हमने आपके लिए बहुत सारी कविताएं लिखी हैं, जो हमें प्रेरित करेंगी, यह कविता भी अवसरवादी है, आप लोगों के लिए उत्साहवर्धक है, इन सभी कविताओं और Birthday of Shaheed Bhagat Singh Poem में आपको अच्छी शिक्षा मिलेगी, हमने ये सभी कविताएं मनोरंजन के लिए लिखी हैं आप।
भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण क्रांतिकारियों में से एक भगत सिंह हैं। 28 सितंबर, 1907 को किशन सिंह और विद्यावती ने लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा में भगत सिंह को जन्म दिया। जब उनका जन्म हुआ, तो उनके चाचा अजीत और स्वर्ण सिंह, साथ ही उनके पिता किशन सिंह, सभी को 1906 के उपनिवेशीकरण विधेयक का विरोध करने के लिए जेल में डाल दिया गया था। Birthday of Shaheed Bhagat Singh Poem राजनीतिक रूप से जागरूक परिवार में पले-बढ़े, जहां उनके परिवार ने गदर पार्टी का समर्थन किया, युवा भगत सिंह में देशभक्ति की भावना विकसित हुई।
Contents
Birthday of Shaheed Bhagat Singh Poem
भारत के लिये तू हुआ बलिदान भगत सिंह ।
था तुझको मुल्को-कौम का अभिमान भगत सिंह ।।
वह दर्द तेरे दिल में वतन का समा गया ।
जिसके लिये तू हो गया कुर्बान भगत सिंह ।।
वह कौल तेरा और दिली आरजू तेरी ।
है हिन्द के हर कूचे में एलान भगत सिंह ।|
फांसी पै चढ़के तूने जहां को दिखा दिया ।
हम क्यों न बने तेरे कदरदान भगत सिंह ।।
प्यारा न हो क्यों मादरे-भारत के दुलारे ।
था जानो-जिगर और मेरी शान भगत सिंह ।।
हरएक ने देखा तुझे हैरत की नजर से ।
हर दिल में तेरा हो गया स्थान भगत सिंह ।।
भूलेगा कयामत में भी हरगिज न ए ‘किशोर’ ।
माता को दिया सौंप दिलोजान भगत सिंह ।।
[ ब्रिटिश राज के प्रतिबंधित साहित्य से ]
प्यारा भगत सिंह
हुआ देश का तू दुलारा, भगत सिंह ।
झुके सर तेरे आगे हमारा, भगत सिंह ।
नौजवानों के हेतु हुए आप गांधी,
रहे राष्ट्र के एक गुवारा, भगत सिंह ।
किया काम बेशक है हिंसा का तुम ने,
यही दोष है इक तुम्हारा, भगत सिंह ।
मगर देश हित के लिए जान दे दी,
बढ़ा शान तेरा हमारा, भगत सिंह ।
तेरी देशभक्ति पे सब हैं निछावर,
“अभय” तेरा साहस है न्यारा, भगत सिंह ।
हुआ देश का तू दुलारा, भगत सिंह
झुके सर तेरे आगे हमारा, भगत सिंह ।
…(अभय)
28 सितंबर सन् 1907 को
भारत की धरती पर,
एक लाल ने जन्म लिया ।
माता विद्यापति की
आंखों का तारा ,
पिता का अरमान था ।
दादी ने उसका
‘भागो’ रखा नाम था,
फौलादी थी बाहें उसकी ।
जिसके सिर पर
केसरिया बाना था ,
दूर फिरंगी को करने का
इरादा मन में ठाना था ।
बांध कफन अपने सर पर
सैंडर्स की हत्या की ,
दिल्ली केंद्रीय मंत्रालय में
बम विस्फोट की घटना की ।
गद्दार फिरंगी के खिलाफ
खुले विद्रोह को बुलंदी दी ,
राजगुरु ,सुखदेव के साथ
फांसी की सजा हुई ।
फांसी की रस्सी को
हिंदे वतन का हार समझ ,
सो गया जय हिंद का उद्घोषक,
अमरत्व उसको प्राप्त हुआ।
नाज़ शहीद-ए-आजम पर
नाज पंजाब की धरती पर
जिसने वीर सपूत को जन्म दिया।
जब तक भारत की धरती पर
सूरज और चांद रहेगा ,
अमर रहेंगे भगत सिंह
अमर उनका नाम रहेगा।
Famous Hindi Poem For Bhagat Singh
क्या लेखनी आज भगत की
जो आज़ादी का परवाना था
देश भक्त था क्षवीर भगत सिंह
इन्कलाब का दीवाना था। .
