Through this poem, we give a message to the children that Hindi language is very important for them and they should understand and learn it. Apart from this, through this poem, we also teach children about the ideals that a good boy or girl should have. Hindi Poem for Class 12 this poem tells them about good behavior, manners, understanding and healthy state of mind both in their school and at home. In short, this poem enables children to move forward in their lives with a full cultural experience.
Contents
Hindi Poem for Class 12
Today we have brought before you a very beautiful Hindi poem, which has been made for children. This poem teaches children about values, ethics and good manners. Hindi Poem for Class 12 this poem is a part of our culture and heritage which we should always cherish. so let’s start the poem
Hindi Poem for Class 12 for Kids
1. प्रेम में शक्ति अपार
प्रेम के जीते जीत जगत में,
प्रेम के ही हारे हार है।
है आत्मा सम अजर अमर,
प्रेम में शक्ति अपार है।।
प्रीत शबरी के बेर खिलाये,
श्याम साग विदुर घर खाये।
मीरा ने पीया विष प्याला,
विदित सकल संसार है।
प्रेम में शक्ति अपार है ।।
प्रेम में केवट पांव पखारे,
ऋषि दधीचि जीवन हारे ।
प्रीत के कारण कृष्ण नैन से,
बहता झर-झर धार है।
प्रेम में शक्ति अपार है।।
प्रेम में दशरथ स्वर्ग सिधारे,
सभा बीच द्रोपदी पुकारे।
श्याम ने जब प्रीत निभाया,
मनता राखी का त्यौहार है।
प्रेम में शक्ति अपार है।।
सुन लो सुन लो प्रेम दीवानों,
वासना को तुम प्रेम न जानो।
प्रेम में मिटे अमर बलिदानी,
जिसे निज राष्ट्र से प्यार है।
प्रेम में शक्ति अपार है।।
….रामप्रवेश पंडित,
2. आँख का जल
उसकी आँख में अपनी
आँख डाल कर झाँकने से पहले
अपनी आँख के भीतर
छलाँग लगाता था
यह देह में बस कर और
आँख के भीतर डुबकी थी
यह आँख की गहरी झील में
केवल आँख की डुबकी थी
डूबकर ऊभ-चूभ आँख को
दूसरी आँख का तल दिखता था
आँख आँख का तल देखती थी
आँख आँख का जल देखती थी!
….प्रकाश
3. कोई आया है स्वर्ग से
घर में किलकारी गूंजी
आज फिर कोई आया है स्वर्ग से
पहले क्या कम भीड़ है जमीन पर
जो एक ओर पहुंच गया मरने के वास्ते
खुशियाँ पसरी हैं चारों ओर
बधाई बधाई की आवाजें आ रही है
नन्ही मासूम आँखे देख रही है इधर उधर
दानवों ने क्यूं घेर रखा है चारों ओर से
एक काया हर वक्त परछाई बनी रहती है
मुझे हर हाल में जिन्दा रखने के लिये
खो देती है अपना चैनो अमन औलाद की खातिर
माँ ही तो सचमुच का भगवान होती है
अभी से सारी सारी रात नींद ना आती
आगे तो पता नही क्या क्या होगा
परेशान माँ ने डाट दिया तंग होकर
जिन्दगी के पहले कडवे सच मिल रहे है
चलो आज घुटनों पर शहर घुमा जाये
मेरे दाता ये दुनिया कितनी बड़ी है
सारा दिन घूम कर इधर से उधर
आखिर में थककर नींद आ जाती है
आज पहली बार खुद के पैरों पर बाहर आये हैं
जाने कहाँ भाग रहा है सारा शहर
किसी के पास वक्त नही एक पल ठहरने का
घर वापिस चलो माँ को चिंता हो रही होगी
आज व्यस्क हो चूका हूँ
बचपन जवानी बुढ़ापा सब समझ आ रहा है
पड़ोस से किसी बुजुर्ग के मरने की खबर आई
आदमी धरती पर आता है सिर्फ मरने के लिये
….नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’
Short Motivational Poems in Hindi
4. ख़ुदा करें हालात मेरे इस क़दर न हो
ख़ुदा करें हालात मेरे इस क़दर न हो
बात मैं करूं तो बात में असर न हो
ग़म है के आलम है मेरे जिंदगानी का
ज़ख़्म आए मुझे पर उसे ख़बर न हो
बात कही जाए पर न जाए लबों से
है यक़ीं के पता उसे कुछ मगर न हो
माना के राह-ए-इश्क़ में कांटें है गिरे
नसीब मुझे ऐ ख़ुदा ऐसी डगर न हो
मरीज़ हूं मैं दिल का, मरीज़ ही रहूं
इलाज के लिए ही कोई चारागर न हो
मैं जानता हूं उसका दिल तो है कांच का
तोड़ना चाहूं तो हाथ में पत्थर न हो
दुनिया से जुड़ा है रंज-ओ-गम का वास्ता
इस दुनिया में दूर तक मेरी नज़र न हो
इक उम्र गुज़ारी है मुहब्बत में ‘ज़ाफ़िर’
मुश्किलें रहें पर इश्क़ का सफ़र न हो
….रोहन गांगुर्डे
5. बचपन
कुदरत ने जो दिया मुझे ,
है अनमोल खजाना !
