Poem on Diwali in Hindi | दिवाली पर कविता हिंदी में

Poem on Diwali in Hindi

दिवाली का त्यौहार हम बहुत धूमधाम से मनाते हैं क्योंकि इसी दिन श्री रामचन्द्र अपना 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या आये थे। इसी खुशी में हम रोशनी का त्योहार दिवाली मनाते हैं, जहां सभी के घरों में दीपक जलाए जाते हैं और हम अपने घरों को सजाते भी हैं। इसे बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया है. हमने आपके लिए Poem on Diwali in Hindi लिखी है।

Poem on Diwali in Hindi

दिवाली रोज मनाएं
फूलझड़ी फूल बिखेरे

चकरी चक्कर खाए
अनार उछला आसमान तक

रस्सी-बम धमकाए
सांप की गोली हो गई लम्बी

रेल धागे पर दौड़ लगाए
आग लगाओ रॉकेट को तो

वो दुनिया नाप आए
टिकड़ी के संग छोटे-मोटे

बम बच्चों को भाए
ऐसा लगता है दिवाली
हम तुम रोज मनाएं।

….संदीप फाफरिया ‘सृजन’

रोशनी का त्यौहार दिवाली
दीपो का श्रृंगार दिवाली
खुशियों की बहार दिवाली
सबके मन में है, दिवाली

चौदह वर्ष की किया वनवास
लौटकर आए घर को श्रीराम
अयोध्या के मन को भा गए राम.
घर सजे सजे सब आँगन
सज गए सब बाजार
पटाके, फुलझड़िया और बम्ब

सबके मन को करता तंग
एक के मिलता एक बेसंग
पहन-पहनकर नए कपडे सब

आए त्यौहार मनाने को
देखो आई है, दिवाली ये
गीत सभी को गाने को.

जगमग-जगमग

Poem on Diwali in Hindi

हर घर, हर दर, ब़ाहर, भींतर,
नीचें ऊ़पर, हर जग़ह सुघ़र,
कैंसी उजियाली हैं पग़-पग़,
जग़मग जगमग़ जगमग़ जगमग!

छज्जो मे, छत मे, आलें मे,
तुलसी कें नन्हे थाले मे,
यह कौंन रहा हैं दृग़ को ठग़?
जगमग़ जगमग़ जगमग जगमग़!

पर्वत मे, नदियो, नहरो मे,
प्यारीं प्यारीं सी लहरो मे,
तैरतें दीप कैंसे भग-भग़!
जगम़ग जगमग़ जगमग जगमग़!

राजा के घर, कंग़ले कें घर,
है वहीं दीप सुन्दर सुन्दर!
दीवाली की श्रीं हैं पग-पग़,
जगमग़ जगमग जगमग़ जगमग

….सोहनलाल द्विवेदी

Poem on Diwali in Hindi for Nursery

मन सें मन क़ा दीप ज़लाओं
जग़मग-जग़मग दि‍वाली मनाओं

धनियो कें घर बन्दनवार सज़ती
निर्धंन कें घर लक्ष्मी न ठहरतीं
मन सें मन क़ा दीप ज़लाओं
घृणाद्वेष क़ो मिल दूर भगाओं

घरघर ज़गमग दीप ज़लतें
नफरत कें तम फिर भी न छंटतें
जग़मग-जग़मग मनतीं दिवाली
गरीबो की दिख़ती हैं चौख़ट ख़ाली

खूब़ धूम धड़क़ाके पटाखें चटख़ते
आकाश मे ज़ा उपर राकेंट फूटतें
कांहे की कैंसी मन पाएं दिवाली
आंटी हो जिसकी पैंसे से खाली

गरीब़ की कैंसे मनेगी दीवाली
खानें को ज़ब हो केवल रोटी ख़ाली
दीप अपनी बोली ख़ुद लग़ाते

ग़रीबी सें हमेशा दूर भाग़ जातें
अमीरो की दहलीज़ सजातें
फिर कैंसे मना पाएं गरीब़ दि‍वाली
दीपक़ भी जा बैंठे है बहुमजिलो पर
वही झिलमिलाती है रोशनिया

पटाखें पहचानानें लगें है धनवानो कों
वही फूटा क़रती आतिशब़ाजिया
यदि एक़ निर्धंन क़ा भर दें जो पेट
सब़से अच्छी मनती उसकीं दि‍वाली

हजारो दीप जग़मगा जाएगें जग़ मे
भूखें नगों को यदि रोटी वस्त्र मिलेगे
दुआओ सें सारे ज़हा को महकाएगें
आत्मा कों नव आलोक़ से भर देगे

फुटपाथो पर पड़ें रोज़ ही सड़तें है
सजातें जिन्दगी की वलिया रोज़ हैं
कौनसा दीप हों जाएं गुम न पता
दिन होनें पर सोच विवश हों ज़ाते|

….डॉ मधु त्रिवेदी

“मन से मन का दीप जलाओ“

छोड़-छाड़ के द्वेष भाव को,
मीत प्रीत की रीत निभाओ,
दिवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ…

क्या है तेरा क्या है मेरा,
जीवन चार दिन का फेरा,
दूर कर सको तो कर डालो,
मन का गहन अँधेरा,

निंदा नफरत बुरी आदतों,
से छूटकारा पाओ…
दिवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ…

खूब मिठाई खाओ छक कर,
लड्डू, बर्फी, चमचम, गुझिया..
पर पर्यावरण का रखना ध्यान,
बम कहीं ना फोड़े कान..

वायु प्रदुषण, धुंए से बचना,
रौशनी से घर द्वार को भरना..
दिवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन के दीप जलाओ…

चाँद सूरज से दो दीपक,
तन मन से उजियारा कर दें..
हर उपवन से फूल तुम्हारे
जब तक जियो शान से,

हर सुख, हर खुशाली पाओ,
दिवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ…

“दिपावाली का पर्व है मतवाला“

सोने की बाती, चाँदी सा उजाला,
दीपावली का पर्व है मतवाला.
बम फटे और चले पटाखे,
रौशनी से मूंद-मूंद गयी आँखे.