महीना सितंबर तारीख 28 1907 रे
सरदार किशन के घर में जन्मा
वीर भगत सिंह लाल रे
विद्यावती माता ने भाईयो
सिंह समान पाला था
दादा -बाबा भाई -बहन
सबकी आँख का तारा था
1919 में इनके आगे
जलियावाला बाग़ हुआ
डायर ने गोली चलवाई
वहाँ खुनी फाग हुआ
चिंगारी थी जो इन्कलाब की
अब बन गयी थी ज्वाला
कूद पड़ा था आज़ादी रंग में
वीर भगत सिंह मतवाला
जेल गए थे भगत सिंह
गोरो ने अद्भुद चाल रचा
पहली बार जेल में जाकर
इन्होने भूख हरताल रखी
वो दीवाना टिका रहा
उस इंकलाब के नारे पर
नहीं भगत का शीश झुका
गोरो के खूब झुकाने पे
रोम रोम में इंकलाब था
ताब मुहो में रखता था
बीच कोट में जज के आगे
दीवानो जैसा हँसता था
राजगुरु सुखदेव भगत की
जब फांसी का ऐलान हुआ
स्वीकार सज़ा हंसकर करली
नहीं मन में कोई मलाल हुआ
माँ से मिलकर बोले भगत
मत नैनंन नीर बहाइये तू
बूढ़े बाबू जी को जाकर
धीर बधाई ये तू
हे माता मैं दूध का
सारा कर्ज चुकाऊंगा
जो दीवाने हैं आज़ादी के
सब में मैं नजर तुझे आऊंगा
23 मार्च का जब दिन आया
सारा भूमण्डल डोल गया
जेल का हर कोना कोना
रंग दे बसंती बोल रहा
उन तीनो की फांसी को
नियत भी भांप गयी होगी
चूमा होगा फांसी की रस्सी को
तब वह भी काँप गयी होगी
बोला जल्लाद उन तीनो से
अंतिम इच्छा पूरी करने को
वह तीनो बोले हाथ खोल दो
इच्छा ज़ाहिर की गले मिलने को
धन्य धन्य है वह माता
जिसने इसको जन्म दिया
धन्य धन्य है ऐसे पिता
जिसने बलिदानी सूत प्राप्त किया।
तेईस मार्च को
मर्द-ए-मैदां चल दिया सरदार, तेईस मार्च को ।
मान कर फ़ांसी गले का हार, तेईस मार्च को।
आसमां ने एक तूफ़ान वरपा कर दिया,
जेल की बनी ख़ूनी दीवार, तेईस मार्च को।
शाम का था वक्त कातिल ने चराग़ गुल कर दिया,
उफ़ ! सितम, अफ़सोस, हा ! दीदार, तेईस मार्च को।
तालिब-ए-दीदार आए आख़री दीदार को,
हो सकी राज़ी न पर सरकार, तेईस मार्च को।
बस, ज़बां ख़ामोश, इरादा कहने का कुछ भी न कर,
ले हाथ में कातिल खड़ा तलवार, तेईस मार्च को।
ऐ कलम ! तू कुछ भी न लिख सर से कलम हो जाएगी,
गर शहीदों का लिखा इज़हार, तेईस मार्च को।
जब ख़ुदा पूछेगा फिर जल्लाद क्या देगा जवाब,
क्या ग़ज़ब किया है तूने सरकार, तेईस मार्च को।
कीनवर कातिल ने हाय ! अपने दिल को कर ली थी,
ख़ून से तो रंग ही ली तलवार, तेईस मार्च को।
हंसते हंसते जान देते देख कर ‘कुन्दन’ इनहें,
पस्त हिम्मत हो गई सरकार, तेईस मार्च को।
….कुन्दन
भारत माँ का लाल है
सबसे प्यारा भगत सिंह
तेरे चरणों में झुके बार बार
शीश ये हमारा भगत सिंह
वीरता से कैसे लड़ा जाता है
हमे सिखाया है भगत सिंह
हमारे लहू में देशभक्ति बनकर
नस नस में समाये हैं भगत सिंह
भारत माँ का लाल है
सबसे दुलारा भगत सिंह
तेरे चरणों में झुके बार बार
शीश ये हमारा भगत सिंह
युवाओ में जोश बनकर
हर जगह छायें हैं भगत सिंह
जो बहुत ख़ुशनशीब होता है
वही बन पाए भगत सिंह
अगर भगत सिंह और दत्त मर गए
सख़तियों से बाज़ आ ओ आकिमे बेदादगर,
दर्दे-दिल इस तरह दर्दे-ला-दवा हो जाएगा ।
बाएसे-नाज़े-वतन हैं दत्त, भगत सिंह और दास,
इनके दम से नखले-आज़ादी हरा हो जाएगा ।
तू नहीं सुनता अगर फर्याद मज़लूमा, न सुन,
