ष लगवायेगे।
चला – चला अभियान यही,
बसुधा को हरा बनायेगे।
जब देखेगे हरी भरी जगती को,
तब पूर्वज भी खुश हो जायेंगे।
कभी कभी ही नहीं सदा हम,
पर्यावरण दिवस मनायेगे।
हरे भरे खूब पेड़ लगाओ,
धरती का सौंदर्य बढाओ।
एक बरस में एक बार ना,
5 जून हर रोज मनाओ।
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो ऊचा उठाना हैं
हम सब़को ही मिलक़र
सम्भ़व हर यत्न क़रकें
बीडा यहीं उठाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो ऊचा उठाना हैं
होग़ा ज़ब ये भारत स्व़च्छ
सब़ ज़न होगे तभीं स्वस्थ
सबकों यहीं समझ़ाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो ऊचा उठाना हैं
गंगा मां के ज़ल को भी
यमुना मा क़े जल को भीं
मोती-सा फ़िर चमक़ाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
आओं मिलक़र करे सकल्प
होना मन मे कोईं विकल्प
गंदगी को दूर भ़गाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत क़ो ऊचा उठाना हैं
देश क़ो विक़सित करनें का
ज़ग मे उन्नति बढाने का
नईं निति सदा ब़नाना हैं
भारत को स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
हम सबकों ही मिल करकें
हर बुराईं को दूर करकें
आतंकवाद क़ो भी मिटाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
मानवता क़ो दिल मे रख़के
धर्म क़ा सदा आचरण करकें
देश से क़लह मिटाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
सत्य अहिसा न्याय को लाक़र
सब़के दिल मे प्यार जगाक़र
स्वर्गं को धरा पर लाना हैं
भारत क़ो स्वच्छ ब़नाना हैं
भारत को ऊंचा उठाना हैं
प्रदूषण एक बीमारी है,
प्रदूषण एक बीमारी है,
जिसकी चपेट में आई दुनिया सारी है,
वक्त रहते ना सुधर जाए हम,
तो होनी घंघोर तबाही है।
प्रदूषण एक बीमारी है,
जिसको हुई उसकी जान पर आफत आई है,
अपनी बर्बादी की तरफ देखो,
हमने खुद ही कदम बढ़ाई है।
धीरे-धीरे देखो बेजुबान
पेड़ों की कटाई जारी है,
जिन पेड़ों से मिलती है
हम सबको सांसे, फूल और फल,
उनको ही अपने स्वार्थ के लिए,
काटने की जरूरत आई है।
प्रदूषण एक बीमारी है,
जिसकी चपेट में आई है दुनिया सारी है।
वक्त रहते ना सुधर जाए हम हु,
तो होने घनघोर तबाही है।
फैलाकर कचरा जहां-तहां,
हम सब ने मिलकर स्वच्छ रहने की,
मन ही मन झूठी कसमें खाई हैं।
करके बर्बाद अपने सुनहरे पर्यावरण को,
हमने स्वच्छ तरीके से जीने की ठानी है।
अपने हाथो से करके बर्बाद पर्यावरण को,
देखो शान कैसे सर उठा कर चलते है।
अरे मानव थोड़ी सी तो शर्म करो,
अपने हित के लिए अपनी प्रकृति को
नुकसान पहुंचाना बंद करो।
अब भी वक्त है सुधर जाओ
और मान लो मेरी बात।
यह प्रदूषण है बेहद खतरनाक।
प्रदूषण एक बीमारी है।
जिसकी चपेट में आई दुनिया सारी है।
वक्त रहते ना सुधरा जाए हम,
तो होनी घनघोर तबाही है।
दुनिया में फैल रहा है प्रदूषण,
जिसको लेकर सारी दुनिया है परेशान।
फिर भी पहुंचाते है जानबूझ कर हम,
अपने ही धरती को नुकसान।
कैसे अनजान बनकर रह जाते है
अपनी बुरी आदतों से हम,
प्रकृति को नुकसान पहुंचाने में
कभी पिछे नही हटते हम।
हर रोज नए-नए तरीके से,
प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हम।
अपने सुखद जीवन सैली में मशरूफ होकर,
प्रदूषण को रोज बढ़ावा देते हम।
जागो जल्दी कही देर न हो जाए,
प्रदूषण के चपेट में आकर कहीं
धीरे धीरे दम ना घूट जाए।
अब भी वक्त है सुधार जाओ
संसार में रहने वालों,
एक स्वच्छ संसार का निर्माण
मिलकर बनालो बनालो।
बचाना है अपने पर्वरण को प्रदुषण से,
कसम खालो आज दूर रहोगे प्रदुषण फैलाने से।
प्रदूषण एक बीमारी है,
जिसकी चपेट में आई दुनिया सारी है।
वक्त रहते ना सुधरा जाए हम,
तो होनी घनघोर तबाही है।
पर्यावरण सुरक्षा
पर्यावरण सुरक्षित रखना है कर्त्तव्य हमारा।
क्षिति, जल, पावक, गगन, पवन मिल,