अमावस का धुला दाग काला,
दीपावली का पर्व है मतवाला.
फसल आई घर शुभ यही लाभ,
हिसाब नए शुरू यही रंग आम.

बधाई मिठाई का चला है दौर,
साफ़ स्वच्छता है हर ठौर.
नया कैलेंडर ये बतलाता,
दीपावली का पर्व है मतवाला.

दिवाली की रात है आई
दीपों की पंक्ति में हँसती,
दिवाली की रात है आई.
दीपा, राजू ने मिल-जुल कर,

घर, आँगन की करी सफाई.
पूजा की थाली में सजते,
मेवा, कुमकुम, फुल, मिठाई.
फुलझड़ी नाचे मतवाली,

नाचे फिरकी और हवाई.
खिल खिल करके हँसे अनार,
बम्बों ने है धूम मचाई.
पुण्य सदा जीता है जग में,

यही तो है अटल सच्चाई.
प्रेम प्यार का भाव बताती,
दिवाली की रात है आई.

उस रोज़ दिवाली होती हैं

ज़ब मन मे हों मौज़ ब़हारो की
चमकाए चमक़ सितारो की,
ज़ब ख़ुशियो के शुभ घेरें हो
तन्हाईं मे भी मेलें हो,
आनन्द की आभा होती हैं
उस रोज ‘दिवाली’ होती हैं,
ज़ब प्रेम कें दीपक़ ज़लते हो
सपनें ज़ब सच मे ब़दलते हो,
मन मे हों मधुरता भावो की
ज़ब लहकें फ़सले चावो की,
उत्साह की आभा होती हैं
उस रोज़ दिवाली होती हैं,
ज़ब प्रेम सें मीत बुलाते हो
दुश्मन भी ग़ले लगातें हो,
ज़ब क़ही किसी सें वैर न हों
सब अपनें हो, कोईं ग़ैर न हों,
अपनत्व की आभा होती हैं
उस रोज दिवाली होती हैं,
ज़ब तन-मन-ज़ीवन सज़ जाये
सद्भाव कें बाजें बजं जाये,
महकाएं ख़ुशबू ख़ुशियो की
मुस्काए चंदनियां सुधियो की,
तृप्ति कीं आभा होती हैं
उस रोज ‘दिवाली’ होती हैं|

दिवाली पर मार्मिक कविता

इस दिवाली मैं नहीं आ पाऊँगा,
तेरी मिठाई मैं नहीं खा पाऊँगा,
दिवाली है तुझे खुश दिखना होगा,
शुभ लाभ तुझे खुद लिखना होगा।

तू जानती है यह पूरे देश का त्योहार है
और यह भी मां कि तेरा बेटा पत्रकार है।

मैं जानता हूँ,
पड़ोसी के बच्चे पटाखे जलाते होंगे,
तोरन से अपना घर सजाते होंगे,
तु मुझे बेतहाशा याद करती होगी,
मेरे आने की फरियाद करती होगी।

मैं जहाँ रहूँ मेरे साथ तेरा प्यार है,
तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है।

भोली माँ मैं जानता हूँ,
तुझे मिठाईयों में फर्क नहीं आता है,
मोलभाव करने का तर्क नहीं आता है,
बाजार भी तुम्हें लेकर कौन जाता होगा,
पूजा में दरवाजा तकने कौन आता होगा।

तेरी सीख से हर घर मेरा परिवार है
तू समझती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है|

मैं समझता हूँ,
माँ बुआ दीदी के घर प्रसाद कौन छोड़ेगा,
अब कठोर नारियल घर में कौन तोड़ेगा,

तू गर्व कर माँ
कि लोगों की दिवाली अपनी अबकी होगी,
तेरे बेटे के कलम की दिवाली सबकी होगी।

लोगों की खुशी में खुशी मेरा व्यवहार है
तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है।

Best Poem on Diwali in Hindi

बचपन बाली दीवाली

हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं।
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं।
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं।
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं ।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।

दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं ।
चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचाते हैं।
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं।
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।

बिजली की झालर छत से लटकाते हैं।
कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते हैं।
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं।
दो-चार बिजली के झटके भी खाते हैं।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।

दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है।
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है।
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं।
बार-बार बस गिनते जाते है।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।

धनतेरस के दिन कटोरदान लाते है।
छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं।
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं।
प्रसाद की थाली पड़ोस में देने जाते हैं।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।

माँ से खील में से धान बिनवाते हैं ।
खांड के खिलोने के साथ उसे जमके खाते है।
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है ।
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं ।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।

दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं।
कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं ।
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं ।
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं ।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।

बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं ।
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं।
सामान से नहीं, समय देकर सम्मान जताते हैं।
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं ।
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ….।

….गुलज़ार

मुस्कुराहट के दीये जलाते रहे,
कुछ ऐसी दीवाली मनाते रहें।

अपनों को अपने सीने से लगा कर,
प्यार मोहब्बत के लिए जलाकर।
हंसते रहे, मुस्कुराते रहे,
कुछ ऐसी दिवाली मनाते रहें।

छोटे-बड़ों का भेद मिटाकार,
सबको अपने गले से लगा कर।
भूंखो को खाना खिलाते रहें,
कुछ ऐसे दीवाली मनाते रहें।

जो हारें हो खुद से, खुद से हो टूटें,
जो नाराज़ होकर बैठें हों रूठे।
इस मौके पर उनको मनाते रहें,
कुछ ऐसे दीवाली मनाते रहें।

टूट जाएं सपने तो न हो परेशां,
जीतें या हारें खड़े हों दोबारा।
उम्मीदों के दीये जलाते रहें।
कुछ ऐसे दीवाली मनाते रहें।

त्यौहार मनाएं अपनो के संग,
रंग जाएं सब खुशियों के रंग।
हर दीवाली को घर अपने जाते रहें।
कुछ ऐसे दीवाली मनाते रहें।

….सौरभ शुक्ला

धरती पर उतरे हैं तारे आज रात ये बहुत निराली है
जगमग-जगमग चमक रही आयी रौशन दिवाली है।