मत समझ ये भी बहरा ख़ुदा हो जाएगा ।
जोम है कि तेरा कुछ नहीं सकते बिगाड़,
जेल में गर मर भी गए तो क्या हो जाएगा ।
याद रख महंगी पड़ेगी इनकी कुर्बानी तुझे,
सर ज़मीने-हिन्द में महशर बपा हो जाएगा ।
जां-ब-हक हो जाएंगे शिद्दत से भूख-ओ-प्यास की,
ओ सितमगर जेलख़ाना कर्बला हो जाएगा ।
ख़ाक में मिल जाएगा इस बात से तेरा वकार,
और सर अकवा में नीचा तेरा हो जाएगा।
…अज्ञात
Poem On Shahid Bhagat Singh In Hindi
कभी नहीं संघर्ष से
इतिहास हमारा हारा
शहीद हुए जो भगत सिंह
उनको है नमन हमारा
बिना मतलव के वीरो ने
दुर्बल को नहीं मारा
जो मिट गए देश के लिए
उनको है नमन हमारा
उनकी राहो पर हम
चलना अवश्य सिखाएंगे
उनकी गाथा को कल
सारे बच्चे जाएंगे
प्यारा देश हमारा भारत
हम सबको है जान से प्यारा
शीद हुए जो भगत सिंह
उनको है नमन हमारा।
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान
आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है
दिल बैठा सा जाता है, हर साँस आज उन्मन है
बुझे बुझे मन पर ये कैसी बोझिलता भारी है
क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है?
हाँ सचमुच ही तैयारी यह, आज कूच की बेला
माँ के तीन लाल जाएँगे, भगत न एक अकेला
मातृभूमि पर अर्पित होंगे, तीन फूल ये पावन,
यह उनका त्योहार सुहावन, यह दिन उन्हें सुहावन।
फाँसी की कोठरी बनी अब इन्हें रंगशाला है
झूम झूम सहगान हो रहा, मन क्या मतवाला है।
भगत गा रहा आज चले हम पहन वसंती चोला
जिसे पहन कर वीर शिवा ने माँ का बंधन खोला।
झन झन झन बज रहीं बेड़ियाँ, ताल दे रहीं स्वर में
झूम रहे सुखदेव राजगुरु भी हैं आज लहर में।
नाच नाच उठते ऊपर दोनों हाथ उठाकर,
स्वर में ताल मिलाते, पैरों की बेड़ी खनकाकर।
पुनः वही आलाप, रंगें हम आज वसंती चोला
जिसे पहन राणा प्रताप वीरों की वाणी बोला।
वही वसंती चोला हम भी आज खुशी से पहने,
लपटें बन जातीं जिसके हित भारत की माँ बहनें।
उसी रंग में अपने मन को रँग रँग कर हम झूमें,
हम परवाने बलिदानों की अमर शिखाएँ चूमें।
हमें वसंती चोला माँ तू स्वयं आज पहना दे,
तू अपने हाथों से हमको रण के लिए सजा दे।
सचमुच ही आ गया निमंत्रण लो इनको यह रण का,
बलिदानों का पुण्य पर्व यह बन त्योहार मरण का।
जल के तीन पात्र सम्मुख रख, यम का प्रतिनिधि बोला,
स्नान करो, पावन कर लो तुम तीनो अपना चोला।
झूम उठे यह सुनकर तीनो ही अल्हण मर्दाने,
लगे गूँजने और तौव्र हो, उनके मस्त तराने।
लगी लहरने कारागृह में इंक्लाव की धारा,
जिसने भी स्वर सुना वही प्रतिउत्तर में हुंकारा।
खूब उछाला एक दूसरे पर तीनों ने पानी,
होली का हुड़दंग बन गई उनकी मस्त जवानी।
गले लगाया एक दूसरे को बाँहों में कस कर,
भावों के सब बाँढ़ तोड़ कर भेंटे वीर परस्पर।
मृत्यु मंच की ओर बढ़ चले अब तीनो अलबेले,
प्रश्न जटिल था कौन मृत्यु से सबसे पहले खेले।
बोल उठे सुखदेव, शहादत पहले मेरा हक है,
वय में मैं ही बड़ा सभी से, नहीं तनिक भी शक है।
तर्क राजगुरु का था, सबसे छोटा हूँ मैं भाई,
छोटों की अभिलषा पहले पूरी होती आई।
एक और भी कारण, यदि पहले फाँसी पाऊँगा,
