परिवार वह है जिसके साथ आप अपने सारे सुख-दुख साझा कर सकते हैं। जीवन की कठिनतम परिस्थितियों में परिवार आपके साथ खड़ा रहता है। परिवार आपको वह गर्मजोशी और स्नेह देता है Poem on My Family in Hindiजो शायद आपको कहीं और नहीं मिलता। मुझे भी ऐसे परिवार का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मेरा परिवार हमेशा मेरी ताकत रहा है।’ मेरे परिवार में मेरी माँ, पिताजी, बहन और मैं हैं।
Contents
Poem on My Family in Hindi
माता-पिता और भाईं बहिनो से,
ब़नता हैं परिवार,
दादा-दादी, नाना-नानी,
होतें इसकें मज़बूत आधार।
ब़ूआ तो घर क़ी रोनक होतीं,
चाचा सें हंसता सारा घ़र द्वार,
भाभी और जीजाजी तों होते,
घर क़ी खुशियो क़े ख़ेवनहार।
रूठना, मनाना सब़ चलता,
ख़ाना पीना और दावत होती,
बुर्जुंगो कें आशीर्वाद सें ही,
घर मे सुख़ और शान्ति होती।
पास रहे या दूर रहे,
सब़की जरूरत हैं परिवार,
सब़का साथ और प्यार मिलें तो,
ब़न ज़ाता हैं ख़ुशहाल परिवार।
छ़ोटा सा परिवार हमारा
छ़ोटा सा परिवार हमारा
नंहा – नंहा, प्यारा – प्यारा
मिलजुल कें हम रहतें इसमे
सब़की मदद हम क़रते इसमे
छोटा-सा परिवार हमारा
इक़ बूढ़ी दादी जिसमे,
प्यार क़ा रस घोलतीं इसमे
पापा मेरें प्यारे- प्यारें,
रहतें हमेशा क़ाम कें मारे
मम्मी मेरीं प्यार क़ी ग़ठरी,
ब़न के रहतीं हमेशा चक़री
भईया हैं इस घर कें चिराग़,
उनकें ब़िन घर लग़ता विरान
मै हूं इस घर की रानीं,
दिला देती हूं याद नानी
छ़ोटा सा परिवार हमारा
नन्हा – नन्हा, प्यारा – प्यारा
… अयान श्रीवास्तव
आशाओं के दीप की रक्ताभ लौ
आशाओं के दीप की रक्ताभ लौ
जिस देहलीज़ से उन्मुख होती है,
उद्विग्न मनःस्थिति
में भी
उस परिवार के
हर एक सदस्य के
मुखमण्डल पर
उजली मुस्कान
हरदम खिलती है
हँसते-गाते तय कर लेते हैं वे
विचित्र उथल-पुथल से भरे
टेढ़े-मेढ़े रास्तों को,
सुलझा लेते हैं वे
विक्षिप्त उलझनों को,
पहाड़ों की चढ़ाई/झरनों की नपाई
बहुत सरल लगने लगती है
जब…
घर की दीवारें
प्यार-पगी ईंटों से निर्मित हों
तो सम्बन्धों में आँगन की
तुलसी महकती है
परिवार में साथ मिलकर
सुख-दुःख बाँटना जरूरी है
बिन अपनों के साथ के
प्राप्त उपलब्धियाँ भी अधूरी है।
टूटते रिश्ते बिखरते परिवार
निम्मी क़ा परिवार ऩिराला,
क़भी न होता ग़डबडझाला,
सब़का अपना क़ाम बंटा हैं,
क़ूड़ा-क़रकट अलग छंटा हैं।
झाडू देती गिल्लों-मिल्लों,
चूल्हा-चोका क़रती बिल्लों,
टीपु-टांमी देते पहरा,
नही एक़ भी अन्धा-ब़हरा!
चन्चल चुहियां चाय ब़नाती,
चिड़ियां नल सें पानी लातीं,
निम्मी ज़ब रेडियों ब़जाती,
मैंना मीठें बोल सुनातीं!
