हमने आपके लिए बहुत सारी कविताएं लिखी हैं, जो हमें प्रेरित करेंगी, यह कविता भी अवसरवादी है, आप लोगों के लिए उत्साहवर्धक है, इन सभी कविताओं और Poem on Flowers in Hindi में आपको अच्छी शिक्षा मिलेगी, हमने ये सभी कविताएं मनोरंजन के लिए लिखी हैं आप।
Poem on Flowers
रंग-बिरंगे फूल
प्रकृति के रंग तो देखो,
कितने अजब निराले है।
रंग-रंग के फूलों से देखो,
रंगीन इसके नज़ारे हैं।
फूलों के राजा गुलाब की,
अपनी शान निराली है।
उसकी शोभा से तो देखो,
मुस्काती डाली-डाली है।
हरसिंगार की खुश्बू से महका,
उपवन का कोना-कोना है।
जैसे प्रकृति ने बिछा दिया धरा पर,
सितारों का एक बिछौना है।
सूरजमुखी के मुख की देखो,
अजब छटा निराली है।
जैसे सूरज ने धरती पर आकर,
अपनी आभा बिखरा दी है।
बेला और चमेली की नन्ही कलियों ने भी,
अपनी नन्ही आंखों को खोला है।
फैलाकर ख़ुशबू अपनी,
सबके मन को मोहा है।
रंग-बिरंगे रंगों के फूलों से,
प्रकृति भी हुई मतवाली है।
फैलाकर चादर उसने भी हरियाली की,
धरती की सुंदरता बढ़ा दी है।
….निधि अग्रवाल
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊं
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक।
…माखनलाल चतुर्वेदी
फूल
फैलाकर अपनी सुगंध,
महकाता तन मन को,
रंग-बिरंगी दुनिया से अपनी,
सजाता उपवन को।
टूट जाये डाली से फिर भी,
न शोक मनाता जीवन में,
बन श्रंगार हर्ष से वह,
नही इठलाता एकपल को।
कभी हृदय की शोभा बनता,
कभी चरणों में शीश नवाता वो,
हर्ष सहित स्वीकार कर दायित्व,
निभाता अपने कर्तव्यों को।
क्षणिक जीवन है फिर भी उसका
व्यर्थ नही गवाता वो।
देकर अपना सर्वस्य वह,
करता सफल लघु जीवन को।
फैलाकर अपनी सुगंध,
महकाता तन मन को,
रंग-बिरंगी दुनिया से अपनी,
सजाता उपवन को।
….निधि अग्रवाल
रात का फूल
एक फूल
रात की क़िसी अन्धी गांठ मे
घाव की तरह ख़ुला हैं
किसी बंज़र प्रदेश मे
और उसक़े रंग मे ज़ादू हैं
टूट़ती हुई गृहस्थीं,
छूटती हुईं नौकरी,
अपमान और असुरक्षा
कें तनाव मे टूटते हुए मस्तिष्क़ से
निक़ली हैं कोई कविता
ज़िसके क्रोध और दुख़ और घृणा मे
क़ला हैं
खाली बर्तनो, दवाइयो की शिशियो
और मृत्यू की गहरी गन्ध से भरें
कमरें मे
हंसता हैं वह ढ़ाई साल का ब़च्चा
और उसकें दूधियां दातों मे
ग़जब की चमक हैं!