बिना बिलम्ब किए मैं सीधा स्वर्ग धाम जाऊँगा।
बढ़िया फ्लैट वहाँ आरक्षित कर तैयार मिलूँगा,
आप लोग जब पहुँचेंगे, सैल्यूट वहाँ मारूँगा।
पहले ही मैं ख्याति आप लोगों की फैलाऊँगा,
स्वर्गवासियों से परिचय मैं बढ, चढ़ करवाऊँगा।
तर्क बहुत बढ़िया था उसका, बढ़िया उसकी मस्ती,
अधिकारी थे चकित देख कर बलिदानी की हस्ती।
भगत सिंह के नौकर का था अभिनय खूब निभाया,
स्वर्ग पहुँच कर उसी काम को उसका मन ललचाया।
भगत सिंह ने समझाया यह न्याय नीति कहती है,
जब दो झगड़ें, बात तीसरे की तब बन रहती है।
जो मध्यस्त, बात उसकी ही दोनों पक्ष निभाते,
इसीलिए पहले मैं झूलूं, न्याय नीति के नाते।
यह घोटाला देख चकित थे, न्याय नीति अधिकारी,
होड़ा होड़ी और मौत की, ये कैसे अवतारी।
मौत सिद्ध बन गई, झगड़ते हैं ये जिसको पाने,
कहीं किसी ने देखे हैं क्या इन जैसे दीवाने?
मौत, नाम सुनते ही जिसका, लोग काँप जाते हैं,
उसको पाने झगड़ रहे ये, कैसे मदमाते हें।
भय इनसे भयभीत, अरे यह कैसी अल्हण मस्ती,
वन्दनीय है सचमुच ही इन दीवानो की हस्ती।
मिला शासनादेश, बताओ अन्तिम अभिलाषाएँ,
उत्तर मिला, मुक्ति कुछ क्षण को हम बंधन से पाएँ।
मुक्ति मिली हथकड़ियों से अब प्रलय वीर हुंकारे,
फूट पड़े उनके कंठों से इन्क्लाब के नारे ।
इन्क्लाब हो अमर हमारा, इन्क्लाब की जय हो,
इस साम्राज्यवाद का भारत की धरती से क्षय हो।
हँसती गाती आजादी का नया सवेरा आए,
विजय केतु अपनी धरती पर अपना ही लहराए।
और इस तरह नारों के स्वर में वे तीनों डूबे,
बने प्रेरणा जग को, उनके बलिदानी मंसूबे।
भारत माँ के तीन सुकोमल फूल हुए न्योछावर,
हँसते हँसते झूल गए थे फाँसी के फंदों पर।
हुए मातृवेदी पर अर्पित तीन सूरमा हँस कर,
विदा हो गए तीन वीर, दे यश की अमर धरोहर।
अमर धरोहर यह, हम अपने प्राणों से दुलराएँ,
सिंच रक्त से हम आजादी का उपवन महकाएँ।
जलती रहे सभी के उर में यह बलिदान कहानी,
तेज धार पर रहे सदा अपने पौरुष का पानी।
जिस धरती बेटे हम, सब काम उसी के आएँ,
जीवन देकर हम धरती पर, जन मंगल बरसाएँ।
(क्रान्ति गंगा-श्रीकृष्ण सरल)
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सुखदेव भगत सिंह राजगुरु
आज़ादी के दीवाने थे
हंस हंस के झूले फांसी पे
भारत माँ के मस्ताने थे
वह मरे नहीं है ज़िंदा है
wah अमर शहीद कहलायेंगे
वह प्यारे वतन पर निशार हुए
वह वीरो में मर्दाने थे
यह मर्जी उस मालिक की थी
सब उसने खेल दिखाएं हैं
था लिखा उन्हें कुर्वान होना
फांसी के मुक्त बहाने थे
ब्रिटिश ने कहा माफ़ी मांगो
शायद ज़िंदगानी हो जाए
हंस हंस के सबने जबाब दिया
नहीं हशर में दाग लगाने थे
दुःख दर्द से तुमने पाला था
कुछ काम न हम आये तेरे
आज़ाद न माँ कर तुमको चले
मालिक के यायी मनमाने थे
सुखदेव भगत सिंह राजगुरु
आज़ादी के दीवाने थे
हंस हंस के झूले फांसी पर
भारत माँ के मस्ताने थे।
Poem on Veer Bhagat Singh in Hindi
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन
इसके वास्ते निसार है मेरा तन मेरा मन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन
आ.. हा.. आहा.. आ..
