Mahatma Gandhi Poem in Hindi | महात्मा गांधी कविता हिंदी में

हमने आपके लिए बहुत सारी कविताएं लिखी हैं, जो हमें प्रेरित करेंगी, यह कविता भी अवसरवादी है, आप लोगों के लिए उत्साहवर्धक है, इन सभी कविताओं और Mahatma Gandhi Poem in Hindi में आपको अच्छी शिक्षा मिलेगी, हमने ये सभी कविताएं मनोरंजन के लिए लिखी हैं आप।

Mahatma Gandhi Poem in Hindi

गांधीजी की जयंती हर साल ‘गांधी जयंती’ के रूप में मनाई जाती है। Mahatma Gandhi Poem in Hindi भारत के लोग उन्हें प्यार से ‘बापू’ और ‘राष्ट्रपिता’ कहते हैं। वे मानवता और शांति के प्रतीक हैं।

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को वर्तमान गुजरात राज्य के पोरबंदर जिले में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतली बाई था। वह अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। उनकी माँ पुतलीबाई बहुत ही सौम्य और धार्मिक स्वभाव की थीं जिसका गांधीजी के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा।

Mahatma Gandhi Poem in Hindi

बापू के जन्मदिवस पर कविता

“सोचो और बताओ आखिर है किसकी तस्वीर
नंगा बदन कमर पर धोती और हाथ में लाठी
बूढी आँखों पर है ऐनक, कसी हुयी कद काठी
लटक रही है बिच कमर पर घडी बंधी जंजीर
सोचो और बताओ आखिर है किसकी तस्वीर.

उनको चलता हुआ देख कर आंधी शर्माती थी
उन्हें देख कर अंग्रेजों की नानी मर जाती थी
उनकी बात हुआ करती थी पत्थर खुदी लकीर
सोचो और बताओ आखिर है किसकी तस्वीर.

वह आश्रम में बैठे चलाता था पहरों तक तकली
दिनों और गरीब का था वह शुभचिन्तक असली
मन का था वो बादशाह पर पहुँचा हुआ फ़क़ीर
सोचो और बताओ आखिर है किसकी तस्वीर.

सत्य और अहिंसा के पालन में पूरी उम्र बिताई
सत्याग्रह कर करके जिसने आजादी दिलवाई
सत्य बोलता रहा जीवन भर ऐसा था वो वीर
सोचो और बताओ आखिर है किसकी तस्वीर.

जो अपनी ही प्रिय बकरी का दूध पिया करता था
लाठी, डंडी, बंदूकों से जो ना कभी डरता था
तिस जनवरी के दिन जिसने अपना तज़ा शारीर
सोचो और बताओ आखिर है किसकी तस्वीर.”

जन्मदिवस बापू का आया

Mahatma Gandhi Poem in Hindi

जन्मदिवस बापू का आया
सारे जग ने शीश नवाया
यह जीवन की शिक्षा का दिन

पावन आत्मपरीक्षा का दिन
मानवता की इच्छा का दिन
जगती का कण-कण हर्षाया
जन्मदिवस बापू का आया

जिसने खुशियाँ दी जीवन को
कोटि-कोटि दलित जनों को
सरल कर दिया जीवन रण को

ऊँच-नीच का भेद मिटाया
जन्मदिवस बापू का आया
जन्मदिवस बापू का आया

सत्य प्रेम का पथ अपना कर
क्षमा, कर्म के भाव जगा कर
स्वर्ग उतारा था वसुधा पर

युग का था अभिशाप मिटाया
जन्मदिवस बापू का आया
आज तुम्हारी मीठी वाणी

गूँज रही जानी पहचानी
अमर हुए तुम जीवन-दानी
घर-घर नव प्रकाश लहराया

जन्मदिवस बापू का आया
तुमने अपना आप गँवाकर
दानवता के बाग़ मिटाकर

सबके आगे माथ झुकाकर
मानवता का मान बढाया
जन्मदिवस बापू का आया

बापू तुम अमर रहोगे

जन्म हुआ 2 अक्टूबर पोरबंदर गुजरात में
सत्यवादी हरिश्चंद्र थे उनके स्वभाव में
जो कहा था वही किया

कथनी और करनी थी आत्म सम्मान में
बापू तुम अमर रहोगे सदा इस हिंदुस्तान में।।
सुभाष चंद्र बोस ने दिया राष्ट्रपति नाम था

पहली बार 4 जून को दिया यह सम्मान था
हिंदू स्वराज्य नहीं रामराज्य चाहते थे
गांधीजी वो महापुरुष से देश को पहले चाहते थे।।

महात्मा नाम दिया था रविंद्र नाथ टैगोर ने
स्वच्छता का संदेश दिया, गांधीजी ने जीवंत रूप में
दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया

खुद हिंसा के द्वारा मारे गए।।
पर मर कर भी तुम अमर हुए इस हिंदुस्तान में
बापू तुम अमर रहोगे हर दिल हर जान में।।

Poem on Bapu in Hindi

ली सच की लाठी उसने

ली सच की लाठी उसने
तन पर भक्ति का चोला
सबक अहिंसा का सिखलाया
वाणी में अमृत उसने घोला
बापू के इस रंग में रंग कर
देश का बच्चा- बच्चा बोला
कर देगें भारत माँ पर अर्पण
हम अपनी जान को
हम श्रद्घा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को

चरखे के ताने बाने से उसने
भारत का इतिहास रचा
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
सबमें इक विश्वास रचा
सहम गया विदेशी फिरंगी
लड़ने का अभ्यास रचा
मान गया अंग्रेजी शासक
बापू की पहचान को
हम श्रद्धा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को.

