Hindi Diwas Poem in Hindi | हिंदी दिवस कविता हिंदी में

हमने आपके लिए बहुत सारी कविताएं लिखी हैं, जो हमें प्रेरित करेंगी, यह कविता भी अवसरवादी है, आप लोगों के लिए उत्साहवर्धक है, इन सभी कविताओं और Hindi Diwas Poem में आपको अच्छी शिक्षा मिलेगी, हमने ये सभी कविताएं मनोरंजन के लिए लिखी हैं आप।

Hindi Diwas Poem

हिंदी दिवस, एक ऐसा दिन है जिस दिन अधिकांश अंग्रेजी भाषी भारतीयों को भी हिंदी याद रहती है। यह और बात है कि विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक हिंदी आज अपने ही देश में अपने ही लोगों से अपने अस्तित्व और अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है। Hindi Diwas Poem हममें से लगभग सभी लोग जानते हैं कि हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस तारीख को ही हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है. आइए आपको बताते हैं कि 14 सितंबर को हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है?

Hindi Diwas Poem

मैं भारत माँ के मस्तक पर सबसे चमकीली बिंदी हूँ
मैं सब की जानी पहचानी भारत की भाषा हिंदी हूँ

मेरी बोली में मीरा ने मनमोहक काव्य सुनाया है
कवि सूरदास के गीतों में मैंने कम मान न पाया है

तुलसीकृत रामचरितमानस मेरे मुख में चरितार्थ हुई
विद्वानों संतों की वाणी गुंजित हुई, साकार हुई

भारत की जितनी भाषाएँ सब मेरी सखी सहेली हैं
हम आपस में क्यों टकराएं हम बहने भोली भाली हैं

सब भाषाओं के शब्दों को मैंने गले लगाया है
इसलिए भारत के जन-जन ने मुझे अपनाया है

मैंने अनगिनत फिल्मों में खूब धूम मचाई है
इसलिए विदेशियों ने भी अपनी प्रीति दिखाई है

सीधा-साधा रूप ही मेरा सबके मन को भाता है
भारत के जनमानस से मेरा सदियों पुराना नाता है

मैं भारत माँ के मस्तक पर सबसे चमकीली बिंदी हूँ
मैं सब की जानी पहचानी भारत की भाषा हिंदी हूँ

‘हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा’

Hindi Diwas Poem

हिन्दी-हिन्दु-हिन्दुस्तान
कहते है, सब सीना तान
पल भर के लिये जरा सोचे इन्सान
रख पाते है हम इसका कितना ध्यान

सिर्फ 14 सितम्बर को ही करते है
अपनी राष्टृ भाषा का सम्मान
हर पल हर दिन करते है हम
हिन्दी बोलने वालो का अपमान

14 सितम्बर को ही क्यों
याद आता है बस हिन्दी बचाओं अभियान
क्यों भूल जाते है हम
हिन्दी को अपमानित करते है खुद हिन्दुस्तानी इंसान

क्यों बस 14 सितम्बर को ही हिन्दी में
भाषण देते है हमारे नेता महान
क्यों बाद में समझते है अपना
हिन्दी बोलने में अपमान
क्यों समझते है सब अंग्रेजी बोलने में खुद को महान

भूल गये हम क्यों इसी अंग्रेजी ने
बनाया था हमें वर्षों पहले गुलाम
आज उन्हीं की भाषा को क्यों करते है
हम शत् शत् प्रणाम
अरे ओ खोये हुये भारतीय इंसान

अब तो जगाओ अपना सोया हुआ स्वाभिमान
उठे खडे हो करें मिलकर प्रयास हम
दिलाये अपनी मातृभाषा को हम
अन्तरार्ष्टृीय पहचान
ताकि कहे फिर से हम
हिन्दी-हिन्दु-हिन्दुस्तान
कहते है, सब सीना तान

जो सोचूं हिंदी में सोचूं

जो सोचूं हिंदी में सोचूं
JO बोलू हिंदी में बोलू.