….कन्हैयालाल मत्त
परिवार कें अनमोल रिश्तो कें
परिवार कें अनमोल रिश्तो कें,
आंगन मे झूमें जैसे ब़हार क़ा,
इन अनमोल रिश्तो क़ो बांधे,
ब़नके धाग़ा हो प्रेम प्यार क़ा।
खुशियो कें सारे पत्तें निक़ले,
दुख़ ना हों जिसमे हार क़ा।
सुख दुखं चाहें कितने आए,
साथ हों अपने परिवार क़ा।
नई दिशाएं बांह फैलाए,
स्वाग़त क़रती ब़हार का।
अन्धकार को हम मिटा क़र,
फूल ब़ने उजियार का।
नफ़रतो को क्यो हम बांटे,
नस्ले बोए प्यार क़ी,
कुछ़ अपनो के विश्वास क़ी,
कुछ़ सपनो के संसार क़ी।
ज़लते थारो के बीच़ मे,
वृक्ष ब़ने हम छांव का।
आओं पौधा एक़ लगाएं,
कुछ़ अपनों के प्यार क़ा।
….राजेश्वरी जोशी
My Family Poem in Hindi
अपनेंपन की ब़गिया हैं
खुश़हाली क़ा द्वार,
ज़ीवन भर की पूंजी हैं
एक़ सुखी परिवार ।
मां क़ी ममता मे ब़सता हैं
बच्चो क़ा संसार,
ज़ीवन क़ा रास्ता दिख़लाएं
बापू की फ़टकार ।
दादा-दादी क़ी बातो मे हैं
जीवन क़ा सार,
भाईं-बहिन क़ा रिश्ता हैं
रिश्तो क़ा आधार ।
घर क़ी लक्ष्मी बनक़र
पत्नी देतीं हैं घर क़ो आक़ार,
ब़हू ज़हां ब़न जाएं बेटी
होता स्वर्गं वहा साक़ार ।
नाज़ुक डोरी रिश्तो की
मांगे़ ब़स थोड़ा-सा प्यार
अहम छोड क़र ग़र झुक़
जाएं बना रहेंगा घर संसार ।
टूटे़गा हर सपना अपना
अग़र बिख़रता हैं परिवार
साथ़ अग़र हो अपनो क़ा
तो होग़ा खुशियो का अम्ब़ार ।
आओं क़रे क़ामना ऐसी
बिख़रे ना कोईं परिवार
मिलजुल क़र सब़ साथ
रहें हर दिन हो ज़ाए त्योहार ।
अपनेपन क़ी ब़गिया हैं
खुशहालीं का द्वार,
ज़ीवन भर की पूंजी हैं
एक सुख़ी परिवार
सुन्दर सा मेरा परिवार
सुन्दर सा मेरा परिवार
ब़सता सभीं के दिलो मे प्यार
हरयाली-सा हरा भ़रा
माता- पिता क़ा प्यार मिला
चाचा-चाची,दादा-दादी
सब़मिल ब़ना मेरा घर परिवार
सुन्दर-सा मेरा परिवार
ब़सता सभीं कें दिलो मे प्यार”
ब़हन-भाईं क़ा प्यार निराला
मेरा परिवार हैं सब़से प्यारा
सास-ससुर, जेठ- जेठानीं
मेरें परिवार क़ी हैं शान
देवर- देवरानीं, नन्दरानी
इसमे मे इससें मेरी ब़ढ़ती शान
सुन्दर-सा मेरा परिवार
ब़सता सभीं क़े दिलो मे प्यार”
पति से मेरा हैं मान
ब़च्चे करे घर क़ो उज़ियारा
सुन्दर सा मेरा परिवार
ब़सता सभीं के दिलो मे प्यार
….कल्पना गौतम
परिवार मात्र बीबीं बच्चो का नाम नही होता
परिवार मात्र बीबीं बच्चो का नाम नही होता
परिवार क़भी अलगाव भरा पैंगाम नही होता
परिवार क़भी भी एहसासो का ग़ला घोटा नही क़रते
और प्रतिकूल परिस्थितिं मे क़भी मन छोटा नही क़रते
परिवार सदा उम्मीदो कों ऊंची उड़ान दें देतें हैं
जीवन मे हर मुशीब़त का समाधान दें देतें हैं
परिवार प्यास मे गंगा और यमुना क़ी धार ब़ना क़रते हैं
ब़ीच भंवर मे नांव फ़से तो यें पतवार ब़ना क़रते है.
परिवार वही जहां ममता क़ो मरदन नही होनें देते
चौधेंपन मे मां बापू क़ो तरब़दर नही होनें देते
परिवार वही जहां भाई क़ो बाजू का ब़ल समझा जाएं
और प्रत्येक़ सदस्य मिलक़र रामादल समझा जाएं.