भारतमाता, अन्धियारे क़ी

“भारतमाता, अन्धियारे क़ी,
क़ाली चादर मे लिपटी थीं।
थी, पराधींनता की बेडी,
उनकें पैरो से, चिपटीं थी।
था हृदय दग्ध, धूं-धूं करकें,
उसमे, ज्वालाए उठतीं थी।
भारत मां क़े, पवित्र तन पर,
गोरो की फौजे, पलती थी।

गुज़रात राज्य का, एक़ शहर,
हैं ज़िसका नाम पोरबन्दर।
उस घर मे उनक़ा जन्म हुआ,
था चमन हमारा धन्य हुआं।
दुब़ला-पतला, छोटा मोंहन,
पढ-लिख़कर, वीर ज़वान बना।
था सत्यं, अहिन्सा, देशप्रेम,
उसक़ी रग-रग मे, भिंदा-सना।

उसकें इक़-इक़ आव्हान पर,
सौं-सौं ज़न दौड़े आते थें।
सत्य-‍अहिन्सा दो शब्दो के,
अद्भुत अस्त्र उठातें थे।
गोरो क़ी, काली करतूते,
ज़लियावाले बागो क़ा गम।
रह लिये गुलाम, ब़हुत दिन तक़,
अब नही गुलाम रहेगे हम।

जुल्हे, निल्हे, ख़ेतिहर तक़,
गांधी के पीछें आए थें।
डान्डी‍, समुद्र तट पर आक़र,
सब़ अपना नमक़ बनाये थे।
भारत छोडो, भारत छोडो,
हर ओंर, यहीं स्वर उठता था।
भारत कें, कोनें-कोनें से,
गांधी क़ा नाम, उछ़लता था।

वह मौंन, ‘सत्य क़ा आग्रह’ था,
ज़िसमे हिंसा, और रक्त नही।
मानवता क़े, अधिकारो की,
थीं बात, शान्ति से कहीं गईं।
गोलो, तोपो, बंदूको को,
चुप सीनें पर, सहतें ज़ाना।
अपनें सशस्त्र दुश्मन पर भीं,
बढकर आघात नही क़रना।

सच क़ी, ताक़त के आगें थी,
तोपो की हिम्मत हार रहीं।
सच कीं ताक़त के, आगें थी,
गोरो की सत्ता, काप रहीं।
हट ग़या ब्रिटिश ध्वज़ अब़ फ़िर से,
आजाद तिरंगा ल़हराया।
अत्याचारो का, अन्त हुआ,
गांधी क़ा भारत हर्षांया.”

तुम्हें नमन

चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर ;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,

जिसके शिर पर निज हाथ धरा
उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गए उसी पर कोटि माथ ;

हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु
हे कोटि रूप, हे कोटि नाम !
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम !

युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख
युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की
खीचते काल पर अमिट रेख ;

तुम बोल उठे युग बोल उठा
तुम मौन रहे, जग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना ;

युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक
युग संचालक, हे युगाधार !
युग-निर्माता, युग-मूर्ति तुम्हें
युग युग तक युग का नमस्कार !

दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से
तुम काल-चक्र की चाल रोक,
नित महाकाल की छाती पर
लिखते करुणा के पुण्य श्लोक !

हे युग-द्रष्टा, हे युग सृष्टा,
पढ़ते कैसा यह मोक्ष मन्त्र ?
इस राजतंत्र के खण्डहर में
उगता अभिनव भारत स्वतन्त्र !

….सोहनलाल द्विवेदी

Poem on Gandhi ji in Hindi

भारतमाता, अंधियारे की,
काली चादर में लिपटी थी।

थी, पराधीनता की बेड़ी,
उनके पैरों से, चिपटी थी।

था हृदय दग्ध, धू-धू करके,
उसमें, ज्वालाएं उठती थीं।

भारत मां के, पवित्र तन पर,
गोरों की फौजें, पलती थीं।

गुजरात राज्य का, एक शहर,
है जिसका नाम पोरबंदर।

उस घर में उनका जन्म हुआ,
था चमन हमारा धन्य हुआ।

दुबला-पतला, छोटा मोहन,
पढ़-लिखकर, वीर जवान बना।

था सत्य, अहिंसा, देशप्रेम,
उसकी रग-रग में, भिदा-सना।

उसके इक-इक आवाहन पर,
सौ-सौ जन दौड़े आते थे।

सत्य-‍अहिंसा दो शब्दों के,
अद्भुत अस्त्र उठाते थे।

गोरों की, काली करतूतें,
जलियावाले बागों का गम।

रह लिए गुलाम, बहुत दिन तक,
अब नहीं गुलाम रहेंगे हम।

जुलहे, निलहे, खेतिहर तक,
गांधी के पीछे आए थे।

डांडी‍, समुद्र तट पर आकर,
सब अपना नमक बनाए थे।

भारत छोड़ो, भारत छोड़ो,
हर ओर, यही स्वर उठता था।

भारत के, कोने-कोने से, वह मौन, ‘सत्य का आग्रह’ था,
जिसमें हिंसा, और रक्त नहीं।

मानवता के, अधिकारों की,
थी बात, शांति से कही गई।

गोलों, तोपों, बंदूकों को,
चुप सीने पर, सहते जाना।

अपने सशस्त्र दुश्मन पर भी,
बढ़कर आघात नहीं करना।

सच की, ताकत के आगे थी,
तोपों की हिम्मत हार रही।

सच की ताकत के, आगे थी,
गोरों की सत्ता, कांप रही।

हट गया ब्रिटिश ध्वज अब फिर से,
आजाद तिरंगा लहराया।

अत्याचारों का, अंत हुआ,
गांधी का भारत हर्षाया।

बापू के प्रति

तुम मांस-हीन, तुम रक्तहीन,
हे अस्थि-शेष! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण, हे चिर नवीन!

तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन;
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन!

तुम मांस, तुम्ही हो रक्त-अस्थि,
निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य! तुम्हारा नि:स्व-त्याग
है विश्व-भोग का वर साधन।

इस भस्म-काम तन की रज से
जग पूर्ण-काम नव जग-जीवन
बीनेगा सत्य-अहिंसा के
ताने-बानों से मानवपन!

सदियों का दैन्य-तमिस्र तूम,
धुन तुमने कात प्रकाश-सूत,
हे नग्न! नग्न-पशुता ढँक दी
बुन नव संस्कृत मनुजत्व पूत।

जग पीड़ित छूतों से प्रभूत,
छू अमित स्पर्श से, हे अछूत!
तुमने पावन कर, मुक्त किए
मृत संस्कृतियों के विकृत भूत!

सुख-भोग खोजने आते सब,
आये तुम करने सत्य खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन,
तुम आत्मा के, मन के मनोज!

जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर
चेतना, अहिंसा, नम्र-ओज,
पशुता का पंकज बना दिया
तुमने मानवता का सरोज!

पशु-बल की कारा से जग को
दिखलाई आत्मा की विमुक्ति,
विद्वेष, घृणा से लड़ने को
सिखलाई दुर्जय प्रेम-युक्ति;

वर श्रम-प्रसूति से की कृतार्थ
तुमने विचार-परिणीत उक्ति,
विश्वानुरक्त हे अनासक्त!
सर्वस्व-त्याग को बना भुक्ति!