….उदय प्रकाश
नन्हा सा फूल हूँ मैं,
मेरे जीवन की यही परिभाषा है।
वीरों के पथ पर बिछ जाऊ,
बस इतनी सी अभिलाषा है।
नही चाह गहने में गूँथा जाऊ,
बन सुंदरता नारी की,
स्वयं पर मैं न इठलाऊँ।
छूकर उन पावन चरणों को बस,
उनकी चरण रज बन जाऊं,
बस इतनी सी आशा है।
नन्हा सा फूल हूँ मैं बस,
मेरी जीवन की छोटी सी परिभाषा है।
वीरों की वीर गाथाएँ गाउँ
उनकी वेदी पर चढ़ जाऊ,
लघु से अपने जीवन को,
सद कर्मो से सफल बनाऊं।
महक उठे जिससे धरती माँ का आँचल,
मेरे जीवन की यही जिज्ञासा है,
जीवन सफल समर्पित हो,
मेरे जीवन की यही अभिलाषा है।
नन्हा सा फूल हूँ मैं
मेरे जीवन की यही परिभाषा है।
वीरों के पथ पर सज जाऊ,
बस इतनी सी अभिलाषा है।
….निधि अग्रवाल
फूलों से आती खुशहाली
आओ क्यारी एक बनाएँ फूलों वाली,
घर-आँगन को फूलों से महकाने वाली।
गेंदा, जुही, चमेली सबके रंग निराले,
गुड़हल और लिली भी मन को भाने वाले,
रोपें, सींचें, करें सजग होकर रखवाली।
आओ क्यारी एक बनाएँ फूलों वाली।।
बेला की सुगंध से महकेगा हर कोना,
और ग्लैडियोलस का होगा रूप सलोना,
खिले गुलाबों से फूटेगी सुंदर लाली।
आओ क्यारी एक बनाएँ फूलों वाली।।
खुश्बू फैलेगी तो स्वच्छ हवा महकेगी,
भौंरे मँडराएँगे, चिड़िया भी चहकेगी,
नाचेगी तितली सतरंगे पंखों वाली।
आओ क्यारी एक बनाएँ फूलों वाली।।
लाल, गुलाबी, नीले, पीले फूल खिलेंगे,
हौले-हौले सुबह हवा के संग हिलेंगे,
कहते हैं फूलों से आती है खुशहाली।
आओ क्यारी एक बनाएँ फूलों वाली।।
…लायक राम ‘मा
Short Poem on Flowers in Hindi
फूलों की क्या मै बात बताऊँ,
रंग बिरंगी होते है वो।
खिलते है जब भी फूल वो,
मुस्कान चेहरे पे लाते है वो।
फिरती रहती है तितलियाँ,
जब भी सुन्दर फूल खिलते है वो।
जब भी बैठती है फूलों पर तितलियां,
बातें उनसे ही करती है वो।
फूलों के रंग में रंग जाती है,
यही तितलियाँ सुन्दर है वो।
देखते ही पकड़ने को दिल चाहता है,
वही सुन्दर तितलियाँ है वो।
मन करता है फूलों का घर मैं बनाऊ,
लेकिन नामुमकिन है वो।
देख के ही मन भर लेता हु,
वही खुबसूरत फूल है वो।
फूलों की क्या मै बात बताऊँ,
रंग बिरंगी होते है वो।
फूलों की क्यारी
रंग बिरंगी फूलों की क्यारी,
खिली खिली लगती है न्यारी।
मौसमी पुष्पों की आयी बहार,
बगिया सज धज कर गुलज़ार।।
बेला, चम्पा और महकी चमेली,
रातरानी की खुशबू खूब निराली।
जूही खिलने को हो रही बेताब,
गुलाब की अदा, जुदा अलबेली।।
प्रकृति का अनूठा देखो उपहार,
रंग- कूची लिए, खड़ा चित्रकार।
कैनवास पर, छा गई हरियाली,
फूलों को रंगने, आया बेकरार।।
लाल, गुलाबी, नीली लिए आभा
क्यारी की, बढ़ी अनुपम शोभा।
पत्तों को भी, अब हुआ गुमान,
रजनीगंधा की फैल रही प्रभा।।
आओ प्रकृति से प्यार करें,
अब इनका, हम सम्मान करें।
पौधों से ही, जीवन है हमारा,
बगिया इनसे गुलनार करें।।
….कल्याणी झा कनक
फूलों से आई है खुशबू
फूलों से आई है खुशबू,
जिंदगी को सजाई है खुशबू।
मन को मुग्ध कर आई है खुशबू,
प्रकृति को सजाई है खुशबू।
देखो बेला से खुशबू है आई,
चंपा-चमेली पुलकित मुस्काईं।
उपवन भी गुंजित हो आई,
भोर होते ही रजनीगंधा खिल आई।
कुमूद में कली भर आई,
गुलदस्ते की शोभा बढ़ाई।