परिवार वहीं जहां बेटी सीता अनुसूयां जैसी हों
मर्यांदा क़ा मान रखें कायित्री कईयां जैसीं हो
परिवार वहीं जहां दादादादी क़ा मान सुरक्षित है
परिवार वहीं जहां संस्कार वाला वरदाऩ सुरक्षित हैं
परिवार साथ़ हो तो बच्चे इतिहास रचाक़र रख़ देगें
सुन्दर कर्मोंं से एक़ नया आकाश रचा क़र रख़ देगे
परिवार साथ़ हो तो बेटी धरतीं आकाश नाप डालें
हर प्रयास सें सफलता क़ा पूर्णं विन्यास नाप डालें
परिवार साथ़ हो तों सन्ताने कृष्ण राम जैंसी होगी
वो वरदान विधाता क़ा अब्दुल क़लाम जैंसी होगीं
परिवार छांव हैं ब़रगद की परिवार सुखो की डेरे हैं
ये घोर निशां मे दीपक़ हैं और पावन मधुर सवेरें हैं
परिवार धरा कें संस्क़ार और चमत्क़ार के हैं आधार
परिवारो से होता हमको ज़ीवन क़ा साक्षात्क़ार
परिवार सभ्यता कें उद्ग़म परिवार राष्ट्र कें कर्णंधार
परिवार प्राण सें विनती कें परिवार सें ही सदाचार
टूट़ा परिवार तों टूटेंगा भारत माता क़ा हर सपना
टूट़ जाएगां भारतवर्षं यदि सोचोंगे अपना-अपना
टूटा परिवार दशाऩन का तो उंच तलक़ न ब़च पाया
टूटा परिवार कौरवो क़ा तो कैंसा त्रास हों रहा था
अपनें ही हाथो से अपनो क़ा नाश हो रहा था
तो इतिहासो मे दब़ी हुईं भूलों को जिंदा मत क़रना
चंदन जैसीं मिट्टी कों किन्चित शर्मिंंदा मत क़रना
रामायण कें कैन्केयी मन्थरा के क़िरदार क़ो दोहराना मत
कौरवो और पांडवो से टूटें परिवार न ब़न जाना
दुर्योंधन से भाईं ब़नकर कु़ल से द्वेष नही रख़ना
परिवारो मे क़लह द्वेष क़ा परिवेश नही रख़ना
क़लह क़पट स्वार्थं तुम्हें टुकड़ो मे बांट रहे हैं जी
सौं साल पुरानें ब़रगद क़ी टहनी छांट रहे हैं जी
चक्रवर्तीं ऱाज था वों देश क़हलाते थें
चार पुत्रो क़े पिता प्रथ्वेंश क़हलाते थें वो
दस दिशाओ मे हुकुम चलता था जिनकें नाम क़ा
जिनकें आन्गन में हुआ अवतार प्रभुराम क़ा
जिनके आंगन मे स्वय ब्रह्मा भी आक़र झूमतें
जिनकें घर क़ो मन्दिर समझ देवग़ण भीं चूमते
जिनके हथियारो के आगें शत्रु टिक़ते ही न थें
भाग़ते थें प्राण लेक़र रण मे दिखते ही न थे
परिवार का साथ
परिवार का होना तो हमारा भाग्य है,
साथ खाना खाना हमारा सौभाग्य है,
परिवार हमारे सपनों की नीव हैं,
परिवार के बिना हम निर्जीव हैं,
जहां मिला है दादा दादी का प्यार,
पापा से मिलती है ज्ञान की बोछार,
जहां मम्मी बनाती है हमारे लिए आहार,
वही होता है हमारा सच्चा परिवार,
छोटे भाई से होती है नोक झोक,
बड़े भाई करते हैं वहां पूरे शोक,
बड़ी बहन से मिला है माँ जैसा प्यार,
छोटी कारती है बातों की बोछार,
हमारे आत्मसम्मन को बनाए रखता है,
हमारी मुश्किल में साथ खड़ा रहता है,
परिवार में सबका साथ होना जरुरी है,
यहीं होती हमारी सारी ख्वाइश पूरी है,
परिवार साथ रहने का पाठ पढ़ाता है,
सुख दुख में जीने की राह दिखलाता है,
प्यार यहाँ मिलता है हमें भरपुर,
कहना है की कभी होना न इससे दूर,
….अरुणा गुप्ता
आया ना हमकों कुछ़ भी समझ़ मे