सहयोग सिखा शासित-जन को
शासन का दुर्वह हरा भार,
होकर निरस्त्र, सत्याग्रह से
रोका मिथ्या का बल-प्रहार:

बहु भेद-विग्रहों में खोई
ली जीर्ण जाति क्षय से उबार,
तुमने प्रकाश को कह प्रकाश,
औ अन्धकार को अन्धकार।

उर के चरखे में कात सूक्ष्म
युग-युग का विषय-जनित विषाद,
गुंजित कर दिया गगन जग का
भर तुमने आत्मा का निनाद।

रंग-रंग खद्दर के सूत्रों में
नव-जीवन-आशा, स्पृह्यालाद,
मानवी-कला के सूत्रधार!
हर लिया यन्त्र-कौशल-प्रवाद।

जड़वाद जर्जरित जग में तुम
अवतरित हुए आत्मा महान,
यन्त्राभिभूत जग में करने
मानव-जीवन का परित्राण;

बहु छाया-बिम्बों में खोया
पाने व्यक्तित्व प्रकाशवान,
फिर रक्त-माँस प्रतिमाओं में
फूँकने सत्य से अमर प्राण!

संसार छोड़ कर ग्रहण किया
नर-जीवन का परमार्थ-सार,
अपवाद बने, मानवता के
ध्रुव नियमों का करने प्रचार;

हो सार्वजनिकता जयी, अजित!
तुमने निजत्व निज दिया हार,
लौकिकता को जीवित रखने
तुम हुए अलौकिक, हे उदार!

मंगल-शशि-लोलुप मानव थे
विस्मित ब्रह्मांड-परिधि विलोक,
तुम केन्द्र खोजने आये तब
सब में व्यापक, गत राग-शोक;

पशु-पक्षी-पुष्पों से प्रेरित
उद्दाम-काम जन-क्रान्ति रोक,
जीवन-इच्छा को आत्मा के
वश में रख, शासित किए लोक।

था व्याप्त दिशावधि ध्वान्त भ्रान्त
इतिहास विश्व-उद्भव प्रमाण,
बहु-हेतु, बुद्धि, जड़ वस्तु-वाद
मानव-संस्कृति के बने प्राण;

थे राष्ट्र, अर्थ, जन, साम्य-वाद
छल सभ्य-जगत के शिष्ट-मान,
भू पर रहते थे मनुज नहीं,
बहु रूढि-रीति प्रेतों-समान!

तुम विश्व मंच पर हुए उदित
बन जग-जीवन के सूत्रधार,
पट पर पट उठा दिए मन से
कर नव चरित्र का नवोद्धार;

आत्मा को विषयाधार बना,
दिशि-पल के दृश्यों को सँवार,
गा-गा–एकोहं बहु स्याम,
हर लिए भेद, भव-भीति-भार!

एकता इष्ट निर्देश किया,
जग खोज रहा था जब समता,
अन्तर-शासन चिर राम-राज्य,
औ’ वाह्य, आत्महन-अक्षमता;

हों कर्म-निरत जन, राग-विरत,
रति-विरति-व्यतिक्रम भ्रम-ममता,
प्रतिक्रिया-क्रिया साधन-अवयव,
है सत्य सिद्ध, गति-यति-क्षमता।

ये राज्य, प्रजा, जन, साम्य-तन्त्र
शासन-चालन के कृतक यान,
मानस, मानुषी, विकास-शास्त्र
हैं तुलनात्मक, सापेक्ष ज्ञान;

भौतिक विज्ञानों की प्रसूति
जीवन-उपकरण-चयन-प्रधान,
मथ सूक्ष्म-स्थूल जग, बोले तुम
मानव मानवता का विधान!

साम्राज्यवाद था कंस, बन्दिनी
मानवता पशु-बलाक्रान्त,
श्रृंखला दासता, प्रहरी बहु
निर्मम शासन-पद शक्ति-भ्रान्त;

कारा-गृह में दे दिव्य जन्म
मानव-आत्मा को मुक्त, कान्त,
जन-शोषण की बढ़ती यमुना
तुमने की नत-पद-प्रणत, शान्त!

कारा थी संस्कृति विगत, भित्ति
बहु धर्म-जाति-गत रूप-नाम,
बन्दी जग-जीवन, भू-विभक्त,
विज्ञान-मूढ़ जन प्रकृति-काम;

आए तुम मुक्त पुरुष, कहने
मिथ्या जड़-बन्धन, सत्य राम,
नानृतं जयति सत्यं, मा भैः
जय ज्ञान-ज्योति, तुमको प्रणाम!

….सुमित्रानन्दन पन्त

Best Poem on Mahatma Gandhi

गाँधी बाबा तुमने हमको
एक मौन हथियार दिया
दोनों गाल सूझ गए लेकिन
हमने न वार किया

आदर्श तुम्हारे ज़िंदा हैं
बड़े महान हो तुम बापू
सम्पूर्ण विश्व में इस भारत की
एक पहचान हो तुम बापू

अगर तुमने चाहा होता
तुम भी ऐस ले सकते थे
देश बेचकर अंग्रेजो से
मोटा कैश ले सकते थे

स्वदेशी का नारा देकर
दिनभर चरखा चलाते थे
देश का खर्चा ज्यादा न हो
आधा लेम्प जलाते थे

आधा ही आज़ादी का बापू
तुमको ही हक़दार कहूंगा
कोई बिरोधी तेरा होगा
मैं उसको गद्दार कहूंगा

लेकिन देश के बंटवारे पर बापू
गुस्सा तन जाता है
गुस्से के बदले किसी
गोडसे का मंदिर बन जाता है

02 अक्टूबर गांधी जयंती कविता

“बापू महान, बापू महान!
ओ परम तपस्वी परम वीर
ओ सुकृति शिरोमणि, ओ सुधीर
कुर्बान हुए तुम, सुलभ हुआ

सारी दुनिया को ज्ञान
बापू महान, बापू महान!!
बापू महान, बापू महान
हे सत्य-अहिंसा के प्रतीक

हे प्रश्नों के उत्तर सटीक
हे युगनिर्माता, युगाधार
आतंकित तुमसे पाप-पुंज
आलोकित तुमसे जग जहान!