इसकी मिट्टी से बने तेरे मेरे ये बदन
इसकी धरती तेरे मेरे वास्ते गगन
इसने ही सिखाया हमको जीने का चलन
जीने का चलन..
इसके वास्ते निसार है मेरा तन मेरा मन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन
अपने इस चमन को स्वर्ग हम बनायेंगे
कोना-कोना अपने देश का सजायेंगे
जश्न होगा ज़िन्दगी का, होंगे सब मगन
होंगे सब मगन..
इसके वास्ते निसार है मेरा तन मेरा मन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन
इसके वास्ते निसार है मेरा तन मेरा मन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन..
जोरदार देशभक्ति कविता
वह देश, देश ही क्या, जिसमें लेते हों जन्म शहीद नहीं,
वह खाक जवानी है जिसमें मर मिटने की उम्मीद नहीं।
वह पूत, पूत क्या है जिसने माता का दूध लजाया है।
यह भी क्या कोई जीवन है, पैदा होना फिर मर जाना।
पैदा हो तो फिर ऐसा हो जैसे तांत्या बलवान हुआ,
मरना हो तो फिर ऐसे मरो जैसे भगतसिंह कुर्बान हुआ।
जीना हो तो वह ठान-ठान जो कुंवरसिंह ने ठानी थी,
या जीवन पाकर अमर हुई जैसे झांसी की रानी थी।
आज़ादी के परवानों ने जब खून से होली खेली थी,
माता को मुक्त कराने को सीने पर गोली झेली थी।
तोपों पर पीठ बंधाई थी, पेड़ों पर फांसी खाई थी,
पर उन दीवानों के मुख पर रत्ती-भर शिकन न आई थी।
वे भी घर के उजियारे थे, अपनी माता के प्यारे थे,
बहनों के बंधु दुलारे थे, अपनी पत्नी के प्यारे थे।
पर आदर्शों की खातिर जो भर अपने जी में जोम गए,
भारतमाता की मुक्ति हेतु,अपने शरीर को होम गए।
कर याद कि तू भी उनका ही वंशज है, भारतवासी है,
यह जननी, जन्म-भूमि अब भी कुछ बलिदानों की प्यासी है।
ऐसा करने में भले प्राण जाते हों तेरे, जाने दे,
अपने अंगों की रक्त-माल मानवता पर चढ़ जाने दे।
तू जिन्दा हो और जन्म-भूमि बन्दी हो तो धिक्कार तुझे।
भोजन जलते अंगार तुझे, पानी है विष की धार तुझे।
जीवन-यौवन की गंगा में तू भी कुछ पुण्य कमा ले रे,
मिल जाए अगर सौभाग्य शहीदों में तू नाम लिखा ले रे।
वीर योद्धा का नाम
भगत सिंह, वीर योद्धा का नाम,
दिलों में बसा है उनका सम्मान।
लाहौर की गलियों में उनकी शहादत हुई,
उनके बलिदान ने दिलाई,
देश को आज़ादी की मित्रता।
क्रांतिकारी सोच और आगे की दिशा,
उनकी महानता ने बदली थी जीवन की दिशा।
सिपाही भगत सिंह की वीरता की कहानी,
बच्चों के सपनों में बसी है यह कहानी।
काँग्रेस के मार्ग से असंतुष्ट होकर,
उन्होंने चुना था आज़ादी का रास्ता।
शौर्य और साहस की उन्होंने दिखाई मिसाल,
जवानी में ही उन्होंने किया था देश का समर्पण।
लाहौर के कांड में उनकी शहादत हुई,
देशभक्ति की उन्होंने परम प्राण में बसा ली।
उनके बलिदान ने जगाई थी राष्ट्रीय उत्साह,
आज भी उनकी महानता को,
हम सब समर्पित हैं।
भगत सिंह, वीर योद्धा की जयंती पर,
उनके त्याग, बलिदान और समर्पण को हम सलाम करते हैं।
Poem On Bhagat Singh In Hindi
हंसते हंसते फांसी को गले लगाया
मोमबत्तियां बुझ गयी
चिराग तले अँधेरा छाया था
फांसी के फंदे पर जब
तीनों वीरों को झुलाया था
सुखदेव,भगत सिंह,राजगुरु के
मन को कुछ और न भाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
तीनों के साथ आज
एक बड़ा सा काफिला था