कितना सुगम सलोना वो
ये मुश्किल कह पाना !!
दमक रहा ऐसे मानो ,
सोने सा बचपना फिक्र !
फिक्र नही कल की
न किसी से सिकवा गिला !!
मित्रो की जब टोली निकले ,
क्या खाये ,बिन खाये !
बडे चाव से ऐसे चलते
मानो जन्ग जीत कर आये !!
कोमल हाथो से बलखाकर ,
जब करते आतिशवजी !
घुन्घरू बान्धे हुए पैर पर
तब चलती खुशियो की आन्धी !!
उन्हे देख मा की ममता का ,
उमड रहा सैलाब !
मन मन्दिर महका रहा
बगिया का खिला गुलाब !!
….अनुज तिवारी इन्दवार
6. मेरे पास शब्द नहीं
मासूमियत से भरे बच्चों की
मासूमियत का जवाब नहीं
क्या कहूँ उनके बारे में
मेरे पास शब्द नहीं
पल में रोते पल में हँसते
उनको ये तक ज्ञात नहीं
क्या अच्छा है और क्या बुरा है
मेरे पास शब्द नहीं
बचपन होता कितना प्यारा
जिसमें कोई भेद-भाव नहीं
क्यों पल में खेलें और झगड़ें
मेरे पास शब्द नहीं
तोतली बोली और किलकारी उनकी
उनके समान कोई मासूम नहीं
क्या कहूँ मैं प्रभु की लीला है
मेरे पास शब्द नहीं
मासूमियत से भरे बच्चों की
मासूमियत का जवाब नहीं
क्या कहूँ उनके बारे में
मेरे पास शब्द नहीं।
….देवेश दीक्षित
7. एक बचपन का जमाना था
एक बचपन का जमाना था,
जिस में खुशियों का खजाना था..
चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिवाना था..
खबर ना थी कुछ सुबहा की,
ना शाम का ठिकाना था..
थक कर आना स्कूल से,
पर खेलने भी जाना था..
माँ की कहानी थी,
परीयों का फसाना था..
बारीश में कागज की नाव थी,
हर मौसम सुहाना था..
हर खेल में साथी थे,
हर रिश्ता निभाना था..
गम की जुबान ना होती थी,
ना जख्मों का पैमाना था..
रोने की वजह ना थी,
ना हँसने का बहाना था..
क्युँ हो गऐे हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।
….कोमल प्रसाद साहू
Poems in Hindi for students
8. भाईचारा
जग में रिश्ते हैं अनेक,
एक रिश्ता सबसे न्यारा ।
भाई का भाई से प्रेम,
कहलाता है भाईचारा।।
इसके हित अनिवार्य नहीं,
कि खून हमारा एक हो ।
इसकी बस एक चाहत है,
हृदय हमारा नेक हो हो।।
आज नश्वर हक के हेतु,
लड़ते हैं सहोदर भाई ।
जननी जनक मुंह ताकते,
होता दृश्य बड़ा दुखदाई ।।
भाईचारा एक भाव है,
मानवता का रखवाला।
यह सुरभित सुमन है,
यही है प्रेम की माला।।
आओ आज शपथ ले ले,
भाईचारा को अपनाएंगे।
जहां मिलेंगे दीन दुखी,
हम उनको गले लगाएंगे।।
होता है वह नर अधम,
करता नित जो अत्याचार।
इस जगत का बड़ा धर्म है,
हर भाई का भाई से प्यार।।
….रामप्रवेश पंडित,
9. जेल में आती तुम्हारी याद
प्यार जो तुमने सिखाया
वह यहाँ पर बाँध लाया
प्रीति के बंदी नहीं करते कभी फ़रियाद
जेल में आती तुम्हारी याद।
बात पर अपनी अड़ा हूँ
सींकचे पकड़े खड़ा हूँ
सकपकाया-सा खड़ा है सामने सय्याद
जेल में आती तुम्हारी याद।
विश्व मुझ पर आँख गाड़े
मैं खड़ा छाती उघाड़े
देख जिसको तेग़ कुंठित, कँप रहा जल्लाद
जेल में आती तुम्हारी याद।
दृढ़ दीवालें फोड़ दूँगा
लौह कड़ियाँ तोड़ दूँगा
कर नहीं सकतीं मुझे ये बेड़ियाँ बर्बाद
जेल में आती तुम्हारी याद।
सुमन उपवन में खिलेंगे
और फिर हम तुम मिलेंगे
किंतु जब हो जाएगा हिंदोस्ताँ आज़ाद
जेल में आती तुम्हारी याद।
….शिवमंगल सिंह सुमन
10. वीरों का कैसा हो वसंत?