बापू महान, बापू महान!!
दो चरणोंवाले कोटि चरण
दो हाथोंवाले कोटि हाथ
तुम युग-निर्माता, युगाधार

रच गए कई युग एक साथ ।
तुम ग्रामात्मा, तुम ग्राम प्राण
तुम ग्राम हृदय, तुम ग्राम दृष्टि
तुम कठिन साधना के प्रतीक
तुमसे दीपित है सकल सृष्टि ।”

चल पड़े जिधर दो डग मग में

चल पड़े कोटि पग उसी ओर।
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि,
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।।

जिसके शिर पर निज धरा हाथ,
उसके शिर – रक्षक कोटि हाथ।
जिस पर निज मस्तक झुका दिया,
झुक गये उसी पर कोटि माथ।

तुम बोल उठे , युग बोल उठा,
तुम मौन बने युग मौन बना।
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर,
युग कर्म जगा, युग धर्म तना।।

धर्माडंबर के खंडहर पर,
कर पद – प्रहार का धरा ध्वस्त
मानवता का पावन मंदिर,
निर्माण कर रहे सृजन व्यस्त।।

बढ़ते ही जाते दिग्विजयी,
गढ़ते तुम अपना रामराज्य।
आत्माहुत के मणि माणिक से,
मढ़ते जननी का स्वर्ण ताज।।

पिसती कराहती जगती के,
प्राणों में भरते अभय दान।
अधमरे देखते हैं तुमको,
किसने आकर यह किया त्राण।।

हे अस्त्र शस्त्र कुंठित लुंठित,
सेनाएं करती गृह प्रयाण।
रणभेरी तेरी बजती है,
उड़ता है तेरा ध्वज निशान।।

हे युग – द्रष्टा , से युग सृष्टा,
पढ़ते कैसा यह मोक्ष मंत्र।
इस राजतंत्र के खंडहर में,
उगता अभिनव भारत स्वतंत्र।।

….सोहनलाल द्विवेदी।

Mahatma Gandhi Poem in Hindi for kids

मानवता के पुजारी को आज नमन हम करते हैं
सत्त्य, अहिंसा के पोषक बापू का स्मरण करते हैं।
विरले होते जग में जो जन आवाज हुआ करते हैं
तम को मिटा सके जो वह परवाज हुआ करते हैं।

सत्य प्रयोगों से बापू के ज्ञान लिया करते हैं
धूल धूसरित रातों में प्रकाश किया करते हैं।
अंग्रेजी ताकत के आगे शस्त्र अहिंसा रख देते हैं
दंडी मार्च सत्त्य आग्रह हुंकार सदा ही भर देते हैं।

काम चोर की पीड़ा का मान कदापि नही करते हैं
कमजोरों की पीड़ा को निज प्रयास से भरते हैं।
मातृभूमि हित करो या मरो का संदेशा देते हैं,
पग में पडते छालों का ध्यान नहीं वे देते हैं।

हरिजन हित के लिए समर्पण निशदिन करते रहते हैं,
जन-जन को वाणी देते है पूर्ण पराक्रम करते हैं।
अहिंसा परमो धर्म निज कर्मों से सिद्ध करते हैं,
बापू बंटवारे की कीमत प्राणों से दे अनंत में रहते हैं।

….साधना मिश्रा विंध्य

गांधीजी सबसे प्यारे थे
हम सबके वो रखवाले थे
जो कहते थे करके दिखाते थे
बापू वो कहलाते थे
वो सबको मन को भाते थे
हमेसा रघुपति राघव गाते थे
बच्चो को अति प्यारे थे
सबकी आँखों के तारे थे
हम भी अच्छा काम करेंगे
खूब पढ़ेंगे खूब लिखेंगे
बापू जैसा काम करेंगे
जग में ऊँचा देश का नाम करेंगे।

इस युग कि पहचान हैं गाँधी

भारत के सम्मान है गाँधी।
इस युग कि पहचान हैं गाँधी।।

चौराहों पर खड़े है गाँधी।
मैदानो के नाम है गाँधी।।

दीवारों पर टंगे है गाँधी।
पढने -पढ़ाने में है गाँधी।।

राजनीति में भी है गाँधी।
मज़बूरी का नाम हैगाँधी।।

टोपी कि एक ब्रांड है गाँधी।
वोट में गांधी ,नोट में गाँधी।।

अगर नहीं मिलते तो वह है।
जनमानस की सोच में गांधी।।

एक थे लाल एक थे बापू

Mahatma Gandhi Poem in Hindi

दोनों में था अलग सा जादू
दोनों की थी एक ही बोली
थी पीछे उनके हम सबकी टोली

फिर खुद पर रहा न किसी को काबू
एक थे लाल एक थे बापू
दोनों में था अलग सा जादू

लाल जी बोले जय जवान जय किसान
बापू बोले रघुपति राघव राजाराम
नारो से उनके देश था हरसू

एक थे लाल एक थे बापू
दोनों में था अलग सा जादू
देश का सुख था उनका सपना

कर दिया जीवन न्योछावर अपना
दोनों को याद करे न अब क्यों
एक थे लाल एक थे बापू

दोनों में था अलग सा जादू
आओ मिलकर डीप जलाये
जन्म दिवस दोनों का मनाये

Best Poem on Gandhiji

आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ

आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ,
चरणों में श्रद्धांजलियाँ अर्पण कर जाओ,
यह रात आखिरी उनके भौतिक जीवन की,
कल उसे करेंगी
भस्मस चिता की
ज्वासलाएँ।

डांडी के यारत्रा करने वाले चरण यही,
नोआखाली के संतप्तोंन की शरण यही,
छू इनको ही क्षिति मुक्ता हुई चंपारन की,
इनको चापों ने
पापों के दल
दहलाए।

यह उदर देश की भुख जानने वाला था,
जन-दुख-संकट ही इसका ही नित्यं नेवाला था,
इसने पीड़ा बहु बार सही अनशन प्रण की
आघात गोलियाँ
के ओढ़े
बाएँ-दाएँ।

यह छाती परिचित थी भारत की धड़कन से,
यह छाती विचलित थी भारत की तड़पन से,
यह तानी जहाँ, बैठी हिम्मीत गोले-गन की
अचरज ही है
पिस्तौील इसे जो
बिठलाए।

इन आँखों को था बुरा देखना नहीं सहन,
जो नहीं बुरा कुछ सुनते थे ये वही श्रवण,
मुख यही कि जिससे कभी न निकला बुरा वचन,
यह बंद-मूक
जग छलछुद्रों से
उकताए।

यह देखो बापू की आजानु भुजाएँ हैं,
उखड़े इनसे गोराशाही के पाए हैं,
लाखों इनकी रक्षा-छाया-में आए हैं,
ये हा‍थ सबल
निज रक्षा में
क्योंक सकुचाए।

यह बापू की गर्वीली, ऊँची पेशानी,
बस एक हिमालय की चोटी इनकी सनी,
इससे ही भारत ने अपनी भावी जानी,
जिसने इनको वध करने की मन में ठानी
उसने भारत की किस्ममत में फेरा पानी;
इस देश-जाती के हुए विधाता
ही बाएँ।