भारतवर्ष में लगा जैसे
मेला कोई रंगीला था
लेकर जन्म इस पावन धरा पर
उन्होंने अपना फर्ज निभाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
मौत का उनको डर न था
सीने में जोश जोशीला था
परवाह नहीं थी अपने प्राण की
बसंती रंग का पहना चोला था,
छोड़ मोह माया इस जग की
अपनों को भी भुलाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
इंकलाब का नारा लिए
विदा लेने की ठानी थी
लटक गए फांसी पर किन्तु
मुख से उफ्फ तक न निकाली थी,
देश भक्ति को देख तुम्हारी
सबने अश्रुधार बहाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
तुम छोड़ गए इस दुनिया को
दिखाकर आजादी का सपना
सपना हुआ था सच लेकिन
हमने खो दिया बहुत कुछ अपना,
गोरों ने अपनी संस्कृति को
हमारे सभ्याचार में बसाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
टुकड़े टुकड़े कर गोरों ने
भारत माँ का सीना चीरा था
एकसूत्र करने का हम पर
बहुत ही बड़ा बीड़ा था,
हिन्दू मुस्लिम के झगड़ों ने
इंसानियत के रिश्ते को भरमाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
आज़ादी के बाद तो देखो
कैसे यह लगी बीमारी थी
हिन्दू मुस्लिम के चक्कर में
लड़ना सबकी लाचारी थी,
कुछ को हिंदुस्तान मिला
तो कुछ ने पाकिस्तान बनाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
जातिवाद का खेल में
बंट गया समाज भी अपना
ये तो वो न था
जो देखा था तुमने सपना,
सत्ता का खेल निराला आया
परिवार वाद भी उसमे गहरा छाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
गाँधी नेहरू और जिन्ना ने फिर
राजनितिक माहौल बनाया था
देश की सत्ता की खातिर
अखंडता को दांव पर लगाया था,
बस अपनी बात मनवाने को
देश को टुकड़ों में बंटवाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
सरहद के उस बंटवारे का
आज तलक असर दिखता है
भारत पाक की सीमाओं पर
सिपाही मौत से लड़ता है,
तुमने जो सोचा था वैसा
कोई ये देश बना न पाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
इक वक़्त के खाने के लिए
कोई गरीब दिन-रात तरसता है
कुछ ने रेशम की पोशाक वालों का
गुस्सा मजलूमों पर बरसता है,
कहीं जात-पात का शोर
तो कहीं आरक्षण ने सबको लड़ाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
जैसा न तुमने सोचा था
वैसी है अपनी आज़ादी
देश के लोग ही कर रहे हैं
आज इस देश की बर्बादी,
जब-जब सोचा तुम्हारे बारे में
मुझको तो रोना आया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
….स्वरचित हरीश चमोली
वीरो की धरती भारत पर
एक शूर वीर और जन्मा था
इन्कलाब का दीवाना वह
खुद को भगत सिंह बतलाता था
शेरो सी दहाड़ से उनके
अंग्रेजी सल्तनत घबराया था
छोटी उम्र का वह वीर
पुरे हिन्दुस्तान पर छाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
उसने मौत को गले लगाया था
इन्कलाब का बिगुल बजा
उसने अपना फ़र्ज़ निभाया था
Shahid Bhagat Singh Poem in Hindi
निडर थे भगत सिंह
हँसते हँसते शूली पर चढ़ने वाले,
नज़र नहीं आते अब वैसे मतवाले।
स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे सेनानी,
भगत सिंह थे फौलादी सीने वाले।
फिरंगियों से ऐसा जम कर युद्ध हुआ,