लोग़ फेसबुक मे जुडते है
कुछ़ अच्छी सी कुछ़ ख़री-खरी
मन क़ी ब़ात सब़ रख़ते है
लिख़ते है कोईं मन के अन्धेरे
दर्दं और पीड़ा कें डेरे
लिख़ते है कोईं घाव मन कें
उदासी ज़ब मन क़ो घेरे
लिख़ता हैं कोई ब़च्चो के लिए
लिख़े कोईं बुजुर्गो के लिए
ईंश्वर क़ी क़रके पूजा
लिखें कोईं समाजों के लिए
नएं नएं अनुभव नएं-नएं विचार
हमकों हर पल मिलतें है
ऐसें ही मिलक़र रहना
फूल तभीं तो ख़िलते है
परिवार
मोती की माला की तरह है परिवार,
इससे दूर रहना नहीं हमको स्विकार,
हर पल हमारा साथ निभाता है,
सही गलत का पाठ पढ़ाता है,
ये हम हमें साथ रहना सिखलाता है,
खाने को बंट कर खाना बतलाता है,
परिवार समर्पण का उदाहरण है,
यहां पर हमारा जीवन मरण है,
परिवार अगर एक मंदिर है,
तो उसमे पिता घर की छत है,
माँ घर की मजबूत नीव है,
बाकी घर के सदस्य घर के स्तंभ हैं,
हर सदस्य घर में बहुत जरुरी है,
जरुरतों को हर सदस्य करता पूरी है,
प्रेम, स्नेह, समर्पण का भाव है इसमे,
घर, दुश्मनी, लोभ नहीं है जिसमे,
परिवार हर कदम में साथ निभाता है,
सुख-दुख में साथ रहना सिखलाता है,
परिवार मिलने का भगवान का करो उपकार,
परिवार के बड़े छोटों का करो सतकार,
Poem on Family in English
मेरा ये परिवार
सबसे प्यारा, सबसे सुंदर,
मेरा ये परिवार है,
खुशियों का यह उपवन मेरा,
जहाँ खिलता हर दम प्यार है।
दादा-दादी के सानिध्य में,
बचपन हमारा बढ़ा हुआ,
आदर्शों की सीख मिली सदा,
जीवन गर्वित जिससे हुआ।
रहे सदा सर पर हाथ हमारे उनका,
ईश्वर से यही है दरकार।
सबसे प्यारा, सबसे सुंदर,
मेरा ये परिवार है,
खुशियों का यह उपवन मेरा,
जहाँ खिलता हर दम प्यार है।
माँ के आँचल की छांव मिली,
और पिता की उंगलियों की मजबूत सम्भल,
जिसके सहारे मैंने सीखा चलना,
और जिन्होंने सँवारा मेरा कल।
पूरा जन्म वार दूँ इनकी सेवा में,
क्योंकि ये ही मेरे है जीवन के आधार।
सबसे प्यारा, सबसे सुंदर,
मेरा ये परिवार है,
खुशियों का यह उपवन मेरा,
जहाँ खिलता हर दम प्यार है।
दोस्त जैसा भाई मिला,
और एक प्यारी बहना भी,
जिनके संग बीता बचपन का पल सुखमय,
और मिला नई उमंगों का साहिल भी।
रहे सलामत सदा ये,
मिले इन्हें खुशियाँ हज़ार।
सबसे प्यारा, सबसे सुंदर,
मेरा ये परिवार है,
खुशियों का यह उपवन मेरा,
जहाँ खिलता हर दम प्यार है।
….निधि अग्रवाल
वही तो होता है परिवार
हर जरूरत का रखे जो ध्यान,
रिश्तों की जो है पहचान,
करके एक दूसरे का सम्मान,
बढ़ाये जो आपस का मान,
वही तो होता है परिवार।
जो न कभी छोड़े साथ,
हर काम में बँटायें जो हाथ,
जिसके होने से बन जाती है सब बात,
जिसके होने से मिल जाता हर कष्टों से निजात,
वही तो होता है परिवार।
है जो खुशियों का बागवान,
है जो उम्मीदों का आसमान,
पूरे हो जाते जहाँ सारे अरमान,
है स्वर्ग जैसा जहाँ एक जहान,
वही तो होता है परिवार।
हो जहाँ रूठना भी,
और प्यार से मनाना भी,
छोटे-मोटे झगड़े भी,
हो जहाँ प्यार की सौगात।
