Through this poem, we give a message to the children that Hindi language is very important for them and they should understand and learn it. Apart from this, through this poem, we also teach children about the ideals that a good boy or girl should have. Hindi Poem for Class 4 this poem tells them about good behavior, manners, understanding and healthy state of mind both in their school and at home. In short, this poem enables children to move forward in their lives with a full cultural experience.
Contents
Hindi Poem for Class 4
Today we have brought before you a very beautiful Hindi poem, which has been made for children. This poem teaches children about values, ethics and good manners. Hindi Poem for Class 4 this poem is a part of our culture and heritage which we should always cherish. so let’s start the poem
Hindi Poem for Class 4 for Kids
1. उलझन
पापा कहते बनो डॉक्टर
माँ कहती इंजीनियर!
भैया कहते इससे अच्छा
सीखो तुम कंप्यूटर!
चाचा कहते बनो प्रोफेसर
चाची कहतीं अफसर
दीदी कहती आगे चलकर
बनना तुम्हें कलेक्टर!
बाबा कहते फ़ौज में जाकर
जग में नाम कमाओ!
दीदी कहती घर में रहकर
ही उद्योग लगाओ!
सबकी अलग-अलग अभिलाषा
सबका अपना नाता!
लेकिन मेरे मन की उलझन
कोई समझ ना पाता!
….( सुरेंद्र विक्रम)
2. भारत देश हमारा है
सारे जग में सबसे प्यारा,
भारत देश हमारा है।
झीलें, पर्वत और कहीं पर,
पावन गंगा धारा है।
कभी दीवाली ईद मुबारक,
होली का त्योहार यहाँ।
भिन्न-भिन्न ऋतुओं का संगम,
बोलो मिलता और कहाँ।
अलग-अलग भाषाएँ, बोली,
रुप रंग न्यारे-न्यारे।
फिर भी भारत के नर-नारी,
रहते हैं मिलकर सारे।
कश्मीर सा स्वर्ग यहाँ पर,
सुन्दर नदियाँ नाले हैं।
जन्म लिया है इस धरती पर,
हम सब किस्मत वाले हैं।
….महेन्द्र जैन
3. प्रकृति से प्रेम करें
आओ आओ प्रकृति से प्रेम करें,
भूमि मेरी माता है,
और पृथ्वी का मैं पुत्र हूं।
मैदान, झीलें, नदियां, पहाड़, समुंद्र,
सब मेरे भाई-बहन है,
इनकी रक्षा ही मेरा पहला धर्म है।
अब होगी अति तो हम ना सहन करेंगे,
खनन-हनन व पॉलीथिन को अब दूर करेंगे,
प्रकृति का अब हम ख्याल रखेंगे।
हम सबका जीवन है सीमित,
आओ सब मिलकर जीवन में उमंग भरे,
आओ आओ प्रकृति से प्रेम करें।
प्रकृति से हम है प्रकृति हमसे नहीं,
सब कुछ इसमें ही बसता,
इसके बिना सब कुछ मिट जाता।
आओ आओ प्रकृति से प्रेम करें।
….नरेंद्र वर्मा
4. हमारे सर
सर को कैसे याद पहाड़े?
सर को कैसे याद गणित?
यह सोचती है दीपाली
यही सोचता है सुमित।।
सर को याद पूरी भूगोल
कैसे पता कि पृथ्वी गोल?
मोटी किताबें वे पढ़ जाते?