जन्म मिला हैं हिंदी के घर में
हिन्दी द्रश्य अद्र्शय दिखाए.
जैसे माँ अपने बच्चो को
अग-जग की पहचान कराये.
ओझल-ओझल भीतर का सच
जब खोलू हिंदी में खोलू.

निपट मूढ़ था पर हिंदी ने
मुझसे नये गीत रचवाए.
जैसे स्वय शारदा माता
गूंगे से गायन करवाएं.
आत्मा के आंसू का अमृत
जब घोलू हिंदी में घोलू.

शब्दों की दुनियाँ में मैंने
हिंदी के बल अलख जगाएं.
जैसे दीप शिखा के बिरवे
कोई ठंडी रात बताएं.
जो कुछ हु हिंदी से हु मै
जो हो लूं हिंदी से हो लूं.

हिंदी सहज क्रांति की भाषा
यह विप्लव की अकथ कहानी.
मैकालें पर भारतेंदु की
अमर विजय की अमिट निशानी.
शेष गुलामी के दागों को
जब धो लू हिंदी में धो लूं.

हिंदी के घर फिर-फिर जन्मू
जनमो का क्रम चलता जाए.
हिंदी का इतना ऋण मुझ पर
सांसो सांसो तक चुकता जाएं
जब जागूँ हिंदी में जांगू
जब सो लू हिंदी में सो लू.

….डॉक्टर ताराप्रकाश जोशी

Hindi Diwas Poem in Hindi

मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
राष्ट्रभाषा हूँ मैं अभिलाषा हूँ मैं,
एक विद्या का घर पाठशाला हूँ मैं |
मेरा घर एक मंदिर बचा लो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
देख इस भीड़ में कहां खो गई,
ऐसा लगता है अब नींद से सो गई |
प्यार की एक थपक से जगा लो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
मैं हीं गद्य भी बनी और पद्य भी बनी,
दोहे, किससे बनी और छंद भी बनी |
तुमने क्या-क्या ना सीखा बता दो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
मैं हूँ भूखी तेरे प्यार की ऐ तू सुन,
दूँगी तुझको मैं हर चीज तू मुझको चुन।।।

….अभिषेक मिश्र

जन-जन की भाषा है हिंदी

जन-जन की भाषा है हिंदी,
भारत की आशा है हिंदी,

जिसने पूरे देश को जोड़े रखा है,
वो मज़बूत धागा है हिंद,

हिन्दुस्तान की गौरवगाथा है हिंदी,
एकता की अनुपम परम्परा है हिंदी,

जिसके बिना हिन्द थम जाए,
ऐसी जीवन रेखा है हिंदी,

जिसने काल को जीत लिया है,
ऐसी कालजयी भाषा है हिंदी,

सरल शब्दों में कहा जाए तो,
जीवन की परिभाषा है हिंदी।

निज भाषा उन्नति अहै

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।

इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।

तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।

….भारतेंदु हरिश्चंद्र

Hindi Poem for Class 12

हिंदी है देश के माथे की बिंदी।
आओ मिल कर बोले हिंदी हिंदी।।
विंध्‍य हिमांचल युमुना और गंगा।
द्राविण उत्‍कल और बंग।।

सिर मौर्य हिमालय पर चढ।
बतलाओं भातर है हिंदी का गढ।।
तुलसी और मीरा की जागिर है हिंदी।
भातर के माथे की श्रंगार है हिंदी।।

इकबाल का इंकलाबी नारा है हिंदी।
रसखान ने जिसे दलारा वह हिंदी।।
गालिब ने इसकाे जिया है।
मुंशी ने तो इसको सिया है।।

राम कष्‍ण का बचन है हिंदी।
गीता का प्रवचन है हिंदी।।
सागर की आगाज है हिंदी।
हिंदुस्‍तान की आवाज है हिंदी।।

….प्रभुनाथ्‍ा शुक्‍ल

Hindi Diwas Par Kavita Hindi Mein

हम सबकी प्यारी,
लगती सबसे न्यारी।
कश्मीर से कन्याकुमारी,

राष्ट्रभाषा हमारी।
साहित्य की फुलवारी,
सरल-सुबोध पर है भारी।
अंग्रेजी से जंग जारी,

सम्मान की है अधिकारी।
जन-जन की हो दुलारी,
हिन्दी ही पहचान हमारी।

….संजय जोशी ‘सजग’

गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार;

राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार;

हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला;

देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला;

कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी;

भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी!