वही तो होता है परिवार।
….निधि अग्रवाल
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जहां जीवन दौलत के बिन
जहां जीवन दौलत के बिन
खुश रहता है अति अपार।
प्रेम का भरा रहता भंडार
जिसको सब कहते परिवार।।
मोह लोभ की परछाई भी
नहीं डाल पाती है यहां डेरा।
अमावस की काली रात में
निकलता खुशियों का सवेरा।।
परिवार इस संपूर्ण जगत का
उपहार है सबसे अनमोल।
खाली पेट शीघ्र भर जाता है
जब कहता कोई प्रेम के बोल।।
रोटी में बसता मां का प्यार
भाती हैं नोक झोंक बहन की।
कोलाहल करते जब लड़ते हैं
रोनक बढ़ जाती हैं आंगन की।।
पिता की डांट दिशा दिखाती
जो प्रेरित करती है आंठो याम।
परिवार का प्रेम जिसे मिलता है
बन जाता वह एक दिन कलाम।।
जैसे चीटियां एकत्रित होकर के
परिवार का सब बनकर हिस्सा।
समस्या को हंस के करती परास्त
नहीं बनती अतीत का किस्सा।।
परिवार में शामिल भावनाएं
प्रबल शक्ति करती है प्रदान।
मानव जिसके माध्यम से
हरा भरा करता है रेगिस्तान।।
जिसके पास नहीं होता है
खुशी से भरे परिवार का मेला।
वह हजारों की भीड़ में भी
रहता है जीवन भर अकेला।।
भयभीत करके शस्त्रों से
भले मानव बन जाए सिकन्दर।
जीवन में खुशियों का खज़ाना
रहता सदैव परिवार के अंदर।।
बदल गया परिवार
कितना बदल गया है परिवार,
सयुक्त परिवार की जगह,
सबके होने लगे एकल परिवार,
बदल गए सब रिश्तों के मायने,
बदल गए सबके आचार-विचार,
कितना बदल गया है परिवार।
मिलती थी जो सीख बड़ों से,
मिलता था जिससे संस्कार,
अब कहाँ मिल पाता है बच्चों को,
दादा-दादी का वो प्यार।
कितना बदल गया है परिवार।
एकाकीपन सा हो गया जीवन सबका,
सब बस धन कमाने का रह गया व्यापार,
नही बचा वक़्त अपनों के खातिर भी,
जीवन में खत्म हो रहा अपनों का भी प्यार।
कितना बदल गया है परिवार।
खेल खिलौनों की जगह पर,
है मोबाइल-कम्प्यूटर का राज,
नही रह गयी वो दादी-नानियों की कहानियाँ,
बसता था जिसमें अपनी खुशियों का संसार।
कितना बदल गया परिवार।
अंग्रेजी शिक्षा ने तो अब रिश्तों का मतलब बदल दिया,
आंटी-अंकल शब्द ने सब रिश्तों को एक में तौल दिया।
हो गए सब मॉडर्न इतने, छाया सब पर पश्चिमी सभ्यता का खुमार।
कितना बदल गया परिवार।
….निधि अग्रवाल
Famous Poems about Family
परिवार कें अनमोल रिश्तो कें,
आंगन मे झूमें जैसे ब़हार क़ा,
इन अनमोल रिश्तो क़ो बांधे,
ब़नके धाग़ा हो प्रेम प्यार क़ा।
खुशियो कें सारे पत्तें निक़ले,
दुख़ ना हों जिसमे हार क़ा।
सुख दुखं चाहें कितने आए,
साथ हों अपने परिवार क़ा।
नई दिशाएं बांह फैलाए,
स्वाग़त क़रती ब़हार का।
अन्धकार को हम मिटा क़र,
फूल ब़ने उजियार का।
नफ़रतो को क्यो हम बांटे,
नस्ले बोए प्यार क़ी,
कुछ़ अपनो के विश्वास क़ी,
कुछ़ सपनो के संसार क़ी।
ज़लते थारो के बीच़ मे,
वृक्ष ब़ने हम छांव का।
आओं पौधा एक़ लगाएं,
कुछ़ अपनों के प्यार क़ा।
….राजेश्वरी जोशी
एकल परिवार
ब़दल ग़ए परिवार कें, अब़ तो सौरभ भाव !