राजगुरु सुखदेव का सच्चा संग हुआ।
संसद में बम फेंक डरे न भागे वो,
देख वीरता उनकी दुश्मन दंग हुआ।
खुला किया विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य हिला,
आजादी की घुट्टी सबको दिया पिला।
युवकों के आदर्श निडर थे भगत सिंह,
सांडर्स को मारा गोरों को सबक मिला।
देश है अब आजाद स्वतंत्रता दिवस मनाएं,
वीर शहीदों को पर न कभी भुलाएं।
कायम रखना आजादी को हर कीमत पर,
प्रण कर लें जीवन भर ऐसा हम कर पायें।
…हरजीत निषाद
भारत देश का था वो दुलारा
झुके उसके आगे शीश हमारा
हंसकर झूल गया फांसी प
वो है पुरे हिन्दुस्तान का प्यारा
किया काम बेशक हिंसा का तूने
केवल यही है दोष तुम्हारा
देश के लिए हो गए कुर्वान
और बढ़ा दिया गौरव हमारा
तेरी देशभक्ति पर सब है न्योछावर
तेरा साहस है सबसे न्यारा
भारत देश का था वो दुलारा
झुके उसके आगे शीश हमारा।
शहीद भगत सिंह
सुनो जम्बू के वीर लाल,
गाथा वर्णन एक भरत बाल।
रग-रग में जिसके इंकलाब,
जीवन जैसे क्रांति मशाल।
जननी जिसकी विद्यावती,
पिता सरदार किशन सिंह।
जन्मे 1907 में,
नाम पाया भगत सिंह।
बारह बरस में देख रक्तपात,
अपने ही परिवार का।
ठाना भगत ने लूँगा प्रतिशोध,
जलियाँवाला बाग का।
त्याग कर लड़कपन की अठखेलियाँ,
पोथी शुर-वीरों की पढ़ने लगा।
काटकर परतंत्रता की बेड़ियाँ,
आज़ादी का स्वप्न गढ़ने लगा।
पगड़ी बाँध, भर जोश हृदय में,
नौजवान काफिला उसने बनाया।
निराश हो चौरा-चौरी कांड से,
सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया।
क्षुब्ध हो लाला जी की हत्या से,
की प्रतिशोध की जंग शुरु।
संगठित किया क्रांति वीरों को,
प्रमुख जिनमें चंद्रशेखर और राजगुरु।
फेका बम असेम्बली में उस स्थान,
जहाँ न खड़ा था कोई इंसान।
जो स्वार्थ में बिक जाये वो देशभक्त नहीं,
जो डरकर भाग जाये ऐसा भगत सिंह नहीं।
कहकर बटुकेश्वर संग अपने पैर जमा दिए,
और इंकलाब जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद,
उद्धोष संग सारे पर्चे उड़ा दिए।
फिर आयी शाम तेईस की,
मार्च का था महीना।
सीने में भरकर जोश जोशीला,
चले जवान पहन बसंती चोला।
मौत का न था डर उनको,
भारतभूमि शीश चढ़ाने बढ़े चले।
फाँसी के फंदे को गले लगाने,
वतन के शहीदे आजम बढ़े चले।
….समीक्षा गायकवाड़
Best Short Poem on Bhagat Singh in Hindi
वीर जवानों को सलाम कविता
वीर जवानों की गाथाएं तुमको आज सुनाता हूं,
तूफानों में डेट रहे जो उनको शीश झुकाता हूँ,
कर्मपथ के वे अनुरागी मैं तो उनका दास हूं,
उनकी ही आजादी में लेता खुलकर सांस हूँ,
भारत माता के प्रणय हेतु करता ये अहसास हूँ,
गाकर गाथा उन वीरों की मन से मैं मुस्कुराता हूँ,
वीर जवानों की गाथाएं तुमको आज सुनाता हूं।
भारत देश पर प्यारी सी कविता
स्वर्ग की गोद में कैसा नरक पसरा हुआ है,
पग-पग छाया आतंक, हर जर्रा खून से लाल हुआ।
कुछ रिश्ते और यतीम हुए कुछ सपने और कुर्बान,
राहे वतनपरस्ती में फिर वीरों ने जान लुटाई,
अपना था वो किसी का सपना था वो जो वहां शहीद हुआ,
जिसकी मौत पर सारा वतन गमगीन हुआ।
है नमन सब शहीदों को दिल में गूंजती यह पुकार,
अंत हो आतंक का अब ना जाए ये बलिदान बेकार।
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