खुशियाँ चारों और हैं फैली सबके मन में इक चाहत है
हो जाए सारी साफ सफाई तब जाकर कहीं राहत है,
रंग रंगाई भी कर दी घर की बस रंगोली सजने वाली है
जगमग-जगमग चमक रही आयी रौशन दिवाली है।

बाजारों में भीड़ लगी है धड़ाधड़ बिक रही है मिठाई
बर्फी ही लेनी है कहकर बच्चे कर रहे हैं ढिठाई,
लेकर पटाखे आवाजों वाले चाल ये चले मतवाली हैं
जगमग-जगमग चमक रही आयी रौशन दिवाली है।

पूजा है का अब समय हुआ अँधियारा होने वाला है
भगवान् की मूर्तियों पर हमने पहले ही चढ़ा दी माला है,
खोल दो सारे दरवाजे कि माँ लक्ष्मी जी आने वाली हैं
जगमग-जगमग चमक रही आयी रौशन दिवाली है।

दशहरे वाले दिन राम जी ने रावण का नाश किया था
कार्तिक अमावस्या के दिन उन्होंने पूरा वनवास किया था,
इसी ख़ुशी में रात अँधेरी तब से बन गयी दीपोंवाली है
जगमग-जगमग चमक रही आयी रौशन दिवाली है।

पटाखे भी जलाएंगे हम और राकेट को भी उड़ायेंगे
परिवार के साथ में बैठके ढेर सारी मिठाई खायेंगे,
खुशियों में सब झूम रहे हैं चाल हुयी सबकी मतवाली है
जगमग-जगमग चमक रही आयी रौशन दिवाली है।

झूठ न बोले, न पाप करें हम इस दिवाली सौगंध ये खाएं
पढ़े-लिखें, सबको पढ़ायें ज्ञान का प्रकाश हम फैलाएं,
जुए और शराब का विरोध करें जो कि समाज पर गाली है
जगमग-जगमग चमक रही आयी रौशन दिवाली है।

मन से मिटा दे बैर हम बस प्यार का पाठ जग को पढ़ायें
भारत का नाम रोशन कर के सारे जहाँ में हम चमकाएं,
दिखा दें हम सबको कि अपनी हर इक अदा निराली है
जगमग-जगमग चमक रही आयी रौशन दिवाली है।

खुशियों की दिवाली

लौटे थे जब राम अयोध्या,
करके रावण का संहार।
असत्य पर सत्य की जीत हुई थी,
मिटा था बुराई का अंधकार।

फैलाने उजियाला सच्चाई का,
खुशियों की दीपावाली आई थी।
नई उमंग से भर गये थे मन,
घर आंगन में खुशहाली आयी थी।

राम सिया संग अयोध्या जब आये,
पुलकित हो गया घर आँगन।
सजाके दीपों की माला से नगरी,
खुशियों की दीवाली आयी थी।

राम राज्य आया था फिर से,
जन-जन में थी खुशियाली।
मानो लगता था सुने उपवन में,
आ गयी हो फिर से हरियाली।

इस हरियाली की शोभा बनने,
खुशियों की दीवाली आयी थी।
कह उठे जिससे दीवाली,
सतयुग जैसी इस युग में भी आई थी।

पावन पर्व को आओं,
हम सब मिलकर मनाए।
जलाए दीप ख़ुशियों के घर-आंगन में।
इस धरती को स्वर्ग बनाये।

….निधि अग्रवाल

Funny Poem on Diwali in Hindi

दीपशिखाओ तुम जलने का
थोड़ा सा उन्माद जगाओ
स्वयं के तन को स्वाहा कर
उज्जवल सा आह्लाद जगाओ.

शेष उजास अवशेष उजास हो
निशा के आचल में प्रकाश हो
दिवस दीप का ऋणी हो जाए
अमावस्या में दीप्त आकाश हो

दीप दीपिका की अंजुरी में
अँधेरी रात का तर्पण हो
रोम-रोम पुलकित हो सबका
ह्रद्य ह्रद्य भी अर्पण हो

गोधुली वेला तिलक लगाकर
रजनी का अभिवंदन कर दो
दिनकर अपने नयन झुकाकर
इस त्यौहार का वन्दन कर दो

इस अंधियारी पगडंडी पर
पग-पग पर कोई शूल लगा हो
दीप प्रदीप से प्रदीप्त पद पर
चलकर तुम भी भाग्य जगाओ

कलियुग में कोई रामावतार हो
सबरी के जो झूठे बेर खाए
न्याय प्रत्यचा को खीचकर
रावण पर जो तीर चलाएं

हर दीपावली हर दशहरा
हर कोई विशवास जगाओ
ह्रद्य का रावण जल जाए
पुतले को अब आग लगाओ

दिवाली पर छोटी सी कविता
दिवाली आई दिवाली आई
सब बच्चो के मन को भाई
किसी ने छोड़े खूब फटाखे
किसी ने खाई खूब मिठाई.

दीवाली आई, दिवाली आई
गम के अंधेरो से घबराना मत
ज्ञान का दीपक जलाए रखना
उम्मीद की किरण दिल में जगाए रखना
अँधेरे से घबराना मत.

ज्ञान का दीप जलाए रखना
अँधेरे पर उजाले का पैगाम लाइ है
दीवाली आई दीवाली आई
बच्चो घर को साफ़ रखो

गंदगी न रहने पाए आस-पास
स्वच्छता में ही महालक्ष्मी करती निवास
दीपावली की सबकों हार्दिक है बधाई
दीवाली आई दीवाली आई
सब बच्चो के मन को भाई