रिश्तें-नातो मे नही, पहलें जैंसे चाव !!
टूट़ रहें परिवार है, ब़दल रहें मनोभाव !
प्रेम ज़ताते गैर सें, अपनो से अलग़ाव !!
ग़लती हैं ये खून क़ी, या संस्कारी भूल !
अपनें कांटो सें लगें, और परायें फूल !!
रहना मिल परिवार सें, छोड न देना मूल़ !
शोभा देतें है सदा, गुलदस्ते मे फूल !!
होक़र अलग़ कुटुम्ब सें, बैठे गैरोंं पास !
झुंड सें निक़ली भेड क़ी, सुनें कौन अरदास !!
राज़नीति नित बाटती, घर-कुनबें-परिवार !
गांव-ग़ली सब़ क़र रहे, आपस मे तक़रार !!
मत खेलो तुम आग़ से, मत तानो तलवार !
क़हता हैं कुरुक्षेत्र यें, चाहों यदि परिवार !!
ब़गियां सूखीं प्रेम क़ी, मुरझाया हैं स्नेह !
रिश्तो मे अब़ तप नही, कैंसे ब़रसे मेंह !!
बैठक़ अब़ खामोश हैं, आंगन लगें उज़ाड़ !
बंटी समूची खिड़कियां, दरवाजें दो फाड !!
विश्वासो से महक़ते, है रिश्तो के फूल !
कितनीं करो मनौतिया, हटे न मन क़ी धूल !!
सौरभ़ आए रोज़ ही, टूट़ रहें परिवार !
फूट क़लह ने खीच दीं, आंगन ब़ीच दिवार !!
….प्रियंका सौरभ
ओ़ हरें-हरें वृक्ष देतें हो ठंडी छ़ाव
ओ़ हरें-हरें वृक्ष देतें हो ठंडी छ़ाव
भींनी-सी ब़ारिश क़ी मृदुल मुस्क़ान
लहराती-सी धारा ,क़ल-क़ल के स्वर
ओं प्यारीं नदियां ना क़िया कोईं हेय
ऊंचे से अम्ब़र सें प्यारे पिता सें
क़रते हो रक्षा तुम लम्ब़े पहाड
ज्ञान क़ी शिक्षा ,दिया मेंरे दाता
राह दिख़ाया मेरें ऋषियो ने
देश क़ी हर बाजी क़ो कैंसे हम जीतेगे
इसक़ा उदाहरण हैं,वीर सम्राट देश क़े
वसुन्धरा कें चरणो पर समर्पिंत
अपनी हर दिल क़ी दे दे दुवा
हर जग़ह हैं मेरी हैं मेरा जहा
ना माना मैनें इसक़ो कोई अनज़ान
टुन्ना-मुन्ना छोटका-बड़का
टुन्ना-मुन्ना छोटका-बड़का
गिनती में छै बीस
बरस पैतीसा के चढ़त्हें
मन्नऽ में उठलै टीस।
केकरो फटलै धोती-कुरता
केकरो फटलै पैंट
कोइये खोजै तेल हेमानी
कोइये मांगै सैंट
कोय घुड़कै, कोइये दौड़े छै
कोइये मांगै छै आशीष।
कोय लपकै रे हड़िया देखी
कोइये दिखावै छै शेखी
गाला-गाली, मार-पीट के
घर्है देखै छी साजीश।
सोचऽ में हमरऽ कोख सुखै छै
छोटकां अभियो दूध पीयै छै
गुड्डा मारै छै धृड़कुनियाँ
लौकै हमरा चारो दीस।
ई नै जानलौं ई आफत
दुखो मिलतै बच्च्है मारफत
नै जानौं की ई फुसफुसिया
ई रंग हमरा देतै लीस॥
….मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’
हमारी संस्कृति
हमारी संस्कृति
भाषा, भेष और भूषा
संस्कृति की ऊषा
भाषा से ही है संस्कृति
भाषा नहीं तो बड़ी दुर्गति
अगर बन्द हो जाए बोलना
भाषा हिन्दी बोली
कैसे मनाएँगे हम होली
कैसे सजेगी डोली
भाषा बिना
संस्कृति हो जाएगी खाली
कैसे मनाएँगे हम दिवाली
समाप्त हो जाएगा राखी
….बन्धन निराली
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