वीरों का कैसा हो वसंत?
आ रही हिमाचल से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार,
प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार,
सब पूछ रहे हैं दिग्-दिगंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
फूली सरसों ने दिया रंग,
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग,
वधु-वसुधा पुलकित अंग-अंग,
हैं वीर वेश में किंतु कंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
भर रही कोकिला इधर तान,
मारू बाजे पर उधर गान,
है रंग और रण का विधान,
मिलने आये हैं आदि-अंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
गलबाँहें हों, या हो कृपाण,
चल-चितवन हो, या धनुष-बाण,
हो रस-विलास या दलित-त्राण,
अब यही समस्या है दुरंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
कह दे अतीत अब मौन त्याग,
लंके, तुझमें क्यों लगी आग?
ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग, जाग,
बतला अपने अनुभव अनंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
हल्दी-घाटी के शिला-खंड,
ऐ दुर्ग! सिंह-गढ़ के प्रचंड,
राणा-ताना का कर घमंड,
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
भूषण अथवा कवि चंद नहीं,
बिजली भर दे वह छंद नहीं,
है क़लम बँधी, स्वच्छंद नहीं,
फिर हमें बतावे कौन? हंत!
वीरों का कैसा हो वसंत?
….सुभद्राकुमारी चौहान
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11. स्वदेश
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥
जो जीवित जोश जगा न सका,
उस जीवन में कुछ सार नहीं।
जो चल न सका संसार-संग,
उसका होता संसार नहीं॥
जिसने साहस को छोड़ दिया,
वह पहुँच सकेगा पार नहीं।
जिससे न जाति-उद्धार हुआ,
होगा उसका उद्धार नहीं॥
जो भरा नहीं है भावों से,
बहती जिसमें रस-धार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
हम हैं जिसके राजा-रानी॥
जिसने कि खजाने खोले हैं,
नवरत्न दिये हैं लासानी।
जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं,
जिस पर है दुनिया दीवानी॥
उस पर है नहीं पसीजा जो,
क्या है वह भू का भार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥
निश्चित है निस्संशय निश्चित,
है जान एक दिन जाने को।
है काल-दीप जलता हरदम,
जल जाना है परवानों को॥
है लज्जा की यह बात शत्रु—
आये आँखें दिखलाने को।
धिक्कार मर्दुमी को ऐसी,
लानत मर्दाने बाने को॥
सब कुछ है अपने हाथों में,
क्या तोप नहीं तलवार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥
….गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
Class 12 Hindi Poems Summary
12. हिमालय
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
साकार, दिव्य, गौरव विराट्,
पौरुष के पुंजीभूत ज्वाला!
मेरी जननी के हिम-किरीट!
मेरे भारत के दिव्य भाल!
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
युग-युग अजेय, निर्बंध, मुक्त,
युग-युग गर्वोन्नत, नित महान्,
निस्सीम व्योम में तान रहा
युग से किस महिमा का वितान?
कैसी अखंड यह चिर-समाधि?
यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान?
तू महाशून्य में खोज रहा
किस जटिल समस्या का निदान?
उलझन का कैसा विषम जाल?
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
ओ, मौन, तपस्या-लीन यती!
पल भर को तो कर दृगुन्मेष!
रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल
है तड़प रहा पद पर स्वदेश।
सुखसिंधु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र,
गंगा, यमुना की अमिय-धार
जिस पुण्यभूमि की ओर बही
तेरी विगलित करुणा उदार,
जिसके द्वारों पर खड़ा क्रांत
सीमापति! तूने की पुकार,
‘पद-दलित इसे करना पीछे
पहले ले मेरा सिर उतार।’
उस पुण्य भूमि पर आज तपी!