Poem On Hindi Diwas In Hindi

संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी।
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।

सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।

पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।

पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।

तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।

वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।

अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।

यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

….मृणालिनी घुले जी

हिंदी हमारी आन है हिंदी हमारी शान है
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

हिंदी हमारी वर्तनी हिंदी हमारा व्याकरण
हिंदी हमारी संस्कृति हिंदी हमारा आचरण

हिंदी हमारी वेदना हिंदी हमारा गान है।
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

हिंदी हमारी आत्मा है भावना का साज़ है
हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है

हिंदी हमारी अस्मिता हिंदी हमारा मान है।
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है
हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है

हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है।
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे
तब तक वतन की राष्ट्रभाषा ये अमर हिंदी रहे

हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है।
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

….सुनील जोगी

हिंदी हमारी आन है हिंदी हमारी शान है
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

हिंदी हमारी वर्तनी हिंदी हमारा व्याकरण
हिंदी हमारी संस्कृति हिंदी हमारा आचरण

हिंदी हमारी वेदना हिंदी हमारा गान है।
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।

हिंदी हमारी आत्मा है भावना का साज़ है।
हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है।

Short Poem in Hindi

वैसे तो हर वर्ष बजता है नगाड़ा

वैसे तो हर वर्ष बजता है नगाड़ा,
नाम लूँ तो नाम है हिंदी पखवाड़ा।
हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा,

कितना अच्छा व कितना प्यारा है ये नारा।
हिंदी में बात करें तो मूर्ख समझे जाते हैं।
अंग्रेजी में बात करें तो जैंटलमेल हो जाते।

अंग्रेजी का हम पर असर हो गया।
हिंदी का मुश्किल सफ़र हो गया।
देसी घी आजकल बटर हो गया,

चाकू भी आजकल कटर हो गया।
अब मैं आपसे इज़ाज़त चाहती हूँ,
हिंदी की सबसे हिफाज़त चाहती हूँ।।

संस्कृत की एक लाड़ली बेटी

संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी,
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी,
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी,
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी,
पढ़ने व पढ़ाने में सहज़ है सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी,
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी,
वागेश्वरी के माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी,
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपने पन से लुभाती है ये हिन्दी,
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

Short poem on Hindi Diwas in Hindi

हिन्दी की मिठास, हिन्दी की बात,
हिन्दी के बिना, अधूरा है सब कुछ।
शब्दों का जादू, भाषा की शान,
हिन्दी हमारी प्यारी, बढ़ाती मान।

हिन्दी के सौंदर्य, है अद्वितीय,
हर शब्द में छुपा है अमूल्य रत्न।
हिन्दी दिवस पर, हम सब मिलकर,

इसे बढ़ावा दें, बनाएं महान।
हिन्दी को जन्म दिन की शुभकामनाएँ,
सबको मिले इसके संग अच्छे सपने।

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राष्ट्रभाषा की व्यथा

राष्ट्रभाषा की व्यथा,
दु:खभरी इसकी गाथ,
क्षेत्रीयता से ग्रस्त है,
राजनीति से त्रस्त है,
हिन्दी का होता अपमान,
घटता है भारत का मान,
हिन्दी दिवस पर्व है,
इस पर हमें गर्व है,
सम्मानित हो राष्ट्रभाषा,
सबकी यही अभिलाषा,
सदा मने हिन्दी दिवस,
शपथ लें मने पूरे बरस,
स्वार्थ को छोड़ना होगा,
हिन्दी से नाता जोड़ना होगा,
हिन्दी का करे कोई अपमान,
कड़ी सजा का हो प्रावधान,
हम सबकी यह पुकार,
सजग हो हिन्दी के लिए सरकार।