….नरेंद्र कुमार

आई है दीपावली, बाँटो खुशियाँ प्यार।
दीपक से दीपक जला, दूर करो अँधियार॥1॥

लौटे आज अवधपुरी, राम काट वनवास।
झूम उठी नगरी सकल, मन में भर उल्लास॥2॥

द्वारे रंगोली बनी, मन में भरे उमंग।
गणपति घर ले आइये, लक्ष्मी जी के संग॥3॥

रिद्धि सिद्धि को साथ ले, घर में करो प्रवेश।
बाट तिहारी जोहते, लक्ष्मी और गणेश॥4॥

बरसों से है चल रही, अम्बर ये ही रीत।
होय बुराई पर सदा, अच्छाई की जीत॥5॥

रावण सम भाई नहीं, देखो सकल जहान।
जिसने बहना के लिए, दे दी अपनी जान॥6॥

अवधपुरी में आज तो, छाई अजब बहार।
बैठी है सारी प्रजा, आँख बिछाये द्वार॥7॥

नाचो गाओ खूब री, सखी मंगलाचार।
आज अवध में हो रहा, पुनः राम अवतार॥8॥

आज जला सबने दिये, सजा लिए हैं द्वार।
ताकि राम के पाँव में, चुभे न कोई ख़ार॥9॥

अपनी ताक़त पे कभी, करना नहीं गुमान।
अंहकार बन छीन ले, ये तो सबके प्राण॥10॥

छोड़ पटाखे मत करो, पर्यावरण ख़राब।
अगली पीढ़ी को सखा, देना हमें जवाब॥11॥

….अभिषेक कुमार अम्बर

अपने घर को तो हमने
चिरागों से रौशन कर दिया
दिये जलाएं ढेरों
और अमावस का सारा तम
पल भर में हर लिया।

माँ लक्ष्मी के स्वागत की
सारी तैयारी कर ली
मिठाई और मेवों से
पूजा की थालियाँ भर ली।

छोड़े ढ़ेर सारे पटाखे
और फुलझड़ियाँ
दोस्तों और रिश्तेदारों को दी
ढ़ेरों बधाईयाँ।

कर दी मीठे पकवानों की
थालियाँ खाली
लो मन गयी हमारी
एक और दिवाली।

पर ना जाने कितने घर हैं
जहाँ आज भी दिया जला नहीं
ना जाने कितनी हैं आँखें
जिनमें कोई ख़्वाब अब तक पला नहीं।

क्या सिर्फ अपने घर को रौशन कर देने से
दिवाली मन जाती है ?
दिवाली है बुराई पर अच्छाई की
विजय का प्रतीक
क्या सिर्फ लक्ष्मी पूजन से
हमारे कर्तव्यों की छुट्टी हो जाती है ?

रोशन कर दो इस दिवाली
अपने-अपने अंतर्मन को
और हर लो उन सबके अंधरे
जो जीते हैं सुबह शाम तम को।
ताकि बन जाए उनकी भी ये शाम निराली
और मन जाए हमारी एक सार्थक दिवाली।

….मोनिका जैन ‘पंछी’

दीपो से महके संसार
फुलझड़ियो की हो झलकार
रंग-बिरंगा है आकाश
दीपों की जगमग से आज
हँसते चेहरे हर कहीं
दिखते है प्यारे-प्यारे से
दीवाली के इस शुभ दिन पर
दीपक लगते है प्यारे से |
मुन्ना- मुन्नी गुड्डू-गुड्डी ,
सबके मन में है हसी-ख़ुशी
बर्फी पेठे गुलाब जामुन पर
देखो सबकी नज़र गड़ी
बजते बम रोकेट अनार पटाखे |
दिखते है प्यारे-प्यारे से
दीवाली के इस शुभ-दिन पर
दीपक लगते है प्यारे से |
मन में ख़ुशी दमकती है
होठो से दुआ निकलती है
इस प्यारे से त्यौहार में
आखें ख़ुशी से झलकती है
आओ मिलकर अब हम बाटें
हँसी-ख़ुशी हर चेहरे में
दीवाली के इस शुभ-दिन पर
दीपक लगते है प्यारे से |

आओ फिर से दिया जलाएं

आओं फिर सें दिया ज़लाए
भरी दुपहरीं मे अन्धियारा
सूरज़ परछाईं से हारा
अंतर-तम क़ा नेह निचोड़े
ब़ुझी हुईं बाती सुलग़ाए।
आओं फिर सें दिया जलाए

हम पड़ाव कों समझें मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखो से ओझल
वर्तमान कें मोहज़ाल मे
आने वाला क़ल न भुलाए।
आओं फिर सें दिया जलाएं।

आहुति ब़ाकी यज्ञ अधूरा
अपनो के विघ्नो ने घेरा
अन्तिम ज़य का वज्र ब़नाने
नव दधीचि हड्डिया ग़लाए।
आओं फिर सें दिया जलाएं

….अटल बिहारी वाजपेयी

Short Poem on Diwali in Hindi

आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश।
दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश।।
सुख देता परिवेश,प्रगति के पथ खुल जाते।
करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती।
जीवन हो आसान, एकता जब भी आती।।

दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज।
मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज।।
यही माँग है आज,जगत में हो उजियारा।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएं भाईचारा।
‘ठकुरेला’ कविराय ,भले हो नृप या चाकर।
चलें सभी मिल साथ,प्रेम के दीप जलाकर।।

जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती।
‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा।।

दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते।
‘ठकुरेला’ कविराय,बजी खुशियों की ताली।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली।।

….त्रिलोक सिंह ठकुरेला

दिवाली की रात है आई

दीपों की पंक्ति में हँसती,
दिवाली की रात है आई.

दीपा, राजू ने मिल-जुल कर,
घर, आँगन की करी सफाई.

पूजा की थाली में सजते,
मेवा, कुमकुम, फूल, मिठाई.

फूलझड़ी नाचे मतवाली,
नाचे फिरकी और हवाई.

खिल खिल करते हँसे अनार,
बम्बों ने है धूम मचाई.

पुण्य सदा जीता है जग में,
यही तो है अटल सच्चाई.

प्रेम प्यार का भाव बताती,
दिवाली की रात है आई.