रे, आन पड़ा संकट कराल,
व्याकुल तेरे सुत तड़प रहे
डँस रहे चतुर्दिक विविध व्याल।
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
कितनी मणियाँ लुट गयीं? मिटा
कितना मेरा वैभव अशेष!
तू ध्यान-मग्न ही रहा; इधर
वीरान हुआ प्यारा स्वदेश।
किन द्रौपदियों के बाल खुले?
किन-किन कलियों का अंत हुआ?
कह हृदय खोल चित्तौर! यहाँ
कितने दिन ज्वाल-वसंत हुआ?
पूछे सिकता-कण से हिमपति!
तेरा वह राजस्थान कहाँ?
वन-वन स्वतंत्रता-दीप लिये
फिरनेवाला बलवान कहाँ?
तू पूछ, अवध से, राम कहाँ?
वृंदा! बोलो, घनश्याम कहाँ?
ओ मगध! कहाँ मेरे अशोक?
वह चंद्रगुप्त बलधाम कहाँ ?
पैरों पर ही है पड़ी हुई
मिथिला भिखारिणी सुकुमारी,
तू पूछ, कहाँ इसने खोयीं
अपनी अनंत निधियाँ सारी?
री कपिलवस्तु! कह, बुद्धदेव
के वे मंगल-उपदेश कहाँ?
तिब्बत, इरान, जापान, चीन
तक गये हुए संदेश कहाँ?
वैशाली के भग्नावशेष से
पूछ लिच्छवी-शान कहाँ?
ओ री उदास गंडकी! बता
विद्यापति कवि के गान कहाँ?
तू तरुण देश से पूछ अरे,
गूँजा कैसा यह ध्वंस-राग?
अंबुधि-अंतस्तल-बीच छिपी
यह सुलग रही है कौन आग?
प्राची के प्रांगण-बीच देख,
जल रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल,
तू सिंहनाद कर जाग तपी!
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
रे, रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,
जाने दे उनको स्वर्ग धीर,
पर, फिरा हमें गांडीव-गदा,
लौटा दे अर्जुन-भीम वीर।
कह दे शंकर से, आज करें
वे प्रलय-नृत्य फिर एक बार।
सारे भारत में गूँज उठे,
‘हर-हर-बम’ का फिर महोच्चार।
ले अँगड़ाई, उठ, हिले धरा,
कर निज विराट् स्वर में निनाद,
तू शैलराट! हुंकार भरे,
फट जाय कुहा, भागे प्रमाद।
तू मौन त्याग, कर सिंहनाद,
रे तपी! आज तप का न काल।
नव-युग-शंखध्वनि जगा रही,
तू जाग, जाग, मेरे विशाल!
….रामधारी सिंह दिनकर
13. स्वार्थी संसार
मेरा मेरा जपता रहता ,
स्वार्थहेतु सब कुछ सहता,
अपने हित में करें अहित,
निजता से सजा बाजार है।
स्वार्थमय यह संसार है ।।
स्वार्थी नर होता जन्मजात,
स्वार्थ हित बिछाता बिसात,
कैसे करूं जगत मुट्ठी में,
करता वह निशदिन विचार है ।
स्वार्थमय यह संसार है ।।
यदि चाहते हो स्वार्थ साधना,
निज स्वत्वकी कर आराधना,
आत्मबल से ही स्वार्थपूर्ति,
पुरुषार्थ परम आधार है।
स्वार्थमय यह संसार है ।।
छोड़ो दूसरों की परवाह,
बना लो अपने आप राह,
मंजिल जितनी ऊंची होगी,
बढ़ता स्वार्थ अधिकार है।
स्वार्थमय यह संसार है।।
अपना लो बंधु प्रबल स्वार्थ,
स्वतः पूर्ण होगा परमार्थ,
बना लो निज को बरगद वृक्ष,
तुम्हारा स्वार्थ भी छायादार है।
स्वार्थमय यह संसार है।।
….रामप्रवेश पंडित
14. आकाश और आँख
आकाश और आँख जुड़वा हैं
दोनों को धरती का जीवन निहारने में सुख मिलता है
आकाश उदास होता है तो आँख का
किसी काम में जी नहीं लगता
दुनियादारी के प्रपंच निहार
आँख डबडबा आती है तो भीतर तक
भीग जाता है आकाश
निगाह संधि है
निगाह के सहारे ही आकाश
आँख में उतरता है
और अपने अथाह विस्तार में आकाश
आँख के लिए खोलता रहता है दिशाएँ
आँख अपनी नींद और स्वप्न
आकाश में रखती है
और आकाश अपना सारा फैलाव
आँख के भरोसे ही छोड़े रखता है
आँख और आकाश एकात्म हैं
दुनियादारी देख-देख
आँख जब शब्द रच रही होती है
आकाश उनके उड़ने के लिए
पंख लगा रहा होता है
पुरानी से पुरानी पोथी खोलिए आप
शब्दाकाश में आँख और आकाश की
धड़कने सुनाई देती रहती हैं
….प्रेमशंकर शुक्ल
15. व्योम-वीणा
कहीं पै स्वर्गीय कोई बाला,
सुमंजु वीणा बजा रही है!