मैं हूं हिंदी वतन की बचा लो मुझे

मैं हूं हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
राष्ट्रभाषा हूं मैं अभिलाषा हूं मैं,
एक विद्या का घर पाठशाला हूं मैं,
मेरा घर एक मंदिर बचा लो मुझे,
मैं हूं हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
देख इस भीड़ में कहां खो गई,
ऐसा लगता है अब नींद से सो गई,
प्यार की एक थपक से जगा लो मुझे,
मैं हूं हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
मैं ही गद्य भी बनी और पद्य भी बनी,
दोहे, किससे बनी और छंद भी बनी,
तुमने क्या-क्या ना सीखा बता दो मुझे,
मैं हूं हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
मैं हूं भूखी तेरे प्यार की ऐ तू सुन,
दूंगी तुझको मैं हर चीज तू मुझको चुन,
अपने सीने से एक पल लगा लो मुझे,
मैं हूं हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
मैं कहां से शुरू में कहां आ गयी,
सर जमी से चली आसमां पा गयी,
वह हंसी पल मेरा फिर लौटा दो मुझे,
मैं हूं हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
तेरी कविता हूं मैं हूं कलम तेरी,
मां तो बनके रहूं हर जन्म में तेरी,
अपना ए दोस्त आप बना लो मुझे,
मैं हूं हिंदी वतन की बचा लो मुझे।

आसान होते संवाद मेरे

आसान होते संवाद मेरे,
जब कथन हिंदी में कहता हूं।
और लगे प्यारी मुझे ये,
जब हर शब्द इसका लिखता हूं।

गर्व है वर्णमाला पर इसकी,
कठिन है मगर आसान समझता हूं।
होता हूं आनंद विभोर मैं,
जब हर शब्द इसका पढ़ता हूं।

लगे आसान वेद पुराण उपनिषद,
जब हिंदी भाषा में सुनता हूं।
कोई ना संशय रहता मन में,
हर शब्द को भावार्थ में समझता हूं।

हर भाषा का एक स्वरूप होता है,
मैं हिंदी को निजी स्वरूप समझता हूं।
आसान होते संवाद मेरे,
जब कत्ल हिंदी में कहता हूं।

Hindi Diwas Poem in Hindi for Sstudents

मेरी माँ हिन्दी

Hindi Diwas Poem

हिंदी मेरी लिए माँ समान।
अब और नहीं सह सकते
हम इसका अपमान

इसने उंगली पकड़ के मेरी
पकड़ाया मुझको ज्ञान चिराग
भर भर के प्रीत को मुझ में
डाले मुझ में सुगन्धित पराग

ताकि मैं इसकी सुगंध से
महकाऊँ सारा जहान
जो दी इसने मुझको पहचान
बदले में दिलाऊं इसको मान

लेकिन मैं अकेला नहीं
मेरे साथ तो मेला है
मेरे जैसे अनेक हिंदुस्तानी
हिंदी की गोदी में खेला है

वो भी मांगे हिंदी अधिकार
हे हिंद की यह पुकार
यह मां हमारी सो करें पुकार
ना करो और अब अत्याचार

हर हिंदीभाषी हिंदी बोले
देश दुनिया के राज खोले

हिंदी बोले फ़िल्मी सितारे
हिंदी में करे साक्षात्कार
हिंदी में बोले क्रिकेटर
हिंदी बने उनकी पुकार

हिंदी में दे नेता भाषण
हिंदी में मिले सर्वोच्च न्याय
हिंदी में ही चले प्रशासन
हिंदी में जग अपना समाय