….राजेन्द्र निशेश

दीप पर्व

है दीप पर्व आने वाला
हमको भी दीप जलाना है
मन के अंदर जो बसा हुआ
सारा अंधियार मिटाना है

हम दीप जला तो लेते हैं
बाहर उजियारा कर लेते
मन का मंदिर सूना रहता
बस रस्म गुजारा कर लेते

इस बार मगर कुछ नया करें
अंतस का दीप जगाना है

बाहर का अंधियार मिटा
फिर भी ये राह अबूझी है
जब तक अंतर्मन दीप बुझा
देवत्व राह अनबूझी है

सद्ज्ञान राह फैलाकर के
सारा मानस चमकाना है
है दीप पर्व आने वाला।

….देवपुत्र

जगमग सबकी मने दिवाली

Poem on Diwali in Hindi

जगमग सबकी मने दिवाली,
खुशी उछालें भर-भर थाली।
खील खिलौने और बताशे,
खूब बजाएं बाजे ताशे।
ज्योति-पर्व है,ज्योति जलाएं,
मन के तम को दूर भगाएं।
दीप जलाएं सबके घर पर,
जो नम आँखें उनके घर पर।
हर मन में जब दीप जलेगा,
तभी दिवाली पर्व मनेगा।
खुशियाँ सबके घर-घर बाँटें,
तिमिर कुहासा मन का छाँटें।
धूम धड़ाका खुशी मनाएं,
सभी जगह पर दीप जलाएं।
कोई कोना ऐसा हो ना,
जिसमें जलता दीप दिखे ना।
देखो, ऊपर नभ में थाली,
चन्दा के घर मनी दिवाली।
देखो, ढ़ेरों दीप जले हैं,
नहीं पटाखे वहाँ चले हैं।
कैसी सुन्दर हवा वहाँ है,
बोलो कैसी हवा यहाँ है।
सुनो, पटाखे नहीं चलाएं,
धुआँ, धुन्ध से मुक्ति पाए।

…आनन्द विश्वास

जल, रे दीपक, जल तू
जिनके आगे अँधियारा है,
उनके लिए उजल तू।

जोता, बोया, लुना जिन्होंने
श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने
बत्ती बँटकर तुझे संजोया,
उनके तप का फल तू
जल, रे दीपक, जल तू।

अपना तिल-तिल पिरवाया है
तुझे स्नेह देकर पाया है
उच्च स्थान दिया है घर में
रह अविचल झलमल तू
जल, रे दीपक, जल तू।

चूल्हा छोड़ जलाया तुझको
क्या न दिया, जो पाया, तुझका
भूल न जाना कभी ओट का
वह पुनीत अँचल तू
जल, रे दीपक, जल तू।

कुछ न रहेगा, बात रहेगी
होगा प्रात, न रात रहेगी
सब जागें तब सोना सुख से
तात, न हो चंचल तू
जल, रे दीपक, जल तू!

…..मैथिलीशरण गुप्त

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मन से मन का दीप जलाओ
मन से मन का दीप जलाओ
जगमग-जगमग दि‍वाली मनाओ

धनियों के घर बंदनवार सजती
निर्धन के घर लक्ष्मी न ठहरती
मन से मन का दीप जलाओ
घृणा-द्वेष को मिल दूर भगाओ

घर-घर जगमग दीप जलते
नफरत के तम फिर भी न छंटते
जगमग-जगमग मनती दिवाली
गरीबों की दिखती है चौखट खाली

खूब धूम धड़काके पटाखे चटखते
आकाश में जा ऊपर राकेट फूटते
काहे की कैसी मन पाए दिवाली
अंटी हो जिसकी पैसे से खाली
गरीब की कैसे मनेगी दीवाली
खाने को जब हो कवल रोटी खाली
दीप अपनी बोली खुद लगाते

गरीबी से हमेशा दूर भाग जाते
अमीरों की दहलीज सजाते
फिर कैसे मना पाए गरीब दि‍वाली
दीपक भी जा बैठे हैं बहुमंजिलों पर
वहीं झिलमिलाती हैं रोशनियां

पटाखे पहचानने लगे हैं धनवानों को
वही फूटा करती आतिशबाजियां
यदि एक निर्धन का भर दे जो पेट
सबसे अच्छी मनती उसकी दि‍वाली

हजारों दीप जगमगा जाएंगे जग में
भूखे नंगों को यदि रोटी वस्त्र मिलेंगे
दुआओं से सारे जहां को महकाएंगे
आत्मा को नव आलोक से भर देगें

फुटपाथों पर पड़े रोज ही सड़ते हैं
सजाते जिंदगी की वलियां रोज है
कौन-सा दीप हो जाए गुम न पता
दिन होने पर सोच विवश हो जाते|

…..डॉ मधु त्रिवेदी

जलाई जो तुमने-है ज्योति

जलाई जो तुमने-
है ज्योति अंतस्तल में ,
जीवन भर उसको
जलाए रखूँगा |

तन में तिमिर कोई
आये न फिर से,
ज्योतिगर्मय मन को
बनाए रखूँगा |

आंधी इसे उडाये नहीं
घर कोइ जलाए नहीं
सबसे सुरक्षित
छिपाए रखूँगा |

चाहे झंझावात हो,
या झमकती बरसात हो
छप्पर अटूट एक
छवाए रखूँगा |

दिल-दीया टूटे नहीं,
प्रेम घी घटे नहीं,
स्नेह सिक्त बत्ती
बनाए रखूँगा |

मैं पूजता नो उसको ,
पूजे दुनिया जिसको ,
पर, घर में इष्ट देवी बिठाए |

Poem on Pollution Free Diwali in Hindi

‘दिवाली की खुशियाँ’

आओ सब मिलकर दिवाली मनाते है,
साथ मिलकर खुशी के गीत गाते है।
इन रंगबिरंगे दिपो को जलाते है,
दिवाली की मनमोहक खुशियाँ मनाते है।
दिवाली का यह त्योहार अनोखा,
जो लाता है खुशियों का झरोखा।

इस दिन सब-सबको गले लगाते है,
सारे गिले-शिकवों को भूलाते है।
यह दिन बिछड़ो को अपनों से मिलाता है,
छुट्टी का यह दिन अपनो को पास लाता है।
इसी लिए तो इसे कहते हैं दिपो की आवली,
क्योंकि इसकी मनमोहक खुशिंया है निराली।