….हरिवंशराय बच्चन

बापू देख तेरा हिन्दुस्तान

बापू देख तेरा हिन्दुस्तान
याद रखे तेरी पहचान
नोटों में है तेरी फोटो
वोटो में है तेरा नाम

बच्चे जपते सुबह शाम
नेता भी निकाले काम
सारा देश करे प्रणाम
छिपा तुझ में हिन्दुस्तान

आजादी तूने दिलाई
अंग्रेजों को धुल चटाई
ना बम फोड़ा बन्दूक चलाई
अंग्रेजी हुकूमत की हुई विदाई

तु भारत की गौरव गाथा
तु भारत का है अभिमान
बन भारत का भाग्य विधाता
बना स्वतंत्रता की तु पहचान

देखो महात्मा गाँधी की जयंती आई

देखो महात्मा गाँधी की जयंती आई,
बच्चों के चेहरों पर मुस्कान है लाई।
हमारे बापू थे भारतवर्ष के तारणहार,

आजादी के सपने को किया साकार।
भारत के लिए वह सदा जीते-मरते थे,
आजादी के लिए संघर्ष किया करते थे।

खादी द्वारा स्वावलंबन का सपना देखा था,
स्वदेशी का उनका विचार सबसे अनोखा था।
आजादी के लिए सत्याग्रह किया करते थे,

सदा मात्र देश सेवा के लिए जीया करते थे।
भारत की आजादी में है उनका विशेष योगदान,
इसीलिए तो सब करते हैं बापू का सम्मान,

और देते है उन्हें अपने दिलों में स्थान।
देखो उनके कार्यो कभी भूल ना जाओ,
इसलिए तुम इन्हें अपने जीवन में अपनाओ।

तो आओ सब मिलकर सब झूमें गाये,
साथ मिलकर गाँधी जयंती का यह पर्व मनायें।

सत्य अहिंसा के दम से

अहिंसा की लाठी थाम
आजादी की रख माँग।
बापू तुने अंग्रेजों की
जड़ें यूँ हिलायी थी।

वक्त था बड़ा गंभीर
ना पकड़ी तूने शमशीर।
तेरी इक हुंकार पर
जनता दौड़ी आयी थी।

उस बापू को नमन मेरा
गाँधी यह चमन तेरा।
सीधी सीधी चाल चल
बड़ा कमाल कर दिया।।

टेढ़ी टेढ़ी चाल वाली
अंग्रेजी हुकूमत को।
सत्य अहिंसा के दम पर
बेहाल कर दिया।।

गोरों की देखी करतूत
भारत के सच्चे सपूत।
अंग्रेजों के ध्वज की
होली यूँ जलायी थी।

रख शक्तिशाली निर्भय मन
बोला दुबला पतला मोहन।
‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’
लगी तोपें कंपकपायी थी।

राष्ट्रपिता तुझे प्रणाम
हिन्दुस्तां की तु पहचान।
तुने अपने कर्मों से
सबको निहाल कर दिया।

2 October Gandhi Jayanti Hindi

बापू ने सिखलाया था

त्याग और अहिंसा का मार्ग
बापू ने सिखलाया था,
जाति-धर्म का भेद भुलाकर
सबको गले लगाया था।

संन्यासी का वस्त्र पहनकर
स्वच्छ जीवन बिताया था,
कड़ी-कड़ी कठिनाइयों को
बापू ने पार लगाया था।

सच्चाई की राहों पर चलकर
ज्ञान का दीप जलाया था,
अंग्रेजों से लोहा लेकर
देश को आजाद कराया था।

साहस और कर्तव्य निष्ठा का
सबको पाठ पढ़ाया था,
प्रेम-भाव से रहने का संदेश
बापू ने समझाया था।

त्याग और अहिंसा का मार्ग
बापू ने सिखलाया था।

….अम्बरीष कुमार दुबे

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दे दीं हमे आजादी ब़िना खडग ब़िना ढ़ाल
साब़रमती के संत तूने क़र दिया क़माल
आंधी मे भी ज़लती रहीं गांधी तेरी मशाल
साब़रमती के संत तूनें क़र दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी ब़िना खड्ग बिना ढ़ाल

धरती पें लडी तूने अज़ब ढंग की लडाई
दागी न कही तोप न बन्दूक चलाईं
दुश्मन कें किलें पर भी न कीं तूनें चढाई
वाह रें फकीर खूब़ करामात दिख़ाई
चुटक़ी में दुश्मनो को दिया देश सें निक़ाल
साबरमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दी हमे आजादी ब़िना खडग बिना ढ़ाल

शतरंज़ बिछा कर यहां बैंठा था जमाना
लग़ता था मुश्कि़ल हैं फ़िरगी को हराना
टक्क़र थी बडे ज़ोर की दुश्मन भीं था ताना
पर तू भीं था ब़ापू बडा उस्ताद पुराना
मारा वों क़स के दाव के उल्टी सभी क़ी चाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल

ज़ब ज़ब तेरा बिग़ुल बजा ज़वान चल पडे
मजदूर चल पडे थें और क़िसान चल पडे
हिन्दू और मुसलमान, सिख़ पठान चल पडे
कदमो मे तेरी क़ोटि क़ोटि प्राण चल पडे
फूलो की सेज़ छोड के दौडे ज़वाहरलाल
साब़रमती के संत तूने कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल

मन मे थीं अहिन्सा की लग़न तन पे लगोंटी
लाखो मे घूमता था लिए सत्य की सोटी
वैंसे तो देख़ने मे थी हस्तीं तेरी छोटी
लेक़िन तुझे झ़ुकती थी हिमालय क़ी भी चोटी
दुनियां में भी ब़ापू तू था इंसान बेमिसाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल

ज़ग मे ज़िया है कोईं तो बापू तू हीं ज़िया
तूनें वतन क़ी राह मे सब़ कुछ लुटा दिया
मागा न कोईं तख्त न कोईं ताज़ भी लिया
अमृत दियां तो ठीक़ मग़र ख़ुद जहर पिया
ज़िस दिन तेरीं चिन्ता ज़ली, रोया था महाक़ाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल

गांधी की राह पर चलनें वाला,
सत्य-अहिसा की ब़ात कहने वाला,
एक़ नये युग़ को ज़ीता हैं
गाँधी के आदर्शोंं को माननें वाला.