गेंदा तितली के रंग इठलाते,
झूम-झूम कर सबको हर्षाते।
कमल कचनार की बात निराली,
विजय तिलक की स्वप्न सजाती।
ओढ़ौल दिव्य ज्योति जगाती,
देवों पर अर्पण को आती।
रात-रानी का बसेरा छाया,
मन में स्वप्न का दीप जलाया।
घर के मुंडेर पर मधुमालती लहराई,
चांदनी रात को चकाचौंध कर आई।
गुलाब प्रेम का बोध कराता,
एहसास को बयां कर जाता।
नित्य सवेरे फूलों को देखो,
चारो पहर खुशियों में खेलो।
फूल से सम्बंधित
हर त्यौहार में काम है आता,
पुष्प गुच्छ घर घर रोज जाता।
कभी ख़ुशी हो या दुःख की घड़ी,
सबमे फूल काम है आता।
फूलों से कभी कोई रूठ के न जाता,
फूलों के पास हर कोई है आता।
बगीचे से सफर करके ये,
शमशान भूमि तक भी ये जाता।
कोई भी पेड़ों से तोड़ ले इसको,
फूल कभी किसी को कुछ कह नहीं पाता।
जितना प्यार है वो फैलाता,
उतना कोई इंसान नहीं फैलाता।
फूलों को देख कोई भी दुखी इंसान,
जल्दी से ही खुश हो जाता।
फूल ही तो खुद के मन में गाना है गाता,
हर इंसान ये सुन नहीं पाता।
दुनिया में सुगंध फैलाता,
मन का मैल साफ़ कर जाता।
हर त्यौहार में काम है आता,
पुष्प गुच्छ घर घर रोज जाता।
फूल खिलाओ
हँसते गाते समय बिताओ,
खुशियों के पल हरदम पाओ।
जीवन को समझो इक खेला,
इसे झमेला मत बतलाओ।
कल आएगा सुखद सवेरा,
गीत ख़ुशी के मिल के गाओ।
कोयल कुहू कुहू गाएगी,
उसको सुन्दर तुम बतलाओ।
बगिया में आएगी तितली,
उस संग मिल के ख़ुशी मनाओ।
जीवन के हर कठिन समय को,
मिलजुल के सब सरल बनाओ।
तुम अपने मन की बगिया में,
शुभ विचार के फूल खिलाओ।
….महेंद्र कुमार वर्मा
गुलाब पर कविता
दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है।
रोम-रोम में खिले चमेली
साँस-साँस में महके बेला,
पोर-पोर से झरे मालती
अंग-अंग जुड़े जुही का मेला
पग-पग लहरे मानसरोवर, डगर-डगर छाया कदम्ब की
तुम जब से मिल गए उमर का खंडहर राजभवन लगता है।
दो गुलाब के फूल…
छिन-छिन ऐसा लगे कि कोई
बिना रंग के खेले होली,
यूँ मदमाएँ प्राण कि जैसे
नई बहू की चंदन डोली
जेठ लगे सावन मनभावन और दुपहरी सांझ बसंती
ऐसा मौसम फिरा धूल का ढेला एक रतन लगता है।
दो गुलाब के फूल…
जाने क्या हो गया कि हरदम
बिना दिये के रहे उजाला,
चमके टाट बिछावन जैसे
तारों वाला नील दुशाला
हस्तामलक हुए सुख सारे दुख के ऐसे ढहे कगारे
व्यंग्य-वचन लगता था जो कल वह अब अभिनन्दन लगता है।
दो गुलाब के फूल…
तुम्हें चूमने का गुनाह कर
ऐसा पुण्य कर गई माटी
जनम-जनम के लिए हरी
हो गई प्राण की बंजर घाटी
पाप-पुण्य की बात न छेड़ों स्वर्ग-नर्क की करो न चर्चा
याद किसी की मन में हो तो मगहर वृन्दावन लगता है।
दो गुलाब के फूल…
तुम्हें देख क्या लिया कि कोई
सूरत दिखती नहीं पराई
तुमने क्या छू दिया, बन गई
महाकाव्य कोई चौपाई
कौन करे अब मठ में पूजा, कौन फिराए हाथ सुमरिनी
जीना हमें भजन लगता है, मरना हमें हवन लगता है।
दो गुलाब के फूल…
….गोपालदास ‘नीरज’
लेके खड़े थे हम गुलाब उसके वास्ते
लेके खड़े थे हम गुलाब उसके वास्ते
इच्छा थी हमारी कभी निकले हमारे रास्ते
ताकि मुलाक़ात इस बहाने से हो
प्रेम की शुरुआत प्रेम फ़साने से हो
समझे गुलाब सा कोमल हमारा दिल
महके गुलाब सा उस पहली का भी संग दिल