सभी भारतीयों की पहचान

सरपट-सरपट चलती गाडी,
जल्दी से करलो तैयारी…

हिंदी दिवस है आने वाला,
फिर से होगा प्रचार मस्ताना…

जल्दी जल्दी काम करलो,
हिंन्दी को आबाद करलो…

कहने को तो है एक भाषा,
पर इससे है मेरे दिल नाता…

सभी भारतीयों की पहचान है,
सब हिन्दुस्तानियो का सम्मान है||

Patriotic Poem

हिंदी’ हमारी मातृभाषा

हिन्दी है हमारी मातृभाषा,
और हमारे देश की पहचान।

इससे ही है गर्वित हमारी संस्कृति,
ये ही है हमारा अभिमान।

है हमारा कर्तव्य,
करना अपनी भाषा का मान।

रहे सदा जीवित ये जिससे,
और बना रहे इसका सम्मान।

आओ मिलकर ये वचन उठायें,
इसको हम न धूमिल होने देंगे।

रखेंगे हम सदा इसका ध्यान,
क्योंकि ये ही है हमारा स्वाभिमान।

….निधि अग्रवाल

poem on hindi diwas

गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार,
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला,
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला,
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी,
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी।

हिंदी का अपमान

भाषण देते हैं हमारे नेता महान,
क्यों बाद में समझते है अपना,
हिन्दी बोलने में अपमान।
क्यों समझते हैं सब,

अंग्रेजी बोलने में खुद को महान।
भूल गए हम क्यों इसी अंग्रेजी ने,
बनाया था हमें वर्षों पहले गुलाम।
आज उन्हीं की भाषा को क्यों करते है,
हम शत् – शत् प्रणाम।

अरे ओ खोए हुए भारतीय इंसान,
अब तो जगाओ अपना सोया हुआ स्वाभिमान।
उठे खड़े हो करें मिलकर प्रयास हम,
दिलाए अपनी मातृभाषा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान हम।

Hindi Diwas Short Poem in Hindi

एक राष्ट्रभाषा हो हिन्दी

एक राष्ट्र-भाषा हो हिन्दी,
सबका सपना हो हिन्दी।
हिन्दी बिना चले ना अब,
हिन्दी में ही हो काम सब।

एक सुन्दर भाषा है हिन्दी,
सहज,सरल भाषा है हिन्दी।
राष्ट्रभाषा, राजभाषा है हिन्दी,
जन-जन की भाषा है हिन्दी।

आओ करें हिन्दी का गुण-गान,
हिन्दी है हमारा राष्ट्रीय अभिमान।
हिन्दुस्तान की है यह शान,
इस पर लुटा दो अपनी जान।

हिन्दी है अपनी अंग्रेजी पराई,
सौतेली सदा सौतेली है भाई।
तोड़ अब जंजीर अंग्रेजी का,
पहन लो जंजीर हिन्दी का।

एक अपनी भाषा है हिन्दी,
सबकी प्यारी भाषा है हिन्दी।
सबकी न्यारी भाषा है हिन्दी,
आम-भाषा, संपर्क-भाषा है हिन्दी।

एक राष्ट्र-भाषा हो हिन्दी,
सबका सपना हो हिन्दी।
हिन्दी बिना चले ना अब,
हिन्दी में ही हो काम सब।

….सुव्रत दे

हर मतलब समझाती हिन्दी

सबके मन को भाती हिंदी,
देश का मान बढाती हिंदी‌।
जीत ले दिल जो हिंदी बोले,
हर मतलब समझाती हिंदी।

बिछड गए जो दूर देश में,
अपनों से मिलवाती हिंदी।
भूल गए हैं जो नादानी में,
सबको संस्कार सिखाती हिंदी।

जोड़ के वर्णों को शब्द बना दे,
छंद का ज्ञान कराती हिंदी।
मन मे भाव उठा जिस रस का,
वह रसपान कराती हिंदी।

हिंदी को अपनाएंगे हम,
हर क्षेत्र में इसे बढाएंगे हम।
हिंदी है हम सब भाषा
जन जन को सिख लाऐंगे हम।

