Through this poem, we give a message to the children that Hindi language is very important for them and they should understand and learn it. Apart from this, through this poem, we also teach children about the ideals that a good boy or girl should have. Hindi Poem for Class 11 this poem tells them about good behavior, manners, understanding and healthy state of mind both in their school and at home. In short, this poem enables children to move forward in their lives with a full cultural experience.
Contents
Hindi Poem for Class 11
Today we have brought before you a very beautiful Hindi poem, which has been made for children. This poem teaches children about values, ethics and good manners. Hindi Poem for Class 11 this poem is a part of our culture and heritage which we should always cherish. so let’s start the poem
Hindi Poems for Class 11 for Kids
1. हरी भरी धरती हो
हरी भरी धरती हो
नीला आसमान रहे
फहराता तिरँगा,
चाँद तारों के समान रहे।
त्याग शूर वीरता
महानता का मंत्र है
मेरा यह देश
एक अभिनव गणतंत्र है
शांति अमन चैन रहे,
खुशहाली छाये
बच्चों को बूढों को
सबको हर्षाये
हम सबके चेहरो पर
फैली मुस्कान रहे
फहराता तिरँगा चाँद
तारों के समान रहे।
….कमलेश कुमार दीवान
2. सावन की आयी है बौछार
दूधिया चांदनी रात में
बादल के नयनों से
झर रहे हैं श्वेत मोती
धरा ने समेट लिया है इनको
अपने पारदर्षी आँचल में
अमलतास की टहनियों पर
झूल रहे नन्हे मोतियों के कण
झिलमिल सितारे
उतर आये हैं जमीन पर
गुलाब की पंखुड़ियों ने
केसरिया घूंघट खोला
बरसात की रिमझिम बूंदें
हैं बेताब गिरने को
उनके गुलाबी अधरों पर
कितनी प्रफुल्लित
कितन उल्लसित हैं कलियाँ
झूम रही हैं हवा के कपोलों पर
गुनगुनाती हैं ये गीत
सावन की आयी है बौछार
….किशन नेगी ‘एकांत’
3. यों गाया है हमने तुमको बाँसुरी चली आओ
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
….कुमार विश्वास
Best Hindi Poetry Lines
4. बैसाखी
ज़ुल्म की बाढ़ में धर्म जब ज़ोरों से बहता था ।
उठे अब सूरमा कोई सभी को रो-रो कहता था ।
धर्म की बात जो करता भय मन में रहता था ।
बुद्ध-भूमि से कोई आया पंजाब जिसकी थी समर-भूमि ।
ज़ुल्म के रोकने को उसने अपनी तलवार थी चूमी ।
बन गए सिंह सयारों से जिधर भी निगाह थी घूमी ।
बाग़ तो बहुत दुनिया में परंतु एक बाग़ अमृतसर में ।
पूजा-वेदि बनी हुई जिसकी हिन्द के हर एक घर में ।
लोग जहां आज़ादी मांगने पहुंचे तो दी मौत डायर ने ।
तेरी पद-चाप सुनकर कृषक में उमंग जगती है ।
स्वप्न वह मन में बुनता जो तू उनमें रंग भरती है ।
सुनहरी रंग में डूबी धरा सब हंसती सी लगती है ।
हम ये चाहते हैं तू आए सदा ढोल औ’ नगाड़ों से ।
दुश्मनों के दिल कांपें हमारे सिंहों की दहाड़ों से ।
ज़रूरत जब पड़े इसकी नहर खोद लाएं पहाड़ों से ।
….कर्मजीत सिंह
5. छैंया-छैंया
‘छैंया-छैंया’ के बैक कवर से
रोज़गार के सौदों में जब भाव-ताव करता हूँ
गानों की कीमत मांगता हूँ –
सब नज्में आँख चुराती हैं
और करवट लेकर शेर मेरे
मूंह ढांप लिया करते हैं सब
वो शर्मिंदा होते हैं मुझसे
मैं उनसे लजाता हूँ
बिकनेवाली चीज़ नहीं पर
सोना भी तुलता है तोले-माशों में
और हीरे भी ‘कैरट’ से तोले जाते हैं
मैं तो उन लम्हों की कीमत मांग रहा था
जो मैं अपनी उम्र उधेड़ के,
साँसें तोड़ के देता हूँ
नज्में क्यों नाराज़ होती हैं ?
….गुलजार
6. कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
तुमको ये चाँदनी की आवज़ें
पूर्णमासी की रात जंगल में
नीले शीशम के पेड़ के नीचे
बैठकर तुम कभी सुनो जानम
भीगी-भीगी उदास आवाज़ें
नाम लेकर पुकारती है तुम्हें
पूर्णमासी की रात जंगल में…
पूर्णमासी की रात जंगल में
चाँद जब झील में उतरता है
गुनगुनाती हुई हवा जानम
पत्ते-पत्ते के कान में जाकर
नाम ले ले के पूछती है तुम्हें
पूर्णमासी की रात जंगल में
तुमको ये चाँदनी आवाज़ें
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
….गुलज़ार
7. परिचय
उषा का प्राची में अभ्यास,
सरोरुह का सर बीच विकास॥
कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध?