पर्यावरण सजाते।
सफल सृष्टि के संचालन को,
ये सन्तुलित बनाते।।
वातावरण विशुद्ध न रुकने दे विकास की धारा।
पर्यावरण सुरक्षित रखना, है कर्त्तव्य हमारा।।
जल, ध्वनि, वायु प्रदूषण सब पर,
करना हमें नियंत्रण।
वृक्ष काटकर हम विनाश को,
दें न खुला आमंत्रण।।
हो परिवेश हमारा पावन, यही एक हो नारा।
पर्यावरण सुरक्षित रखना है कर्त्तव्य हमारा।।
जीव-जन्तुओं की रक्षा का,
हम दायित्व निभायें।
उनके प्रति अपने अन्तर में,
करुणा भाव जगायें।।
कोई प्राणी कष्ट न पाये, हम लोगों के द्वारा।
पर्यावरण सुरक्षित रखना है कर्त्तव्य हमारा।।
क्षरण न हो ओजोन परत का,
हो कल्याण भुवन का।
मानवता का रहे निहित हित,
लक्ष्य बने जीवन का।।
रहे संयमिता धरा, सिन्धु,
नभ सुखमय हो जग सारा।
पर्यावरण सुरक्षित रखना, है कर्तव्य हमारा।।
….विनोद चन्द्र पाण्डेय
पानी है कितना अनमोल
पानी है कितना अनमोल,
जान लो तुम इसका मोल,
पानी बिना धरती है सुनी,
बिन पानी जीवन का नहीं है मोल।
पानी से ये धरती बनी,
पानी से बने हम और तुम,
पानी से हरियाली यहां,
बिना पानी यहां सब गुम।
पानी नहीं रहे धरती पर,
सुखा पड़ जाए इस धरती पर,
ना रहें कोई जीवित यहां,
शमशान बन जाएगा इस धरती पर।
नदिया समंदर सब पानी तो है,
तभी खेतों में हरियाली तो है,
अन्न तभी तो मिलता है हमे,
बिन पानी के सब वीरानासा है।
पानी से जीवन है प्यारे,
पानी से जीवित है सारे,
पानी है कितना अनमोल,
जान लो तुम इसका मोल।
जल है तो कल है पर कविता
जल है तो कल है,
जल है तो जीवन है,
यहीं अपनी ताकत है,
इसे ही जीवन सफल है।
आओ हम जल को बचाए,
जल से अपनी प्यास बुझाए,
प्यास बुझे पंछी मुस्कुराए,
पीने को ठंडा जल मिल जाए।
मिल कर बचाएं पानी को,
उज्वल भविष दे नए पीढ़ी को,
उनके लिए हम पानी बचाएं,
तभी जीवन में खुशियां खिल खिलाएं।
सूझ बुझ हम मिलकर दिखलाएं,
जल है जीवन ये सबको समझाएं,
जल से ही अमरत्व मिल जाए,
सारा संसार खुशियों से झिल मिलाए।
बुंद बुंद कीमती है,
बुंद से बना समंदर है,
जल है तो कल है,
जल है तो जीवन है।
जल संरक्षण पर कविताएं
जल संरक्षण करना सबको सिखलाए,
जल बचाने के नए तरीके आजमाएं।
जब जब बारिश का मौसम आए,
बारिश के पानी को हम बचाएं।
छत पर पानी इकट्ठा हो जाए,
रैन वॉटर हार्वेस्टिंग तरीका आजमाएं।
गांव शहर में तालाब बनवाए,
बारिश का पानी उसमे मिल जाए।
बुरी आदतों को हम दूर भगाए,
बिना व्यर्थ हम पानी ना गवाएं।
ब्रश करो नल खुला ना छूट जाए,
बच्चों को अच्छी आदतें सिखलाए।
गंदगी पानी में ना मिल जाए,
पानी को प्रदुषित होने से बचाएं।
कूड़ा कचड़ा कूड़ेदान में जाए,
तभी पवित्र हमारी नदिया कहलाए।
मिलकर जल का महत्त्व समझाए,
जल है जीवन तभी ये अमृत कहलाएं।
जल संरक्षण करना सबको सिखलाए,
जल बचाने के नए तरीके आजमाएं।
जल प्रदूषण पर कविता
हमे बचाना है बचाना है,
जल को प्रदुषण से बचाना है,
कूड़े कचरे को रखके दूर,
हमे पानी गंदा होने से बचाना है।
पवित्र इन नदियों को गंदा बनाया है,
कारखाने की गंदगी को जल में मिलाया है,
मानव तू क्यों इतना क्रूर बना,
तूने पानी को ज़हर बनाया है।
जब जल ही दूषित हो जाए,
बिमारी को घर ले आए,
डेंगू मलेरिया घर में ही जन्मा है,
ये सबको बीमार बनाएं।
जब हो जाए जहरीली हवाएं,
तब बादल भी दूषित बारिश बरसाएं,
खेतों में लहराती हुईं फसलें,
इस पानी से मुर्झा के मर जाए।
जल ही तो है हम सबका जीवन,
जल ख़त्म इस धरती का अंत है,
हमे बचाना है बचाना है,
जल को प्रदुषण से बचाना है।
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हमें उम्मीद है कि आपको हमारी ये कविता पसंद आई होगी. Poem on Pollution in Hindi में हमने अपनी वेबसाइट पर आपके लिए प्यारी कविताएं लिखी हैं, अगर आपको हमारी कविता पसंद आती है तो कृपया कमेंट करें। पूरी कविता पढ़ने के लिए धन्यवाद.