….रजनी त्रिपाठी

गर्व करो हिंदी पर

आओ मिलकर नमन करे,
फैले हिंदी चारों और।
गर्व करो हिंदी पर,
नित नूतन हो इसका भोर।

लिपि है इसकी देवनागरी
मातृभाषा यह कहलाती,
अनेक बोलियों को समा आंचल में
प्रेरणादायिनी यह कहलाती,
खास स्थान है इसका अपना,

जैसे राष्ट्रीय पक्षी है मोर।
आओ मिलकर नमन करे,
फैले हिंदी चारों और।
गर्व करो हिंदी पर,
नित नूतन हो इसका भोर।

अभिवक्ति में है सक्षम
भावप्रधान यह कहलाती,
आम जन की भाषा बनकर,
विराट रूप यह दिखलाती।
अनेक क्षेत्र और देश-विदेश में,

महिमा इसकी चारों और।
आओ मिलकर नमन करे,
फैले हिंदी चारो और।
गर्व करो हिंदी पर,
नित नूतन हो इसका भोर।

मुझे गर्व है हिंदी भाषा पर
उन्नति करे यह हमेशा,
भाषाओं में गर्वीली है।
यह रूप इसका माता जैसा,
जहां भी होती इसकी चर्चा,

सम्मान पाती है चहुं और।
आओ मिलकर नमन करे,
फैले हिंदी चारों और
गर्व करो हिंदी पर,
नित नूतन हो इसका भोर।

….मोनिका रानी व्यास

kavita Hindi Diwas in Hindi

‘हिंदी का सम्मान’

हिंदी का सम्मान करो, यह हमारी राज भाषा,
मिलाती देशवाशियों के दिलों को यह, पूरी करती अभिलाषा।

देखो प्रेमचंद और भारतेन्दु के यह हिंदी साहित्य,
जो लोगो के जीवन में ठहाको और मनोरंजन के रंग भरते नित्य|

हिंदी भाषा की यह कथा पुरानी लगभग एक हजार वर्ष,
जो बनी क्रांति की ज्वाला तो कभी स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष|

आजाद भारत में भी इसका कम नही योगदान,
इसलिए हिंदी दिवस के रुप में इसे मिला यह विशेष स्थान|

विनती बस यही हिंदी को ना दो तुम यह दोयम दर्जे का मान,
हिंदी से सदा करो प्रेम तुम दो इसे विशेष सम्मान|

रोज मनाओ तुम हिंदी दिवस बनाओ इसे अपना अभिमान,
हिंदी है हमारी राजभाषा इसलिए दो इसे अपने ह्रदयों में विशेष स्थान|

अंग्रेजी की माला जपकर ना करो हिंदी का अपमान,
आओ मिलकर सब प्रण ले नित्य करेंगे हिंदी का सम्मान|

….योगेश कुमार सिंह

जय हिंदी

संस्कृत से जन्मी है हिन्दी,
शुद्धता का प्रतीक है हिन्दी।
लेखन और वाणी दोनो को,
गौरन्वित करवाती हिन्दी।

उच्च संस्कार,विध्यिता है हिन्दी,
सतमार्ग पर ले जाती हिन्दी।
ज्ञान और व्याकरण की नदियाँ,
मिलकर सागर सोत्र बनाती हिन्दी।

हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी,
आदर और मान है हिन्दी।
हमारे देश की गौरव भाषा,
एक उत्कृष्ट अहसास है हिन्दी।।

….प्रतिभा गर्ग

बेमतलबी जिंदगी को मतलब मिला,
तुम ऐसे मिली जैसे मुझे रब मिला.
तुम से मिलने से पहले जीने में मजा कहां था,
सिरफिरे बनके फिरते थे ऐसे कुछ पता कहां था.

लगता था कुछ भी नहीं था, तुम मिली तो सब मिला.
बेमतलबी जिंदगी को मतलब मिला,
तुम ऐसे मिली जैसे मुझे रब मिला.

हर डर को भूल के मैं झूम झूम के नाचने लगा,
ए प्रिया ! तेरे आने से मन के सावन बरसने लगे
का फिरानी बदतमीजी को मजहब मिला,
बेमतलबी जिंदगी को मतलब मिला,
तुम ऐसे मिली जैसे मुझे रब मिला.