सुरों के संगीत की सी कैसी,
सुरीली गुंजार आ रही है!
हरेक स्वर में नवीनता है
हरेक पद में प्रवीनता है
निराली लय है औ लीनता है
अलाप अद्भुत मिला रही है
अलक्ष्य पदों से गत सुनाती
तरल तरानों से मन लुभाती
अनूठे अटपटे स्वरों में स्वर्गिक,
सुधा की धारा बहा रही है
कोई पुरंदर की किंकरी है कि,
या किसी सुर की सुंदरी है
वियोग-तप्ता सी भोग भुक्ता,
हृदय के उद्गार गा रही है
कभी नई तान प्रेम-मय है,
कभी प्रकोपन, कभी विनय है
दया है, दाक्षिण्य का उदय है,
अनेकों बानक बना रही है
भरे गगन में हैं जितने तारे,
हुए है बदमस्त गत पे सारे,
समस्त ब्रहांड भर को मानो
दो उँगलियों पर नचा रही है
सुनो तो सुनने की शक्तिवालो,
सको तो जाकर के कुछ पता लो
है कौन जोगन ये जो गगन में
कि इतनी चुलबुल मचा रही है!
….श्रीधर पाठक
16. स्त्री का चेहरा
इस चेहरे पर जीवन भर की कमाई दिखती है
पहले दुख की एक परत
फिर एक परत प्रसन्नता की
सहनशीलता की एक और परत
एक परत सुंदरता
कितनी किताबें यहाँ इकट्ठा हैं
दुनिया को बेहतर बनाने का इरादा
और ख़ुशी को बचा लेने की ज़िद
एक हँसी है जो पछतावे जैसी है
और मायूसी उम्मीद की तरह
एक सरलता है जो सिर्फ़ झुकना जानती है
एक घृणा जो कभी प्रेम का विरोध नहीं करती
आईने की तरह है स्त्री का चेहरा
जिसमें पुरुष अपना चेहरा देखता है
बाल सँवारता है मुँह बिचकाता है
अपने ताक़तवर होने की शर्म छिपाता है
इस चेहरे पर जड़ें उगी हुई हैं
पत्तियाँ और लतरें फैली हुई हैं
दो-चार फूल हैं अचानक आई हुई ख़ुशी के
यहाँ कभी-कभी सूरज जैसी एक लपट दिखती है
और फिर एक बड़ी-सी ख़ाली जगह
….अनीता वर्मा
Hindi Poem for Class 12 Students
17. रक्षाबंधन (राखी)
भाई बहन का प्यार है पावन,
धन्य धन्य है शिव का सावन।
घर घर में उल्लास भरा है,
भाई की सजी कलाई है।
प्यारी बहना राखी लाई है ।।
है देवी देवों के पर्व हजार,
राखी धागों का है त्यौहार।
मेह के नेह अब बरस रहे हैं,
खुशियों की बदली छाई है।
प्यारी बहना राखी लाई है।।
श्याम के कर से बहे रुधीर,
द्रोपदी ने निज बांधे चीर।
रक्षा का वचन दिए मोहन,
नहीं चीर हरण हो पायी है।
प्यारी बहना राखी लाई है।।
इस पावन रिश्ते का हो प्रसार,
हर घर में मने राखी त्योहार।
हो धागे का बंधन अजर अमर,
हर भाई बहन को बधाई है।
प्यारी बहना राखी लाई है।।
हो अपने धागे से भरा बाजार,
कर चीनी राखी का बहिष्कार।
हर भाई बहन हंस कर बोले,
हमने स्व देशी अपनाई है ।
प्यारी बहना राखी लाई है।।
….राम प्रवेश पंडित
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