सब मिलकर मानते हैं दिवाली का यह त्योहार,
क्योंकि यह विशेष त्योहार वर्ष में आता एक बार।
जहा देखो हर ओर दीपक और पटाखे जल रहे,
हर ओर खुशियों की छंटा बहार को मिल रही।
तो आओ हम सब मिलकर खुशियों के दीप जलाये,
दिवाली के इस त्योहार को अपने ह्रदय में बसाये।

….योगेश कुमार सिंह

आशाओं की दिवाली

घर-मंदिर के आंगन में,
दिये हमने बहुत जलाएँ।
अब अँधियारे से मन में,
आओ आशाओं के दीप जलाएँ।
फैला है जो तम अज्ञानता का,
आओ उसको हम दूर भगाए।
सत्य का उजियाला हो हर तरफ,
आओ सत्यता का मार्ग अपनाएं।
ख़ुशियों की छोड़े फुलझड़ियाँ,
और मुस्कानों को फैलाये।
सहयोग की बाँटे मिठाइयाँ,
जीवन सबका मृदुल बनाए।
दीपों की दीवाली न हो ये केवल,
सबके जीवन में उजियाला लाए।
नई आशाओं की दिवाली को,
आओ हम सब सफल बनाए।
घर-मंदिर के आँगन में,
आओं ख़ुशियों के हम दियें जलाएँ।
अँधियारे से मन में सबके,
आओ आशाओं के दीप जलाएँ

….निधि अग्रवाल

दीपों की पंक्ति

दीपों की पंक्ति को देखो,
जगमग जगमग करती है।
दूर कर अंधकार को,
अनंत रौशनी से भरती है।
झिलमिल करते दीप अच्छे लगते है,
जैसे अम्बर में तारें हो।
बिखरें है मानो जैसे,
मोतियों की कोई कतारें हो।
लगते कभी जुगनू के जैसे,
जलना-बुझना और बुझ के जल जाना।
लगता ये दीपों का खेल भी,
कितना मनोरम और निराला।
ये दीपों की पंक्ति ही,
हर वर्ष दीवाली लाती है।
भर कर जीवन में हर्ष और उल्लास,
ख़ुशियों से हमें सजाती है।
आओं हम भी अपने जीवन को,
दीपों की एक पंक्ति बनायें।
एकता और समता की बाती से,
सबके जीवन को हर्षाये।

जब प्रेम के दीपक जलते हों

उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है ।
जब मन में हो मौज बहारों की,
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी मेले हों,
आनंद की आभा होती है,
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है ।

जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फ़सलें चावों की,
उत्साह की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।

जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहींं किसी से वैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।

जब तन-मन-जीवन सज जाएं
सद्-भाव के बाजे बज जाएं,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की आभा होती है
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है।

….अटल बिहारी वाजपेयी

शाम सुहानी रात सुहानी, दीवाली के दीप जले!

नई हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले,
शाम सुहानी रात सुहानी दीवाली के दीप जले!
धरती का रस डोल रहा है दूर-दूर तक खेतों के,
लहराये वो आंचल धानी दीवाली के दीप जले!

नर्म लबों ने ज़बानें खोलीं फिर दुनिया से कहन को,
बेवतनों की राम कहानी दीवाली के दीप जले!
लाखों-लाखों दीपशिखाएं देती हैं चुपचाप आवाज़ें,
लाख फ़साने एक कहानी दीवाली के दीप जले!

निर्धन घरवालियां करेंगी आज लक्ष्मी की पूजा,
यह उत्सव बेवा की कहानी दीवाली के दीप जले!
लाखों आंसू में डूबा हुआ खुशहाली का त्योहार,
कहता है दुःखभरी कहानी दीवाली के दीप जले!

कितनी मंहगी हैं सब चीज़ें कितने सस्ते हैं आंसू,
उफ़ ये गरानी ये अरजानी दीवाली के दीप जले!
मेरे अंधेरे सूने दिल का ऐसे में कुछ हाल न पूछो,
आज सखी दुनिया दीवानी दीवाली के दीप जले!

तुझे खबर है आज रात को नूर की लरज़ा मौजों में,
चोट उभर आई है पुरानी दीवाली के दीप जले!
जलते चराग़ों में सज उठती भूके-नंगे भारत की,
ये दुनिया जानी-पहचानी दीवाली के दीप जले!

धूम धड़ाके वाली दिवाली (फनी)

धूम धड़ाके वाली आ गई जी देखो दिवाली।
फोड़ पटाखे करा पुताई कर गई जेबें खाली।।

खाली जेबों में पहले से ही था दो आना चाराना।
मोबाइल पहले से बोल रहा था रिचार्ज को बचाना।।

बचाना जुगनू की गर्लफ्रेंड बोली तुम्हे यदि है प्यार।
फूलझड़ी तो कहते हो मेकअप के खर्चे को रहो तैयार।।

तैयारी ऐसी रामू की वाइफ की जरूरतें भी जेब गई चूस।
ऊपर से उसके बच्चे बोले हे बाप मेरा बड़ा कंजूस।।

कंजूसी से किया खर्चा सबने पटाखे चलाकर चार।
अब भरोसे बैठे मैय्या लक्ष्मी वैभव देगी उनको अपार।।

अपार वैभव के साथ शहर में लक्ष्मी मैय्या आई।
सबके मुंह पर मास्क देख किसको दें समझ ना पाई।।

पाता देख कालू बोला माँ है प्रदुषण बिमारियों का जाल।
दे दो माँ हमें बिना देखे चेहरा इस साल बड़े कंगाल।।

कंगाली का नाम सुनकर गरीबी पर माँ का गुस्सा फूटा।
जाते जाते तुरंत उसके हाथ से अशर्फियों का लौटा छूटा।।

छूटा तो गिरा कालू के सिर पर और गया स्वर्ग सिधार।
अशर्फियाँ बिखरी रोड़ पर नेता, अफसर जताने लगे अधिकार।।

अधिकार जताने लगे बोले यह धन है जनता का।
अतः जनता को देने के लिए फिलहाल हुआ नेता का।