मेरे भींगते तन को जब तूने छतरी में छिपाया था,
इस दुनिया से कट कर उस दिन तुझमें संसार नजर आया था.
नाहक आती जाती सांसों को करतब मिला,
बेमतलबी जिंदगी को मतलब मिला,
तुम ऐसे मिली जैसे मुझे रब मिला.

….राज कुमार यादव

“हिंदी की दुर्दशा”

ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना
अब हर सुबह ‘सन’ उगता है
ओर दोपहर को कहते सब ‘नून’

चंदा मामा तो कहीं खो गये
अब तो हर बच्चा बोले ‘मून’
ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना।

मां बोलती, खालो बेटा जल्दी से
नहीं तो डॉगी आजाएगा,
अब ऐसे मे वो नन्हा बालक भला
कुत्ते को कैसे जान पाएगा।

बचपन से जो देखा हमने
वही सीखते हैं हम जीवन में,
जब विद्या लेने वो स्कूल है जाता
तो विद्यालय कहां से जान पाएगा।

ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा है दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना।
जनवरी, फरवरी तो याद हैं सबको
पर हिंदी के माह सिलेबस में नहीं,

ए, बी, सी तो सब हैं जानते
पर क, ख, ग से हैं अंजान कई।
हिंद देश के वासी हैं हम
पर हिंदी से न कोई नाता है,

ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना।
भाषा का विज्ञान समझ लो,
क्यों कि अब इंजीनियरिंग का है स्कोप नहीं

हिंदी का ही ज्ञान तुम लेलो
क्यों कि विदेशों मे है अब मांग बड़ी।
चाहे दुनिया में जहां भी जाओ
हिंदुस्तानी ही कहलाओगे,

अगर पूछ ले कोई देश की भाषा तो,
शर्म से पानी-पानी हो जाओगे।
ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना।

…..कनक मिश्रा

Hindi Diwas Kavita in Short

हिंदी को नमन

हिंदी है मेरी जुबान
हिंदी है मेरी पहचान
हिंदी है मेरा अभिमान
हिंदी है मेरा सम्मान

मेरी वाणी को दिया प्राण
दूर किया मेरा अज्ञान
आई समझ कर इसका पान
इसके ज्ञान दान से विद्वान

यह भारतीय काव्य सुगन्ध
इसके रस रस में परमानंद
सींचे प्रेम से मुक्तक छन्द
दूर कर मन की दुर्गन्ध

हैं बड़े धनी इसके संस्कार
भरपूर समाया इसमें प्यार
देखा मैंने इसमें संसार
यह बनी मेरा जीवन आधार

हिंदी को है अर्पण जीवन
रची बसी यह मेरे तन मन
सींचे जवानी सींचा बचपन
हिंदी को कोटि कोटि नमन

हिंदी दिवस पर सुंदर कविता

Hindi Diwas Poem

हिंदी तुम ऐसे ही रहना
अपने ही मन की तुम कहना
है उपेक्षित हमे समझना
हिंदी है भावो का गहना

जो इसे दुस्कर माने हैं
कहां इसे पूरा जाने हैं
हिंदी ने सब अपनाया है
विविधता में मन रामाया है

बुनती आयी बोली भाषा
प्रेम बढ़े यह सबकी आशा
कोई कहे संस्कृत की बेटी
या अवाहट से जीवन पाया है

हिंदी ने सब अपनाया है
अवधि ब्रज और खरी भाषा
घोल पिया मन फिर भी प्यासा
अंग्रेजी संग नेह किया

इंग्लिश रूप घर आयी है
हर सांचे में ढलती हिंदी
क्यों अपने घर में बनी परायी है
इतनी दूरी तय की इसने

भाषायी दंगल में पीसने
हमने छोड़ा हिंदी को
पर हिंदी छोड़ न पायी है
सात समंदर पार भी हिंदी
मन में बैठ चली आयी है