बापू आप किसके

सपने में बापू कल आए,
अपने किस्से खूब सुनाए,
हाल-चाल हमसे भी पूछा,
हमने फिर कुछ प्रश्न उठाए.

किसके हो बतलाओ बापू,
सच्ची बात बताओ बापू,
बापू बोले, ”मैं हूं सबका,
सब मुझको कहते हैं बापू.

कल जब मेरा जन्मदिवस था,
कुल दुनिया ने इसे मनाया,
124 देशों ने मिलकर,
‘वैष्णव जन तो’ भजन था गाया.

किसी ने ब्लॉग लिखे थे मुझ पर,
किसी ने मेले-ठेले लगाए,
अच्छा सुनो-बोलो-देखो कह,
किसी ने बंदर याद दिलाए.

किसी ने स्वच्छता का प्रण लेकर,
मुझको सच्ची श्रद्धांजलि दी,
किसी ने मेरी कुटिया जाकर,
बर्तन धोए, प्रार्थना सभा की.
मेरी बातें याद की सबने,

मेरा भी मन था हर्षाया,
प्रण जो किए निभाएंगे सब,
ऐसा मेरे मन में आया.
सबका था मैं, सबका हूं मैं,
आगे भी सबका ही रहूंगा,
जब तक मेरी राह चलोगे,
सबका हूं मैं, यही कहूंगा.”

मेरे प्रश्न का उत्तर देकर,
जाने कहां चले गए थे बापू,
सबने से जब जागी थी मैं,
बोली, ”तुम हो सबके बापू.”

नित्य नयें आनन्द और फ़िर

नित्य नयें आनन्द और फ़िर, पढने की ब़ेला आई।।
उम्र अभीं छोटी हीं थी पर, पिता स्वर्गं सिधार गयें।
करकें मैट्रिक पास यहॉ, फ़िर मोहन भी इंग्लैन्ड गयें।।
पढ-लिख़ मोहन हो गयें, बुद्धिमान-गुणवान्।
ज्ञानवान्, कर्तव्य प्रिय, रख़े आत्मसम्मान।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।1।।

दक्षिण अफ्रीक़ा में लडने को, एक़ मुकदमा था आया।
पगडी धारण करकें गान्धी, उस वक्त अदालत मे आया।।
क़ितनी उगली उठी कोईं, गान्धी को न झ़ुका पाया।
मै भारतवासी हू, संस्कृति क़ा, मान मुझ़े प्यारा।।

थे रोज़ देख़ते, कालो का, अपमान वहा होता रहता।
यह देख़-देख़कर मोहन क़ा मन, ज़ार-ज़ार रोता रहता।।
तभीं एक दिन ठान लीं, दूर करू अन्याय।
चाहें क़ुछ करना पडे, दिलवाऊगा न्याय।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।2।।

क़ितने ही आन्दोलन करकें, गान्धी ने ब़ात बढाई थी।
ज़ितने भी क़ाले रहते थें, उन सब़की शान बढाई थी।।

फ़िर भारत मे वापस आक़र, वे राज़नीति मे कूद पडे।
प्रथम युद्ध मे, शामिल होक़र अंग्रेजो के साथ रहें।।
अंग्रेजो का यह क़हना था, यदि विज़य उन्हे ही मिल जाये।
तो भारत को आज़ाद करे, और अपनें वतन पलट ज़ाएं।।

लेक़िन हमकों क्या मिला, जलियावाला कान्ड।
सुनक़र के ज़िसकी व्यथा, कांप उठा ब्राह्मण।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।3।।

नमक़ और भारत छोडो आंदोलन को, फ़िर अपनाया।
फ़िर शामिल होक़र गोलमेज़ मे, भारत का हक़ बतलाया।।
भारत छोडो का नारा अब़, घर-घर से उठता आता थां।
इस नारें को सुन-सुनक़र अब़, अंग्रेज़ राज़ थर्रांता था।।

सारें नेता जेलो मे थे, क़र आज़ादी का गान रहें।
हो प्राण निछा़वर अपनें पर, इस मातृभूमि क़ा मान रहें।।
देख़ यहां की स्थिति, समझ़ गए अंग्रेज़।
यह फ़ूलो की हैं नही, यह कांटो की सेज़।।
जिसक़ो पाकर……………………………………….।।4।।

पन्द्रह अग़स्त सैतालीस क़ो, भारत प्यारा आज़ाद हुआ।
दो टुकड़ो मे बंट ग़या, यहीं सुख-दुख़ पाया था मिला-ज़ुला।।
दगे-फ़साद थे शुरू हुवे, हर ग़ली-गांव कुरुक्षेत्र हुआं।
गांधी ब़ाबा ने अनशन क़र, निज़ प्राण दांव पर लगा दियां।।

फ़िर 30 ज़नवरी आईं वह, छ: ब़जे शाम की बात रहीं।
प्रार्थना सभा मे ज़ाते थे, ब़ापू को गोली वही लगी।।
डूबें सारे शोक़ मे, गांधी महाप्रयाण।
धरतीं पर सब़ कर रहें, बापू का गुणग़ान।।
ज़िसको पाकर……………………………………….।।5।।

Short Poem on MK Gandhi Ji

गांधी बाबा थे महान

सत्य-अहिंसा के पुजारी गाँधी बाबा थे महान।
दुनिया में सबसे ऊँची कर गए भारत की शान ।।

आज़ादी के संग्राम के थे वो-एक सच्चे सिपाही।
प्रेम-भाईचारे, मानवता की खातिर सदा लड़ी लड़ाई।।

उस महापुरूष को नमन् करता है सारा हिंदुस्तान ।
सत्य-अहिंसा के पुजारी गाँधी बाबा थे महान ।।

सादा-जीवन उच्च-विचार का करते थे व्यवहार।
संपूर्ण भारतवर्ष को माना अपना ही परिवार।।

वो थे गरीबों के मसीहा , विद्वानों के थे विद्वान ।
सत्य-अहिंसा के पुजारी गांधी बाबा थे महान ।।

जात-पात, छूआछूत का खुलकर विरोध किया।
अंग्रेजों के विरूद्ध सबको एकजुट कर दिया।।

वो खुद थे- भगवतगीता, गुरबाणी और कुरान ।
सत्य-अहिंसा के पुजारी गाँधी बाबा थे महान ।।

सोए हुए भारतीयों में उम्मीद का ‘दीप जलाया ।
लुटेरे अंग्रेज़ों की गुलामी से सबको मुक्त कराया।।

अपना सारा जीवन कर दिया भारतमाता पे कुर्बान ।
सत्य-अहिंसा के पुजारी गाँधी बाबा थे महान ।।