हम तो थोड़े में थक जाते।।
तभी बोला यह गोपाल
जिसके बड़े-बड़े थे बाल
सर भी कभी तो कच्चे थे
हम जैसे ही बच्चे थे।।
पढ़-लिखकर सब हुआ कमाल
यूँ ही सीखे सभी सवाल
सचमुच के जादूगर हैं
इसीलिए तो वो सर हैं।।
….प्रतीक सोलंकी
Hindi Poem for Class 4 for Competition
5. तितली रानी तितली रानी
तितली रानी तितली रानी,
पास मेरे तुम आओ ना।
कितने सुन्दर पंख तुम्हारे,
मुझको भी दिखलाओ ना।
तितली बोली दूर से देखो,
पास नहीं मैं आऊंगी।
पास अगर तुम आओगे तो,
दूर बहुत उड़ जाऊंगी।
पीछे-पीछे दौड़ो मेरे,
उड़ना तुम्हें सिखाऊंगी।
परीलोक में घर है मेरा,
साथ तुम्हें ले जाऊंगी।
….डॉ. जगदीश पंत
6. माँ और भगवान
मैं अपने छोटे मुख कैसे करूँ तेरा गुणगान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई
सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
‘विकल’ न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में महतारी
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
….जगदीश प्रसाद सारस्वत ‘विकल’
7. मिट्टी के गुरु
हर प्रकार, हर प्रकार से नादान थे तुम
गीली मिट्टी के सामान थे तुम,
आकार देकर तुम्हे घड़ा बना दिया
आज अपने पैरो पे तुम्हे खड़ा कर दिया।
हारे हुए, हारे हुए इंसान के भीतर
न टूटने वाली उम्मीद जगा दे,
कर्म मेरे इतने अच्छे
के ऐसे शख्स को भगवान मेरा गुरु बना दे।
नहीं है, नहीं है कोई शब्द कैसे करू धन्यवाद
बस चाहिए हर पल आप सब का आशीर्वाद
हूँ जहा, हूँ जहा आज मै,
उसी में है बड़ा योगदान
आप सब का जिन्होंने दिया है मुझे ग्यान।
आओ मिलकर, आओ मिलकर
इस शिक्षक दिवस के अवसर पर,
इन सभी महान आत्माओं का सत्कार करे
शत आयु ग्यान के सागर सारे
अनेक गुरुओं को प्रणाम बारबार करे।
….नमन मानेक
8. विद्या देते दान गुरूजी
विद्या देते दान गुरूजी ।
हर लेते अज्ञान गुरूजी ॥
अक्षर अक्षर हमें सिखाते ।
शब्द शब्द का अर्थ बताते ।
कभी प्यार से कभी डाँट से,
हमको देते ज्ञान गुरूजी ॥
जोड़ घटाना गुणा बताते ।
प्रश्न गणित के हल करवाते ॥
हर गलती को ठीक कराते,
पकड़ हमारे कान गुरूजी ॥
धरती का भूगोल बताते ।
इतिहासों की कथा सुनाते ॥
क्या कब क्यों कैसे होता है,
समझाते विज्ञान गुरूजी ॥
खेल खिलाते गीत गवाते ।
कभी पढ़ाते कभी लिखाते ॥
अच्छे और बुरे की हमको,
करवाते पहचान गुरूजी ॥
….शिव नारायण सिंह
Easy Hindi Poem for Class 4
9. माता-पिता
हर सुबह उठो तो सबसे पहले,
मां-बाप के पैर को छुआ करो।
जिस मां-बाप ने तुझको जन्म दिया,
उनके लिए हर सुबह दुआ करो।।
जब मां-बाप आशीर्वाद दे देते हैं,
बच्चों का जन्म संवरता हैं।
मां-बाप की सेवा करने से,
हम सब का कर्म निखरता हैं।।
मां-बाप की दृष्टि है जो कि,
हम सब इस सृष्टि में जीवित है।
वरना हम सब इस पृथ्वी पर,
छड़ मात्र के लिए ही निहित हैं।।
मां-बाप को कमजोर मत समझो,
वो हम सब के लिए रक्षक है।
हम सब को दुख हो जाता है,
वो उस दुख के भी नष्टक है।।
….मोहित शर्मा
10. वन, नदियां, पर्वत व सागर
वन, नदियां, पर्वत व सागर,
अंग और गरिमा धरती की,
इनको हो नुकसान तो समझो,
क्षति हो रही है धरती की।
हमसे पहले जीव जंतु सब,
आए पेड़ ही धरती पर,
सुंदरता संग हवा साथ में,
लाए पेड़ ही धरती पर।
पेड़ -प्रजाति, वन-वनस्पति,
अभयारण्य धरती पर,
यह धरती के आभूषण है,
रहे हमेशा धरती पर।
बिना पेड़ पौधों के समझो,
बढ़े रुग्णता धरती की,
हरी भरी धरती हो सारी,
सेहत सुधरे धरती की।
खनन, हनन व पॉलीथिन से,