हिंदी जैसी बात नहीं

भाषाओं का देश है भारत
पर हिन्दी जैसी बात नही।
संस्कृत ने दी हमें संस्कृति
दिया हिन्दी ने हिन्दुस्तान।

अपनाकर अंग्रेजी भाषा को
क्यों भूल गये अपनी पहचान?
आजादी की पहचान कराती
वीरों की गाथाएं सुनाती।

एक धागे मे बांध सभी को
एकता का पाठ सिखाती।
सारी दुनिया में, हिन्दी का डंका
हिन्दी भाषा भारत की जान।

अपनाकर अंग्रेजी भाषा को
क्यों भूल गये अपनी पहचान?
हम सबका अभिमान है हिन्दी
हिन्दुस्तान का है श्रृंगार।

उत्तर, दक्षिण, पूर्व से पश्चिम
हर कोने को हिन्दी से प्यार।
अपनी राष्ट्रीय भाषा का आओं करे सम्मान।
अपनाकर अंग्रेजी भाषा को

क्यों भूल गये अपनी पहचान?
मेरे सपनों की पहचान है हिन्दी
हिन्दी साहित्य की जान है हिन्दी।
सबके व्यक्तित्व को निखारती

सब विधाओं का मान है हिन्दी।
देश का गौरव देश की है शान
अपनाकर अंग्रेजी भाषा को
क्यों भूल गये अपनी पहचान?

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

हिन्दी

हिन्दी नहीं है भाषा कोई,
यह तो अपनी माता है।
इससे तो जन्मों जन्मों का

अपना अनुपम नाता है।
इससे ही संसार है अपना,
इससे ही परिवार है।
बता रहा हूँ कम शब्दों में,

यह अपनी भाग्य विधाता है।
हिन्दी नहीं है भाषा कोई,
यह तो अपनी माता है।
समृद्ध विरासत इससे अपनी,
इससे जग में पहचान है।

इसके स्वर और व्यंजन से ही
चलती अपनी जबान है।
प्रेम और सम्मान सिखाकर,
अनुपम राह दिखाती है।

लगता है शब्दों में इसके
अमृत की कोई खान है।
समृद्ध विरासत इससे अपनी,
इससे जग में पहचान है।

सहे प्रहार अनेकों हैं पर
तनिक नहीं घबराई है।
जितनी चोटें खाई है,
उतनी समृद्ध हो आई है।

मन में कोई द्वेष न इसके,
न ही बैर भाव कोई।
देख कर अपनी बहनों को
सदा ही यह मुस्काई है।

सहे प्रहार अनेकों हैं पर
तनिक नहीं घबराई है।
देवनागरी लिपि इसकी,
संस्कृत इसकी माता है।

हिंद का बच्चा बच्चा
इसे देख मुस्काता है।
सदा सँजोती भाव हमारे,
अपने समृद्ध व्याकरण से।

बृहद शब्दकोष इसका
अनुपम इसे बनाता है।
हिन्दी नहीं है भाषा कोई
यह तो अपनी माता है।

….अमलेन्दु शुक्ल

Hindi Diwas Special kavita

मैं हिंदी हूँ

खो रही हूँ स्वयं का अस्तिव मैं,
हो गयी हूँ अपभ्रंश,
टूट से गये है मेरे स्वरों के तार,
कर रहे मेरा विध्वंस।

कौन हूँ मैं स्वयं से जब पूछती,
आती है एक मध्यम सी ध्वनि,
मैं हिंदी हूँ।

थी कभी मैं भी विशिष्ट,
और सबसे अद्वितीय,
पर हुए इतने आघात मुझपर,
कि हो गयी हूँ मैं किलिष्ट।

खोज रही स्वयं में ही स्वयं को,
मैं हिंदी हूँ।

न करो यूँ अपमानित मुझको,
और मेरे स्वरूप का विनाश,
करो कुछ ऐसा कि,
बढ़े मेरी पहचान और हो मेरा विकास।

चीख़-चीख़ कर सबसे यही पुकार,
मैं हिंदी हूँ।

…..निधि अग्रवाल

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