नेता बोले इस बार ना साज सज्जा करें ना पटाखे चलायें।
मुंह पर मास्क पहने और अपना जीवन बचायें।।

जीवन रक्षा होगी तो अगली दिवाली मैय्या भर देगी झोली।
इस बार दिवाली को समझकर मनाओ जी तुम होली।।

Class 4 Short Poem on Diwali in Hindi

आई दिवाली ख़ुशी मनायेंगे,

मिलजुल यह त्यौहार मनायेंगे..।
चोदह साल काटा वनवास,
राम जी आये भक्तों के पास,
खुशियों के दीप जलायेंगे,
आई दिवाली ख़ुशी मनायेंगे।

दिल से सारे वैर भूला कर,
इक-दूजे को गले लगाकर,
सब शिकवे दूर भगायेंगे,
आई दिवाली ख़ुशी मनायेंगे।

चल रहे है बम्ब-पटाखे,
शोर मचाते धूम-धड़ाके,
संग सब के ख़ुशी मनायेंगे.
आई दिवाली ख़ुशी मनायेंगे।

छोड़-छाड़ कर दवेष-भाव को,
मीत प्रीत की रीत निभाओ,
दिवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।

क्या है तेरा क्या है मेरा,
जीवन चार दिन का फेरा,
दूर कर सको तो कर डालो,
मन का गहन अँधेरा,
निंदा नफरत बुरी आदतों,
से छुटकारा पाओ।

दिवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ
खूब मिठाई खाओ छक कर,
लड्डू, बर्फी, चमचम, गुझिया।

पर पर्यावरण का रखना ध्यान,
बम कहीं न फोड़ें कान
वायु प्रदुषण, धुएं से बचना,
रौशनी से घर द्ववार को भरना।

दिवाली के शुभअवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ
चंदा सूरज से दो दीपक,
तन मन से उजियारा कर दें।

हर उपवन से फूल तुम्हारे
जब तक जियो शान से,
हर सुख, हर खुशहाली पाओ,
दिवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।

जगमग सबकी मने दिवाली
जगमग सबकी मने दिवाली,
खुशी उछालें भर-भर थाली।
खील खिलौने और बताशे,
खूब बजाएं बाजे ताशे।

ज्योति-पर्व है,ज्योति जलाएं,
मन के तम को दूर भगाएं।
दीप जलाएं सबके घर पर,
जो नम आँखें उनके घर पर।

हर मन में जब दीप जलेगा,
तभी दिवाली पर्व मनेगा।
खुशियाँ सबके घर-घर बाँटें,
तिमिर कुहासा मन का छाँटें।

धूम धड़ाका खुशी मनाएं,
सभी जगह पर दीप जलाएं।
कोई कोना ऐसा हो ना,
जिसमें जलता दीप दिखे ना।

देखो, ऊपर नभ में थाली,
चन्दा के घर मनी दिवाली।
देखो, ढ़ेरों दीप जले हैं,
नहीं पटाखे वहाँ चले हैं।

कैसी सुन्दर हवा वहाँ है,
बोलो कैसी हवा यहाँ है।
सुनो, पटाखे नहीं चलाएं,
धुआँ, धुन्ध से मुक्ति पाए।

….आनन्द विश्वास

खुशियों की दीपावली

खुशियों की यह बेला
हुई दीयों से रोशन
दमकेगा जोर से उत्सव
डालो प्रेम का इमोशन

वैभव यह लाया रंग
श्री राम आये सीता संग
हुआ जगमग सारा शहर
पांच दिन शाम सहर

बाजारों में रौनक छाई
घर नगर की हुई पुताई
रसोइयों में बने मिठाई
हर नारी सज धज आई

मावस की रात में
आनंद की बारिश
सब ने माँ लक्ष्मी से
कि समृद्धि की गुजारिश

फैले जहाँ में हर और उजियारा
हर कोई लगे जहाँ में प्यारा प्यारा
किसी का ना बिछड़े आँखों का तारा
हो रंगीन जहाँ धरा से अम्बर तक सारा

दिवाली का दीपक

दिवाली का दीपक मौन नहीं
अपने उजियारे से कुछ बोल रहा
जानो अंग अंग इसका आपके लिए
राज उज्ज्जवलता के खोल रहा

दिवाली के दीये लौ कहे
जलो ऐसे की दे सको उजियारा
तुम हो आशाओं की लौ
दूर करो जहाँ का अँधियारा

कहे दीये का तेल
अपना सब कुछ न्योछावर कर दो
यों खुद के लिए जीना अच्छा नहीं
अपनों खातिर जान हथेली पर रख दो

बाती बोले सहन कर पीड़ायें अपार
जीवन का होये उद्धार
जब बनेगा तेरा तन मन शोला
धमक उठेगा यह संसार

अब कुम्हार का अड्डा कहे
खुद को तुम समृद्ध बनाओ
और दूसरों को देने को खुशियां
इस को तुम जहाँ में लुटाओ

तो यह दीपक के मन का गीत
जन्म से उजियारे की चलाये रीत
इस रीत में ख़ुशी का है संगीत
और छिपी है इसमें मानव की जीत

दिवाली मौसम

ठंडी हवा लेने लगी हिलोरे
प्रीत श्रृंगार का उत्सव खोले
शुभ दीपावली हैप्पी दिवाली
दिवाली पे दीया दीया बोले

हाँ यह पर्व विजय बहार का
आशा समृद्धि के संसार का
घर घर आँगन द्वार का
लंका जीत के उपहार का

आये राम माँ सीता संग
गांव शहर में बिखरे रंग
उजियारे की छाई तरंग
खुशहाली ने पसारे पंख

महक उठे खेत खलिहान
पेड़ पौधे भी करे प्रणाम
बोले सीताराम सीताराम
शाख बैठा पंछी मेहमान

गौ धन भी लगे मुस्कुराने
इनके भी दिन आये सुहाने
लगी मेहंदी लगे खिल खिलाने
संग भूधर देखो गा रहे तराने