सत्य-अहिंसा के पुजारी गाँधी बाबा थे महान ।
दुनिया में सबसे ऊँची कर गए भारत की शान ।।

दो लाल

जन्म हुआ दो अक्टूबर को, लाल बहादुर बाल हुये।
लाल बहादुर और गाँधथी जी, भारत के दो लाल हुये ।
सीमा पर जो युद्ध छिड़ा था, भारत पाकिस्तानी में,
बलिदानी थे वीर सिपाही, सीमा हिंदुस्तानी के।

लाल बहादुर नायक श्री थे, मात पिता निहाल हुये ।
वीरों की वो अमर कहानी, सुनकर सब बेहाल हुये।
लाल बहादुर और गाँधी जी, भारत के दो लाल हुये।
जन्म हुआ दो अक्टूबर को, लाल बहादुर बाल हुये।

वीर जवानों धावा बोलो, दुश्मन का रुख पहचानो।
तुम लाहौर जीत कर आना, भारत माता को मानो।
जय जवान और जय किसान हैं, लाल बहादुर भाल हुये ।
सम्मानित का जीवन पाकर, हम सब अब खुशहाल हुये।

लाल बहादुर और गाँधी जी, भारत के दो लाल हुये।
जन्म हुआ दो अक्टूबर को, लाल बहादुर बाल हुये।
हरित क्रांति के अपने नायक, जनता के सरताज हुये।
सदियों से हैं दिल में बसते, जनता के हमराज हुये।

दुश्मन थरथर लगा कॉंपने, लाल बहादुर काल हुये।
ताशकंद के समझौते में, जीवन हार निढाल हुये ।
लाल बहादुर और गाँधी जी, भारत के दो लाल हुये ।
जन्म हुआ दो अक्टूबर को, लाल बहादुर बाल हुये।

….डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव

हे बापू मेरे

हे बापू मेरे, हे बापू मेरे
तेरे होने से आजादी मिली है
जो तु ना होता आजादी नहीं है
हे बापू मेरे, हे बापू मेरे

तूने ही दिलाई है
सदियाँ रोशन की
ये जो तेरी लाठी है
लायी आजादी मौसम की
यहाँ तेरा नाम अमर है
यह तेरी है जमीं है
हे बापू मेरे ………

तु लाया तोड़कर
स्वाभिमान की गलियां
होकर तूने न्योछावर
खिलाई हंसी की कलियाँ
जहां पड़े तेरे कदम
तु बस गया वहीं है
हे बापू मेरे ………….

दिया तूने आजाद भारत
आंदोलन कर करके
दूर भगाये विदेशी
तुने डटकर के
तु करोड़ों में है एक
तुझसा कोई नहीं है
हे बापू मेरे ………

गर तुम ना होते बापू

उपकार कैसे भूले, यह गुलसिताँ तुम्हारा
गर तुम ना होते बापू, क्या होता फिर हमारा।

व्यापारी बन के आये, इंग्लैंड से पराये
धीरे से रूप बदला, पर हम न समझ पाये

शैतानियत के दम पर, कब्जाया मुल्क सारा
गर तुम ना होते बापू, क्या होता फिर हमारा।

तुम सत्य अहिंसा के, प्रतिमान बनके आये
भारत की अस्मिता के, सम्मान बनके आये

तेरी पुकार सुनकर, उमड़ा था देश सारा
गर तुम ना होते बापू, क्या होता फिर हमारा।

इतना सरल स्वभावी, दुनियां में कौन होगा
जिसकी सुने हिमालय, वो इतना मौन होगा

अचरज करे ज़माना, कैसे फ़िरंगी हारा
गर तुम ना होते बापू, क्या होता फिर हमारा।

Gandhi Jayanti Hindi Poem

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

स्वतंत्र भारत का देखा सपना
गांधीजी जिनका नाम था
दो अक्टूबर को जन्मे
गुजरात पोरबंदर जन्म स्थान था।।

देश को आजाद कराने में
गांधी जी का महत्वपूर्ण योगदान था
भारत के थे राष्ट्रपिता
बापू भी इनका नाम था।।

अहिंसा के थे पुजारी
स्वावलंबन के अधिकारी
भारत छोड़ो आंदोलन में
निभाई महत्वपूर्ण हिस्सेदारी।।

कई बार गए गए थे जेल
सत्य अहिंसा इनका काम था
गांधी जी के महान विचारक
मोहनदास करमचंद गांधी इनका पूरा नाम था।।

सादा जीवन उच्च विचार
इनके दो ही काम था
राष्ट्रपिता थे भारत के गांधी जी जिनका नाम था
ऐसे महापुरुष को बारम्बार प्रणाम था।।

आजादी गांधी जी पर कविता

आजादी की राह पर चलना, बापू तुमने सिखलाया था
साफ सफाई को महत्व दिया, स्वदेशी को अपनाया था।।

स्वाभिमान से जीवन जीना भी तुमने सिखलाया था
सत्य निष्ठा पर चलना जीवन का सार बताया था।।

दूसरों पर आश्रित ना रहकर, स्वावलंबी बनना सिखाया था
जीवन जीने का उद्देश्य, देश हित भी बतलाया था।।

कहीं कुरीतियों का अंत किया, कहीं प्रथाओं को बंद कराया
समाज में महिलाओं को सम्मान का अधिकार दिलाया।।

चरखा चलाकर सुत काता, खादी को अपनाया था
अकेली एक लाठी के दम पर, अंग्रेजों को मार भगाया था।।

आजादी का मतलब, तुमने बापू सिखलाया था
गुरु से देश को आजाद भी तुमने कराया था।।

गांधीवाद कविता

अंग्रेजों के सामने ना घुटने टेके थे
भारत का सम्मान बढ़ाया था
बाबू तुम सबने तो हमारा मान बढ़ाया था
दांडी यात्रा की तुमने पानी से नमक बनाया था।।

सत्याग्रह किया तुमने,
स्वदेशी को अपनाया था
आजादी की लड़ाई में
खून अपना बहाया था।।

बलिदान किया तुमने सर्वस्व
भारत को अपनाया था
सत्य अहिंसा के पुजारी
हम सब का मान बढ़ाया था।।

स्वदेशी अपनाओ विदेशी भगाओ
यह भी तुम्हारा नारा था
कहीं बाहर गए जेल
पर बापू कभी ना हारा था।।

सीने पर खाई थी गोली
पर भारत को एक बनाया था
हर फर्ज अदा किया मिट्टी का
गांधीवादी अपनाया था।।

बारम्बार तुमको प्रणाम ऐसे थे गांधीजी महान….