गगन मंडल में अरुण विलास॥
रहे रजनी मे कहाँ मिलिन्द?
सरोवर बीच खिला अरविन्द।
कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध?
मधुर मधुमय मोहन मकरन्द॥
प्रफुल्लित मानस बीच सरोज,
मलय से अनिल चला कर खोज।
कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध?
वही परिमल जो मिलता रोज॥
राग से अरुण घुला मकरन्द।
मिला परिमल से जो सानन्द।
वही परिचय, था वह सम्बन्ध
प्रेम का मेरा तेरा छन्द॥
…जयशंकर प्रसाद
Hindi Poem for Class 11 Competition
8. जय जय प्यारा, जग से न्यारा
जय जय प्यारा, जग से न्यारा,
शोभित सारा, देश हमारा,
जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा
जग-सौभाग्य सुदेश!
जय जय प्यारा भारत देश।
प्यारा देश, जय देशेश,
जय अशेष, सदस्य विशेष,
जहाँ न संभव अध का लेश,
केवल पुण्य प्रवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
स्वर्गिक शीश-फूल पृथ्वी का,
प्रेम मूल, प्रिय लोकत्रयी का,
सुललित प्रकृति नटी का टीका
ज्यों निशि का राकेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
जय जय शुभ्र हिमाचल शृंगा
कलरव-निरत कलोलिनी गंगा
भानु प्रताप-चमत्कृत अंगा,
तेज पुंज तपवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
जगमें कोटि-कोटि जुग जीवें,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवे,
सुखद वितान सुकृत का सीवे,
रहे स्वतंत्र हमेश
जय जय प्यारा भारत देश।
….श्रीधर पाठक
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9. तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें
तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें
तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है सच्ची
तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है ये हयात
तेरी आँखों से ही खुलते हैं, सवेरों के उफूक़
तेरी आँखों से बन्द होती है ये सीप की रात
तेरी आँखें हैं या सजदे में है मासूम नमाज़ी
तेरी आँखें…
पलकें खुलती हैं तो, यूँ गूँज के उठती है नज़र
जैसे मन्दिर से जरस की चले नमनाक सदा
और झुकती हैं तो बस जैसे अज़ाँ ख़त्म हुई हो
तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें…
….गुलजार
10. यों गाया है हमने तुमको बाँसुरी चली आओ
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
….कुमार विश्वास
11. विद्या देते दान गुरूजी
विद्या देते दान गुरूजी ।
हर लेते अज्ञान गुरूजी ॥
अक्षर अक्षर हमें सिखाते ।
शब्द शब्द का अर्थ बताते ।
कभी प्यार से कभी डाँट से,
हमको देते ज्ञान गुरूजी ॥
जोड़ घटाना गुणा बताते ।
प्रश्न गणित के हल करवाते ॥
हर गलती को ठीक कराते,
पकड़ हमारे कान गुरूजी ॥
धरती का भूगोल बताते ।
इतिहासों की कथा सुनाते ॥
क्या कब क्यों कैसे होता है,
समझाते विज्ञान गुरूजी ॥
खेल खिलाते गीत गवाते ।
कभी पढ़ाते कभी लिखाते ॥
अच्छे और बुरे की हमको,
करवाते पहचान गुरूजी ॥
….शिव नारायण सिंह
Short Poem in Hindi for Class 11
12. मैं उनका ही होता
मैं उनका ही होता, जिनसे
मैंने रूप-भाव पाए हैं।
वे मेरे ही लिए बँधे हैं
जो मर्यादाएँ लाए हैं।
मेरे शब्द, भाव उनके हैं,
मेरे पैर और पथ मेरा,
मेरा अंत और अथ मेरा,
ऐसे किंतु चाव उनके हैं।
मैं ऊँचा होता चलता हूँ
उनके ओछेपन से गिर-गिर,
उनके छिछलेपन से खुद-खुद,
मैं गहरा होता चलता हूँ।
….गजानन माधव मुक्तिबोध
13. सन्नाटा
तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको,
फिर चुपके-चुपके धाम बता दूँ तुमको;
तुम चौंक नहीं पड़ना, यदि धीमे-धीमे
मैं अपना कोई काम बता दूँ तुमको।
कुछ लोग भ्रांतिवश मुझे शांति कहते हैं,
नि:स्तब्ध बताते हैं, कुछ चुप रहते हैं;
मैं शांत नहीं नि:स्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ,
मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं।
कभी-कभी कुछ मुझमें चल जाता है,
कभी-कभी कुछ मुझमें जल जाता है;
जो चलता है, वह शायद है मेंढक हो,
वह जुगनू है, जो तुमको छल जाता है।
मैं सन्नाटा हूँ, फिर भी बोल रहा हूँ,
मैं शांत बहुत हूँ, फिर भी डोल रहा हूँ;
यह ‘सर्-सर्’ यह ‘खड़-खड़’ सब मेरी है,
है यह रहस्य मैं इसको खोल रहा हूँ।
मैं सूने में रहता हूँ, ऐसा सूना,
जहाँ घास उगा रहता है ऊना;
और झाड़ कुछ इमली के, पीपल के,
अंधकार जिनसे होता है दूना।
तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ खड़ा हूँ,
तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ पड़ा हूँ;
मैं ऐसे ही खंडहर चुनता फिरता हूँ.