आई रे आई दीपावली हैं आई

आई रे आई जगमगाती रात हैं आई
दीपों से सजी टिमटिमाती बारात हैं आई
हर तरफ है हँसी ठिठोले
रंग-बिरंगे,जग-मग शोले
परिवार को बांधे हर त्यौहार
खुशियों की छाये जीवन में बहार
सबके लिए हैं मनचाहे उपहार
मीठे मीठे स्वादिष्ट पकवान
कराता सबका मिलन हर साल
दीपावली का पर्व सबसे महान
फिर से सजेगी हर दहलीज़ फूलों से
फिर महक उठेगी रसौई पकवानों से
मिल बैठेंगे पुराने यार एक दूजे से
फिर से सजेगी महफ़िल हँसी ठहाको से
चारों तरफ होगा खुशियों का नज़ारा
सजेगा हर आँगन दीपक का उजाला
डलेगी रंगों की रंगोली हर एक द्वार
ऐसा हैं हमारा दीपावली का त्यौहार

“आओ बच्चों मनाये दिवाली“

आओ बच्चों मनाये दिवाली,
जिसमें उत्साह एवं उमंग है छाई,
लो दीपों की पंक्तियाँ लग गई,
आशा की नई किरण मन में जग गई.
आओ बच्चों मनाये दिवाली.
दिवाली का अवसर होता है प्यारा,
वर्ष भर से रहता जिसका तुमको इंतज़ार,
नए कपडे पहनकर नाच उठते हो तुम,
कई मिठाइयों को खा कर झूम उठते हो तुम.
आओ बच्चों मनाये दिवाली.
पटाखे होते रंग-बिरंगे, प्यारे-प्यारे,
होते एक से बढ़कर एक और न्यारे-न्यारे,
इन्हें चलाते समय खास सावधानी बरतनी है,
मौज-मस्ती में कतई न तुम्हें लापरवाही करनी है.
आओ बच्चों मनाये दिवाली.
पर सुनो बच्चो एक ख़ास बात,
शायद तुम्हें होगा यह ज्ञात,
प्रदुषण से है यह माहौल बेहाल,
चलो इस पर भी रखें हम थोडा ख्याल.
आओ बच्चों मनाये दिवाली.

“दीपों का त्यौहार दिवाली“

दीपों का त्यौहार दिवाली,
आओ दीप जलाएँ,
भीतर के अंधियारे को हम
मिलकर दूर भगाएं.
छत पर लटक रहे हैं जो जाले,
इनको दूर हटायें,
रंग-रोगन से सारे घर को
सुन्दर सा चमकाएँ.
अनार, पटाखें, बम, फुलझड़ी,
चकरी खूब चलायें,
हलवा-पूरी, भजिया-मठी
कूद-कूद कर खायें.
सुन्दर-सुन्दर पहन कर कपड़े,
घर-घर मिलने जायें,
इक दूजे में खुशियाँ बाँटें,
अपने सब बन जाएँ.

Poem on Diwali in Hindi for Class 4

दीपावली पर

Poem on Diwali in Hindi

आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश।
दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश।।
सुख देता परिवेश,प्रगति के पथ खुल जाते।
करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती।
जीवन हो आसान, एकता जब भी आती।।

दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज।
मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज।।
यही माँग है आज,जगत में हो उजियारा।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएं भाईचारा।
‘ठकुरेला’ कविराय ,भले हो नृप या चाकर।
चलें सभी मिल साथ,प्रेम के दीप जलाकर।।

जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती।
‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा।।

दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते।
‘ठकुरेला’ कविराय,बजी खुशियों की ताली।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली।।

….त्रिलोक सिंह ठकुरेला

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ

आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ ज़लाओं ।
है कहां वह आग़ जो मुझकों जलाएं,
हैं कहां वह ज्वाल पास मेरें आए,

रागिनीं, तुम आज़ दीपक़ राग़ गाओं;
आज़ फिर से तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।

तुम नईं आभा नही मुझमे भरोगीं,
नव विभा मे स्नान तुम भी तो क़रोगी,

आज़ तुम मुझकों जगाक़र जगमगाओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।

मै तपोमय ज्योति क़ी, पर, प्यास मुझकों,
हैं प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझकों,

स्नेह की दो बूदें भी तो तुम गिराओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।

क़ल तिमिर को भेद मै आगें बढूगा,
क़ल प्रलय की आधियो से मै लडूग़ा,

किन्तु आज़ मुझकों आंचल सें बचाओं;
आज़ फिर सें तुम बुझा दीपक़ जलाओं ।

…हरिवंशराय बच्चन

खेतों ने ओढ़ ली है धानी चादर
भूमि पुत्र भी मंद मंद मुस्का रहा है,
दीपावली का शुभ दिन आ रहा है।

मौसम भी करवट बदल रहा है
सर्द ऋतु का आगाज हो रहा है,
दीपावली का शुभ दिन आ रहा है।

चंचल मन हर्षा रहा है
दीपों का त्यौहार आ रहा है,
दीपावली का शुभ दिन आ रहा है।

सब लोग मंगल गीत गा रहे है
ढोल पतासे और घंटियां बजा रहे है,
दीपावली का शुभ दिन आ रहा है।

प्रकृति हो रही है भाव विभोर
चहु खुशियों की लहर उठ रही है,
दीपावली का शुभ दिन आ रहा है।

सब मिलजुल कर घर से जा रहे है
मां लक्ष्मी भी कृपा बरसा रही है,
दीपावली का शुभ दिन आ रहा है।

…..नरेंद्र वर्मा

दिवाली पर चूहे जी ने,
नया सूट सिलवाया.
बिल्ली रानी ने परिधान,
लन्दन से मंगवाया.

शेरजी ने भी मंगवाई,
जोधपुर की शेरवानी,
बन्दर भैया लेकर आया,
नीला सूट पठानी.

भालू जी का सफ़ेद कोट,
सबके मन को भाया,
हाथी दादा का कुर्ता पाजामा,
कलकत्ता से आया.

जंगल सजा पेड़ मुस्काए ,
पवन चली मतवाली,
धूम धाम से सबने मनाई,
जंगल में दिवाली.

….महेंदर कुमार वर्मा

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