Hindi Poem Mahatma Gandhi

गांधी जी

सत्य अहिंसा के पुजारी
हिंसा के वो खिलाफ़ थे.
अपनी बात मनवाने के
उनके अलग अंदाज़ थे.

वक़ालत की नौकरी छोड़
विदेश से वतन को आए,
गुलामी की जंजीर तोड़ने
संघर्ष का मार्ग अपनाए.

तन-मन-धन समर्पण कर,
जीवन अपना अर्पण कर,
नमक कानून तोड़ दिए,
गाधी जी नमक बनाकर,

विदेशी वस्त् को जलाकर,
खादी वस्त्र को अपनाकर.
अंग्रेज़ों को हिला दिया,
आमरण अनशन चलाकर.

….प्रीतम कुमार साहू

गांधीजी ने चलाया अंतिम स्वतंत्रता आंदोलन
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान
वह था भारत छोड़ो आंदोलन

ऐसा था गांधी जी का काम।।
गिरफ्तार किया ब्रिटिश सरकार ने
झुकाने भारत का सम्मान

विफल रहा प्रयास
दूसरे नेताओं ने रखा आंदोलन का मान।।
सर्वोदय का विचार दिया

देश का किया कल्याण
पंचायती संस्थाओं का विकास हुआ
स्वच्छता का किया अभियान

कहीं योजनाओं की नींव रखी
राष्ट्रहित में किया कल्याण।।
आओ हम सब मिलकर करें
गांधी जयंती पर इनको प्रणाम।।

लेकर गाँधी तेरा नाम

लेकर गाँधी तेरा नाम
चला रहे नेता दूकान

कोई कहे मैं सत्य पुजारी
कोई बोले मैं अहिंसाधारी

करके हर वक्त तुझे प्रणाम
करे मर्यादा का राम नाम

मुंह में है राम राम छाया
अंदर दबाये लूट की माया

ओढ़ कर तेरे गुणों की खाल
असल में रखे रावण सा हाल

देख इनका गाँधी इमोशन
जनता करवा रही ही शोषण

वादों का देकर ये भोजन
कर रहे हैं खुद का पोषण

गाँधी बस कर रहे तुझे बदनाम
मार अहिंसा की लाठी दे ईनाम

महात्मा गाँधी के सम्मान में कविता

“राष्ट्रपिता जो कहे जाते है,
प्यार से बापू उन्हें बुलाते हैं।
जिन्होंने देश को आज़ाद कराया।
सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
महात्मा गांधी वो कहलाते हैं।

उन्होंने विलास को छोड़कर,
अपना जीवन देश की आज़ादी में लगाया।
विदेषी कपड़ों को त्याग कर उसने ।
देशी का महत्व समझाया।

कई आंदोलन और सत्याग्रह किये।
अंग्रेजों से लड़ने के लिए,
लोगों को अपने साथ किये,
देश को आज़ाद कराने के लिए।

सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलकर।
अंग्रेजों से लड़ी लड़ाई।
अपना तन मन धन सब कुछ सौंप दिया
अपने आपको पूरा झोंक दिया।
अंत तक लड़ी लड़ाई देश को आज़ादी दिलायी.”

Short Poem on MK Gandhi Ji

गाँधी जयंती पर कविता

क्या मिसाल दू मैं बापू गांधीजी को
जिसका कुछ न बिगाड़ सकी अंग्रेज आंधी भी
इस भारत को गांधीजी ने
अपने खून से सजाया है
तब जाकर भारत पर स्वतंत्रता
का झंडा लहराया है
गाँधी एक अकेले ने
कई गोरो को रुलाया था
असहयोग अहिंसा का नाम सुनकर
अंग्रेजी शासन डगमगाया था
यु ही नहीं गाँधी ने
भारत को आज़ाद कराया था
कई संघर्षो के वाद भारत पर
स्वतंत्रता का झंडा लहराया था
आखड़ी सांस तक देश पर
मर मिटने को बापू तैयार रहे
बिन हिंसा के देश में
आज़ादी का उन्होंने आगाज किये
चमकीले सस्त्रो को छोकर
खादी का तन पर डाल लिए
सौगंध भारत माँ की आज़ादी की
यह संकल्प मन में ठान लिए

राष्ट्रपिता जो कहे जाते है

राष्ट्रपिता जो कहे जाते है,
प्यार से बापू उन्हें बुलाते हैं।
जिन्होंने देश को आज़ाद कराया।
सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
महात्मा गांधी वो कहलाते हैं।

उन्होंने विलास को छोड़कर,
अपना जीवन देश की आज़ादी में लगाया।
विदेषी कपड़ों को त्याग कर उसने ।
देशी का महत्व समझाया।

कई आंदोलन और सत्याग्रह किये।
अंग्रेजों से लड़ने के लिए,
लोगों को अपने साथ किये,
देश को आज़ाद कराने के लिए।

सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलकर।
अंग्रेजों से लड़ी लड़ाई।
अपना तन मन धन सब कुछ सौंप दिया
अपने आपको पूरा झोंक दिया।
अंत तक लड़ी लड़ाई देश को आज़ादी दिलायी.

देख गाँधी की चाल

Mahatma Gandhi Poem in Hindi

देख कर गाँधी की चाल
हुआ अंग्रेजों का बुरा हाल
हर कदम पर मुकी खिलवाकर
किया तुने गोरों का बेहाल
ओ बापू तेरी मिसाल यहाँ

सितम जो गुलामी का तुमने सहा है
दूर करने का उसे दम भी भरा है।
सहे जुल्म कितने या बंदिशों ने रोका
फिर अहिंसा की लाठी से हर कोई डरा है
ओ बापू तेरी पहचान यहाँ

तु था आजादी का इक परवाना
देख अंग्रेजों का तुझे डर जाना
कानूनी ज्ञान का रख खजाना
सो कहाँ था उनका टिक पाना
ओ बापू तेरा है रुतबा यहाँ

वापू नमन आपको

प्यारे बापू नमन आपको।
आज़ादी का बिगुल बजाया,

अंग्रेजों को मार भगाया।
हम सबका ही, नमन आपको।

गोली से भी नहीं डरे थे,
सत्य-मार्ग पर सदा बढ़े थे।

इसीलिए तो नमन आपको,
नस्ल-भेद को दूर हटाया।

मानवता का पाठ पढ़ाया।
आज राष्ट्र का, नमन आपको।

….रमेश चन्द्र पंत

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