मैं ऐसी ही जगहों में पला, बढ़ा हूँ।
हाँ, यहाँ किले की दीवारों के ऊपर,
नीचे तलघर में या समतल पर भू पर
कुछ जन-श्रुतियों का पहरा यहाँ लगा है,
जो मुझे भयानक कर देती हैं छू कर।
तुम डरो नहीं, डर वैसे कहाँ नहीं है,
पर ख़ास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है;
बस एक बात है, वह केवल ऐसी है,
कुछ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं।
यहाँ बहुत दिन हुए एक थी रानी,
इतिहास बताता उसकी नहीं कहानी,
वह किसी एक पागल पर जान दिए थी,
थी उसकी केवल एक यही नादानी।
यह घाट नदी का, अब जो टूट गया है,
यह घाट नदी का, अब जो फूट गया है—
वहाँ यहाँ बैठ कर रोज़-रोज़ गाता था,
अब यहाँ बैठना उसका छूट गया है।
शाम हुए रानी खिड़की पर आती,
थी पागल के गीतों को वह दुहराती;
तब पागल आता और बजाता बंसी,
रानी उसकी बंसी पर छुप कर गाती।
किसी एक दिन राजा ने यह देखा,
खिंच गई हृदय पर उसके दुख की रेखा;
वह भरा क्रोध में आया और रानी से,
उसने माँगा इन सब साँझों का लेखा।
रानी बोली पागल को ज़रा बुला दो,
मैं पागल हूँ, राजा, तुम मुझे भुला दो;
मैं बहुत दिनों से जाग रही हूँ राजा,
बंसी बजवा कर मुझे ज़रा सुलो दो।
वह राजा था हाँ, कोई खेल नहीं था,
ऐसे जवाब से उसका मेल नहीं था;
रानी ऐसे बोली थी, जैसे उसके
इस बड़े क़िले में कोई जेल नहीं था।
तुम जहाँ खड़े हो, यहीं कभी सूली थी,
रानी की कोमल देह यहीं झूली थी;
हाँ, पागल की भी यहीं, यहीं रानी की,
राजा हँस कर बोला, रानी भूली थी।
किंतु नहीं फिर राजा ने सुख जाना,
हर जगह गूँजता था पागल का गाना;
बीच-बीच में, राजा तुम भूल थे,
रानी का हँस कर सुन पड़ता था ताना।
तब और बरस बीते, राजा भी बीते,
रह गए क़िले के कमरे-कमरे रीते,
तब मैं आया, कुछ मेरे साथी आए,
अब हम सब मिलकर करते हैं मनचीते।
पर कभी-कभी जब पागल आ जाता है,
लाता है रानी को, या गा जाता है;
तब मेरे उल्लू, साँप और गिरगट पर
अनजान एक सकता-सा छा जाता है।
….भवानीप्रसाद मिश्र
14. रामदास
चौड़ी सड़क गली पतली थी
दिन का समय घनी बदली थी
रामदास उस दिन उदास था
अंत समय आ गया पास था
उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी
धीरे-धीरे चला अकेले
सोचा साथ किसी को ले ले
फिर रह गया, सड़क पर सब थे
सभी मौन थे सभी निहत्थे
सभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगी
खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर
दोनो हाथ पेट पर रख कर
सधे क़दम रख करके आए
लोग सिमट कर आँख गड़ाए
लगे देखने उसको जिसकी तय था हत्या होगी
निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथ तौलकर चाक़ू मारा
छूटा लोहू का फ़व्वारा
कहा नहीं था उसने आख़िर उसकी हत्या होगी
….रघुवीर सहाय
15. सुख-दुख
सुख-दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन;
फिर घन में ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन !
मैं नहीं चाहता चिर-सुख,
मैं नहीं चाहता चिर-दुख,
सुख दुख की खेल मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख !
जग पीड़ित है अति-दुख से
जग पीड़ित रे अति-सुख से,
मानव-जग में बँट जाएँ
दुख सुख से औ’ सुख दुख से !
अविरत दुख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न;
दुख-सुख की निशा-दिवा में,
सोता-जगता जग-जीवन !
यह साँझ-उषा का आँगन,
आलिंगन विरह-मिलन का;
चिर हास-अश्रुमय आनन
रे इस मानव-जीवन का !
….सुमित्रानंदन पंत
Short Poetry in Hindi for Class 11 Students
16. झीनी झीनी बीनी चदरिया।
काहे कै ताना काहे कै भरनी
कौन तार से बीनी चदरिया
इडा पिङ्गला ताना भरनी
सुखमन तार से बीनी चदरिया
आठ कँवल दल चरखा डोलै
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया
साँ को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया
सो चादर सुर नर मुनि ओढी
ओढि कै मैली कीनी चदरिया
दास कबीर जतन करि ओढी
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया
….कबीर
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