आरज़ू मन में कई दिनों से इंतज़ार में
कई गुलाब मुरझा गए देखो हमारे प्यार में
पर सच्चे इश्क़ की यारों कौन करता है कदर यहाँ
हाथ में रखे हुए गुलाब हम रह गए वहां के वहां
गुलाब सी हसीन वो क्या उसे गुलाब दूँ
गुलाब सी हसीन वो क्या उसे गुलाब दूँ।
खुश्बू का है बाग़ वो देख देख ख्वाब लूँ।
गुजरे जब भी नज़रों से दिल में बजे गिटार
नूर उसका देखकर बढ़ता जाये प्यार
कितना चाहूँ उसको इसका क्या हिसाब दूँ
गुलाब सी हसीन वो
गुलाबो नाम रख दूँ सोचता मैं इश्क़ में
देख उसकी सुंदरता गलती ना हो जाये रश्क में
रूप के इस महल पर खुदा को आदाब दूँ
गुलाब सी हसीन वो
गुलाब से होठ है अंग अंग गुलबदन
क्या गुलाब की पायल पहना दूँ गुलाब के कंगन
गुलाबी उसका नशा और क्या शबाब दूँ
गुलाब सी हसीन वो उसको
कमल पुष्प पर कविता
खिलकर पंक में भी,
हूँ पवित्र अमृत सा।
भाव तृष्णा का न चखा,
रहकर जल से मैं भरा।
घिर कर तूफानों और आँधियों से भी,
रहा हरदम मैं डिगा।
न डरा धाराओं से ऊँची,
रहा अपने पथ पर मैं अड़ा।
कितनी आशाओं के समेटे,
उनके जीवन का सूर्य बना।
करके इतनी कठिन तपस्या,
तब कही जाकर मैं ‘कमल पुष्प’ बना।
….निधि अग्रवाल
फूल तो फूल है
खुशबू से विलुप्त एक फूल,
जिसे किसी डाल ने नहीं उगाया।
न उसको हर रोज खाद-पानी,
देकर बड़ा किया गया।
इस फूल को जन्म दिया,
किसी की मासूम नन्ही हाथों ने।
बेकार पड़े उस साम्रगी से,
जो फालतू थी।
भीड़ उमड़ पड़ी है,
खुशबू न दे तो क्या।
फूल तो फूल है।
….श्रेया कुमारी
अच्छे लगते हैं
‘फूल हमें क्या देते मम्मी,
फूल हमें अच्छे लगते हैं।
इंद्रधनुष ज्यों खिला गगन में,
कुछ वैसे मोहक लगते हैं।
‘फूल हमें देते हैं खुशबू,
दुनिया सुरभित कर देते हैं,
मम्मी बोली – ‘इनसे ही तो’
आगे चलकर फल बनते हैं।
इन्हीं फलों के बीच फूल फिर,
रूप बीज का धर लेते हैं।
जिनसे पौधे-पेड़ नए बन,
एक नई दुनिया रचते हैं।
प्राण-वायु फिर मिलती हमको,
और सभी जीवित रहते हैं।
इसीलिए तो फूल सभी को,
बहुत-बहुत अच्छे लगते हैं।
….रमेशचन्द्र पंत
ये फूल हैं जो सबके मन को भाए
वो फूल हैं जो सबके मन को भाए
खुशबू अपनी चारों ओर फैलाए
रहते है काटों के बीच
पर ना कभी शोक मनाए
घिरते हैं आंधी, तुफानों से
फिर भी ये ना डगमगाए
मुस्कुरा कर रहे सदा
ये फूल हैं जो सबके मन को भाए
…. पूजा महावर
मिट्टी जन्मा है फूल
तू कहा जा रहा है
है मित्र प्रभु के चरणों में
सजने जा रहा हूं
कभी किसी सुंदरी के बालो
में सजने जा रहा हूं
तो कभी किसी नेता के
स्वागत करने जा रहा हूं
मुझे तोड़ देना वनमाली
उस पथ पर देना फेक
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावे वीर अनेक।
पुष्प पर कविता
ये जो देख रहे हो
तुम फूलो के गुच्छे
ये भी है तुम जैसे
धरती माँ के बच्चे।
इन्हे देखकर मधुर
गीत पंछी गाते है
थकी हुई आखो में
सपने तीर जाते है।
जब तक ये है तब तक
पृथ्वी पर सुंदरता है
भोली भली परियो
की – सी कोमलता है।
पोधो की डाली पर
इनको मुश्कान दो
दुनिया के आँगन में
खुशबू को भर जाने दो।
देखो देखो फूल खिला
कूड़े पर एक फूल खिला
सुंदर पीला फूल खिला
कैसा अद्भुत फूल खिला
खूब खिला भई खूब खिला
वहाँ गली का कूड़ा पड़ता
बदबू छाई रहती है