मुक्त बनाएं धरती को,
जैव विविधता के संरक्षण की,
अलख जगाए धरती पर।
….रामगोपाल राही
11. जीवन और हम
जीवन में असफलताओं को
करो स्वीकार,
मत होना निराश
इससे होगा।
वास्तविकता का अहसास,
समय कितना भी विपरीत हो
मत डरना,
साहस और भाग्य पर।
रखना विश्वास,
अपने पौरुष को कर जाग्रत
धैर्य एवं साहस से,
करना प्रतीक्षा सफलता की।
पौरुष दर्पण है,
भाग्य है उसका प्रतिबिंब
दोनों का समन्वय बनेगा,
सफलता का आधार।
….राजेश माहेश्वरी
12. बच्चों के भविष्य को
बच्चों के भविष्य को,
शिक्षक सजाता है।
ज्ञान के प्रकाश को,
शिक्षक जलाता है।
सही-गलत के फर्क को,
शिक्षक बताता है।
शिष्यों को सही शिक्षा,
शिक्षक ही दे पाता है।
ऊंचे शिखर पर शिष्य को,
शिक्षक ही चढ़ाता है।
बच्चों के भविष्य में,
और निखार लाता है।
शिष्य को कभी शिक्षक,
नहीं ढाल बनाता है।
असफल होते जब कार्य में,
अफसोस जताता है।
शिक्षक ही समाज का,
उत्तम जो ज्ञाता है।
….शम्भू नाथ
Short Poem on Nature in Hindi
13. गुरु महिमा
गुरु की महिमा निशि-दिन गाएँ,
हर दम उनको शीश नवाएँ।
जीवन में उजियारा भर लें,
अंधकार को मार भगाएँ।
सत्य मार्ग पर चलना बच्चो,
गुरुदेव हमको सिखलाएँ।
पर्यावरण बिगड़ न पाए,
धरती पर हम वृक्ष लगाएँ।
पानी अमृत है धरती का,
बूंद-बूंद हम रोज बचाएँ।
सिर्फ जिएँ न अपनी खातिर,
काम दूसरों के भी आएँ।
माता, पिता, गुरु, राष्ट्र की सेवा,
यह संकल्प सदा दोहराएँ।
बातें मानें गुरुदेव की,
अपना जीवन सफल बनाएँ।
….घनश्याम मैथिल
14. सर को कैसे याद पहाड़े
सर को कैसे याद पहाड़े?
सर को कैसे याद गणित?
यह सोचती है दीपाली
यही सोचता है सुमित।।
सर को याद पूरी भूगोल
कैसे पता कि पृथ्वी गोल?
मोटी किताबें वे पढ़ जाते?
हम तो थोड़े में थक जाते।।
तभी बोला यह गोपाल
जिसके बड़े-बड़े थे बाल
सर भी कभी तो कच्चे थे
हम जैसे ही बच्चे थे।।
पढ़-लिखकर सब हुआ कमाल
यूँ ही सीखे सभी सवाल
सचमुच के जादूगर हैं
इसीलिए तो वो सर हैं।।
….प्रतीक सोलंकी
15. हज़ारों दुखड़े सहती
हज़ारों दुखड़े सहती है माँ
फिर भी कुछ ना कहती है माँ
हमारा बेटा फले औ’ फूले
यही तो मंतर पढ़ती है माँ
हमारे कपड़े कलम औ’ कॉपी
बड़े जतन से रखती है माँ
बना रहे घर बँटे न आँगन
इसी से सबकी सहती है माँ
रहे सलामत चिराग घर का
यही दुआ बस करती है माँ
बढ़े उदासी मन में जब जब
बहुत याद में रहती है माँ
नज़र का कांटा कहते हैं सब
जिगर का टुकड़ा कहती है माँ
मनोज मेरे हृदय में हरदम
ईश्वर जैसी रहती है माँ
….मनोज ‘भावुक’
16. इस जाड़े को
इस जाड़े को दूर भगाओ,
सूरज भैया जल्दी आओ।
जाड़े में देखो तो कोयल,
भूल गई गाना।
चिड़ियों के बच्चों ने मुँह में,
न डाला दाना।
सूरज भैया आओ,
थोड़ी गर्मी ले आओ।
और हमारे साथ बैठकर,
पिज्जा, बर्गर खाओ।
साथ रहोगे तो जाड़े की,
दाल रहेगी कच्ची।
दादी का तो हाल बुरा है,
गर्मी आ जाए तो चाहे।
आसमान में जाना,
हो जाएगी अच्छी।
जाड़े के मौसम में लेकिन,
वापस आ जाना।
….संजीव ठाकुर
Hindi Poem for Class 4 Student
17. मेरे सर्वस्व की पहचान
मेरे सर्वस्व की पहचान
अपने आँचल की दे छाँव
ममता की वो लोरी गाती
मेरे सपनों को सहलाती
गाती रहती, मुस्कराती जो
वो है मेरी माँ।
प्यार समेटे सीने में जो
सागर सारा अश्कों में जो
हर आहट पर मुड़ आती जो
वो है मेरी माँ।
दुख मेरे को समेट जाती
सुख की खुशबू बिखेर जाती
ममता की रस बरसाती जो
वो है मेरी माँ।
….देवी नांगरानी
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