सब इससे बच कर चलते हैं
जाने कैसे फूल खिला
कोई नहीं देखने वाला
उसे मिला है देश निकाला
खूब गंदगी में महका है
कितना सुंदर फूल खिला
खूब खिला भई खूब खिला
अजब अनोखा फूल खिला
….देवेंद्र कुमार
गुलाब और काँटें
रहता काँटों संग मैं, मेरा नाम गुलाब।
जिसके हाथों में गया, लगे देखने ख्वाब,
लगे देखने ख़्वाब, प्रेम जोड़े हैं भाते,
करते जब इजहार, सदा मुझको वे लाते।
खुशियाँ उनकी देख, नहीं कुछ मैं भी कहता।
काँटों का ये दर्द, सहन कर मैं हूँ रहता।
देते हरदम साथ हैं, मेरे सच्चे यार,
रक्षा करते है सदा, और निभाते प्यार।
और निभाते प्यार, कभी वे चुभ से जाते।
बैठे बनकर ठाठ, हाथ कोई न लगाते।
काँटों की है बात, इसे कोई नही लेते।
रखते हैं सम्भाल, साथ वो हरदम देते।
….प्रिया देवांगन
गुलाब
गुलाब का फूल, अति सुंदर और सुर्गंधित,
करते है हम, परमेश्वर के चरणो में अर्पित।
चलो महका दे जहां, गुलाब के फूल के जैसे,
सुंदरता और कोमलता मैं प्रसिद्ध हो ऐसे।
कभी बने शरबत, औषधि और कभी गुलकंद,
स्वयं की रक्षा करने को, हममें कांटे भी हो चंद।
सजावट हो या भोजन, इसके उपयोग है कहीं,
देखो इसकी आकृति, कुछ हमसे है कह रही।
इसे देखते ही, हमारे चेहरे पर आए मुस्कान,
इससे बढ़कर क्या हो, किसी का सम्मान।
हमें देख कर भी, कई चेहरे मुस्कुराए,
चलो सभी को, नम्र हृदय से अपनाएँ।
छोटा सा पौधा, हम सब अपने घर में लगाए,
क्योंकि हर बगीचे की, रौनक ये कहलाए।
कितना लाभदायक और उपयोगी है यह,
हमें जीने का, सलीका सिखलाए।
….डॉ. माध्वी बोरसे
मेरी बगिया
मेरी बगिया में खिले नन्हे नन्हे फूल।
लाल पीले नीले और न्यारे न्यारे फूल।।
मन के दर्पण को लुभाते फूल।
कभी अधखिले तो कभी मुरझाए फूल।।
फूलों से क्यारी की शोभा लगती है प्यारी प्यारी।
इसकी खुश्बू से महकती है
मेरे आंगन की फूलवारी।।
चम्पा चमेली गेंदा और जूही के फूल।
नन्ही नन्ही बेलों में लटकते फूल।।
सुबह सुबह अपनी खुश्बू बिखराते फूल।
क्यारी में धरती की प्राकृतिक छटा को निहारते फूल।।
भंवरों की गुंजन से चहकते फूल।
ओस की बूंद में भीगे फूल।।
चांदनी रात में रात की रानी खुश्बू जानें कहां से लाती है?
चोरी चोरी चुपके चुपके सारी बगिया को महकाती हैं।।
पवन झूला झूलाती है
चिड़ियां मीठे मीठे राग सुनाती है।।
भंवरे थपकियां देते हैं।
रंगबिरंगी तितलियाँ फूलों पर मंडराती है।
मधुमक्खियां भी फूलों की सुगन्ध से बेसुध होकर खींची चली आती हैं।।
फूलों की मासूम मुस्कान भोली हंसी प्रत्येक जनों को मंत्र मुग्ध कर देती है।
बच्चे नर नारी सभी को सौन्दर्य की अद्भुत छटा से आत्मविभोर कर देती है।।
सिक्किम के सुन्दर फूल
हिम पर्वत पर मिलने वाला,
फूल बड़े मतवाले।
छोटी झाड़ी से पौधे तक,
इसके रूप निराले।।
छह हजार मीटर ऊंचाई,
तक यह पाया जाता।
धीमी गति से बढ़कर अपना,
सुंदर रूप सजाता।।
मूल रूप से सिक्किम का है,
सर्दी सहने वाला।
मोटे डंठल चौड़ी पत्ती,
पौधा बड़ा निराला।।
आते ही गरमी का मौसम,
फूल अनोखे आते।
पहले होते ये घंटी से,
फिर गुलाब हो जाते।।
अंग सभी उपयोगी इसके,
औषधि खूब बनाते।
रोग भयानक लगने वाले,
छूमंतर हो जाते।।
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